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Showing posts from June, 2020

जन्म दिन की शुभ-कामनाएं अर्थात अनुभूतियों के अनिरुद्ध रिश्ते

अर्धांगिनी का जन्म-दिन अर्थात्  विशुद्ध अनुभूतियों के अनिरुद्ध रिश्ते 1. एक वैसा हो ही जाता था मैं दरवाजा खोलता तो सामने के दरवाजे पर एक 'कोई नहीं सी' मुस्कान 'हेलो' बोलती थी। आज वह जा रही है 'न उसकी न मेरी' जगह से अपना सारा सामान समेटकर किसी और जगह किसी और की जगह पर फिर किसी 'कोई नहीं से' दरवाज़े पर उसकी जीवंत मुस्कुराहट खड़ी मिलेगी किसी और को एक 'कुछ नहीं' होने के 'कुछ नहीं युहीं से' दस्तक की तरह। उसका होना भी एक अनहोनी थी कुछ न होते हुए भी कुछ न करते हुए भी काम आने की बिना किसी सम्भावना की तरह आने-जाने की औपचारिकताओं से दूर एक अपरिचित चेहरे के एक चिरपरिचित अपनापे की तरह भावुक रस्साकसी से विरक्त अनुभूतियों के अनिरुद्ध रिश्ते की तरह तुलित, संतुलित और सतत संचरित। 2. दो नींद, सपने और मैं- अचेत की अचिंतित गहराइयों में डूबे किसी अज्ञात पहेली को सुलझा रहे थे एक तरह से ढाक के तीन पत्ते होकर एक दूसरे को बहला-फुसला रहे थे तभी...कहीं दूर... चर्च का घड़ियाल बजा.... टिंग टांग .. टिंग टांग... सगुन-असगुन की आशं

कैशलेसनेस

कैशलेसनेस : आज सारे ATM घूम  डाले -- धैर्य के साथ स्कूटर को पैट्रोललेस कर दिया---तब भी नतीज़ा सिफर-- सारे ATM यही कहते रहे "कोई दूसरा देखिये---यह 'कैश लेस' है।" कैश लेस शहर ही नहीं, पूरा देश है। बैंक को करोडों हज़ार का चूना लगाकर विदेश चम्पत होनेवाले दोनों ठगों को देश वापस लाने की खबर से क्या उम्मीद की जा सकती है? ATM में कैश आ जायेगा? हम मध्यम वर्गीय लोगों का जो पैसा वो अय्याशियों में उड़ा चुके हैं, बैंक को वापस मिल जायेंगे? चिल्ल्हर जमा करने के नाम पर बैंक हम लोगों से माल्या-मोदी के उड़ाये पैसे वसूल रही है, क्या यह वसूली बंद हो जायेगी? लुटेरों की भगिनी वसूली-वाहिनियां हमला बोल रही हैं, वह कम हो जायेगा? देश के वो लोग जिन्होंने मुगलों और अंग्रेज़ों की इकतरफ तानाशाही और तुगलकी फरमानों को नहीं भोगा, वे उस युग की झलक देख पाने का सौभाग्य भुगत रहे हैं। सोच रहा हूं, चेकबुक जो बैंक से मिली है, बीसेक हज़ार निकालने का विद्रोह कर डालता हूं!! विद्रोह इस बात का कि कैशलेस होना देश के विकास का नारा। चेक लेकर कैश लेने गया तो विकास बब्बा के दो दांत टूटेंगे!! एक पेपर लेस रहने वाला, दू

नदी की बाढ़ में

नदी की बाढ़ में.. बह्र १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ काफिया ~आरे रदीफ़ डूब जाते हैं नदी की बाढ़ में दोनों किनारे डूब जाते हैं। पहाड़ी और चट्टानी सहारे डूब जाते हैं। दरख्तों से नहीं रुकती ज़मीनें भी बही जातीं, जड़ें कमज़ोर हों तो पेड़ सारे डूब जाते हैं। उफ़क़ अब किस नजूमी से किसी का भाग्यफल पूछे, पलक में चांद सूरज औ सितारे डूब जाते हैं। समय अच्छा बुरा खोटा खरा कुछ भी नहीं होता, बड़ी हो झील तो छोटे शिकारे डूब जाते हैं। सफीने कागजी दोनों ने कितनी बार तैराये, तुम्हारे तैर जाते हैं, हमारे डूब जाते हैं। @कुमार