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Showing posts from December, 2020

किसान की चिंता : करता है साहित्य

साहित्य ने की है किसान की चिंता यद्यपि तुलसीदास ने स्पष्ट रूप से आषाढ़ का नाम नहीं लिया, किन्तु उनके कथन से अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्षा ऋतु के आगमन का अर्थ है वर्षागमन के पहले मास आषाढ़ के पहले दिन की गणना ... कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा। पुर न जाउँ दस चारि बरीसा।। गत ग्रीषम बरषा रितु आई । रहिहउँ निकट सैल पर छाई।। अंगद सहित करहु तुम्ह राजू। संतत हृदय धरेहु मम काजू।। जब सुग्रीव भवन फिरि आए। रामु प्रबरषन गिरि पर छाए।। राम सुग्रीव से कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतु बीत चुकी है और वर्षा ऋतु आ गयी है। चूंकि मैं चौदह वर्ष के वनवास पर हूं अतः किसी नगर में नहीं रह सकता। तुम अंगद सहित राज करो। यह सुनकर सुग्रीव अपने भवन में चले गए और राम लक्ष्मण सहित वर्षण गिरि पर छा गए। यहीं राम ने पहला चातुर्मास (आषाढ़, सावन, भाद्र, क्वांर) किया। तुलसी लिखते हैं - फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई। सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई।। कहत अनुज सन कथा अनेका। भगति बिरति नृपनीति बिबेका। यहां विशेष रूप से देखने की बात यह है कि राम अपने अनुज लक्षमन के साथ 'अनेक भक्ति, विरक्ति, नृपनीति और विवेक की कथाएं' करते हुए वर्ष

हट्टा की रहस्यमय बावड़ी :

  हट्टा की रहस्यमय बावड़ी :  सैनिकों की छावनी या रानी की नहानी  मध्यप्रदेश के दक्षिणी छोर का अंतिम ज़िला है बालाघाट। बालाघाट के साथ कुछ प्राकृतिक और भौगोलिक संयोग जुड़े हुए हैं। सिवनी ज़िला से निकली वैनगंगा नदी से घिरा 'ज़िला-मुख्यालय' 'बालाघाट-नगर' जैसे इस नदी का 'एक घाट' ही है। किंतु यह 'वैनगंगा-घाट' नहीं बल्कि 'बालाघाट' है। बालाघाट जनगणना की दृष्टि से 'स्त्री-बहुल' ज़िला है। 'बाला' का एक अर्थ कन्या या लड़की होता है। क्या इसलिए इसका नाम बालाघाट पड़ा? इस बात का संकेत करता, बालाघाट के मुख्यमार्ग पर, नगर के बीच, एक चौराहा है। इस चौराहे के बीच फ़व्वारा है और उस फ़व्वारे के नीचे एक 'पनिहारिन' या 'बाला' घड़ा लिए बैठी है। शायद इस मूर्ति को बनानेवालों ने बालाघाट को यही अर्थ देने का प्रयास किया है। चूंकि यह मूर्ति या पुतली काले रंग से पोती गयी है, इसलिए इस चौक का नाम हो गया 'काली पुतली चौक'। काले रंग का भी रहस्य या निहितार्थ है। पुतली पर निरंतर पानी पड़ेगा और काई जमेगी। पुतली काली होगी। तो दूर-दृष्टि-सम्पन्न पालिक