साहित्य ने की है किसान की चिंता यद्यपि तुलसीदास ने स्पष्ट रूप से आषाढ़ का नाम नहीं लिया, किन्तु उनके कथन से अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्षा ऋतु के आगमन का अर्थ है वर्षागमन के पहले मास आषाढ़ के पहले दिन की गणना ... कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा। पुर न जाउँ दस चारि बरीसा।। गत ग्रीषम बरषा रितु आई । रहिहउँ निकट सैल पर छाई।। अंगद सहित करहु तुम्ह राजू। संतत हृदय धरेहु मम काजू।। जब सुग्रीव भवन फिरि आए। रामु प्रबरषन गिरि पर छाए।। राम सुग्रीव से कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतु बीत चुकी है और वर्षा ऋतु आ गयी है। चूंकि मैं चौदह वर्ष के वनवास पर हूं अतः किसी नगर में नहीं रह सकता। तुम अंगद सहित राज करो। यह सुनकर सुग्रीव अपने भवन में चले गए और राम लक्ष्मण सहित वर्षण गिरि पर छा गए। यहीं राम ने पहला चातुर्मास (आषाढ़, सावन, भाद्र, क्वांर) किया। तुलसी लिखते हैं - फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई। सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई।। कहत अनुज सन कथा अनेका। भगति बिरति नृपनीति बिबेका। यहां विशेष रूप से देखने की बात यह है कि राम अपने अनुज लक्षमन के साथ 'अनेक भक्ति, विरक्ति, नृपनीति और विवेक की कथाएं' करते हुए वर्ष...