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Showing posts from June, 2023

मुबारक हो! आज बकरीद है!!

मुबारक हो! आज बकरीद है!! मुंबई में बकरे को लेकर हंगामा है। साठ सत्तर साल में मुझे पहली बार बकरे को लेकर हंगामा सुनाई दे रहा है। इसके पहले बकरे चुपचाप हलाल हो जाते थे। घीसू और माधो आलू के लिए एक दूसरे पर कड़ी नज़र रखते थे, ऐसी कहानी जिन दिनों पढ़ी थी, उन्हीं दिनों यह मुहावरा भी सुना था- 'दो मुल्लों में बकरा हराम होना।' हराम और हलाल में अंतर है।    आज बकरीद है... बकरेवाली ईद। कल जो बकरे का हंगामा हुआ है उस बकरे के हलाल होने का दिन। सकारात्मक ही सोचें कि मुंबई में बकरे ही हलाल हो।  आज के दिन ही मेरे एक विद्यार्थी का भी जन्मदिन है। संयोग से यह जन्मदिन बकरीद को पड़ रहा है। वास्तव में उसका जन्मदिन उन्तीस जून है। विद्यार्थी वैदिक हिन्दू है। कुछ संस्कारी विद्यार्थी परिवार के हिस्से हो जाते हैं, यह उन्हीं में से एक है। मेरी पत्नी (जिसे वह मम्मी कहता है) ने उसे आशीर्वाद देने के लिए फोन किया। आशीर्वाद के साथ साथ खेत और खलिहान की बात होने लगी। बातचीत में सब खबरें विस्तार से समाहित हो गईं ..थांवर नदी का बड़ा पुल डूब गया, घन्घरिया नदी का पुल बह गया... केवलारी के पास रेलवे लाइन धसक गयी.. रेल रद्द

मानसून के बहाने एक व्यंग्य

  आषाढ़ का बहुचर्चित पहला दिन अभी मानसून यानी आषाढ़ के बादल नहीं आये हैं, आषाढ़ का पहला दिन (कृष्ण पक्ष) भी कब का जा चुका है।(पन्द्रह और चार उन्नीस दिन हो गए।) आज आषाढ़ के शुक्ल पक्ष का चौथा दिन है। हालांकि मानसून ईसवीं के 20 जून तक ही आता है। आज 22 जून है। उसे दो दिन लेट कह सकते हैं। आज आया और सचमुच मन का मयूर नाच उठा। आज ही देश के गृहमंत्री आनेवाले थे। उनका हल्का-यान  (हेलीकाप्टर) मौसम ख़राब होने से नहीं उतर सका। जो मौसम सामान्य स्त्री पुरुषों के लिए ख़ुशगवार होता है, वही मौसम राजपुरुषों के लिए मनहूस होता है। बादल धरती के आंचल पर प्रेम सिंचन हैं लेकिन सुरक्षा की दृष्टि में वही बादल, हवा पानी विघ्न हैं, बाधा हैं। लाखों की भीड़, करोड़ों की व्यवस्था, हजारों रक्षा कर्मियों की तैनाती बादलों के आगे फ़ीकी पड़ गयी। बादलों के आगे सूरज की भी नहीं चलती, फिर 'जब तक सूरज चांद रहेगा, अमुक तेरा नाम रहेगा' का नारा बिखरे हुए पेम्पलेटों और पोस्टरों से ऊपर तो नहीं जा सकते। मौसम किसी-किसी को रास नहीं आता। एक तरफ़ मानसून का आना तय है, आया। देश के गृह मंत्री का आना चुनावी शंख नाद था, वे ज़मीन पर नहीं उतर स

दो पुस्तकें प्राप्त

 दो पुस्तकें प्राप्त अपने पत्रकार मित्र डॉ. महेश परिमल की दो पुस्तकें मिलीं। 'सीढ़ियों का समीकरण' और 'तेरी मेरी उसकी लोरी'.. एक ही देश, काल, वातावरण में, एक ही महाविद्यालय और शहर के एकमात्र समाचार पत्र में काम करते हुए भी, चार वर्षों के अंतराल में हम लोग अग्रज और अनुज की श्रेणी में  विभाजित हो जाते, अगर महेश परिमल अपनी तरल व्यवहार कुशलता के चलते मित्र न बन गए होते।  अपने जन्म की अद्भुत जीवंत सूचना देते हुए 'तेरी मेरी उसकी लोरी' में उन्होंने 'हर वर्ष का मानसून' (को) अपना जन्म बताया। महेश परिमल हमेशा मुझे इसी तरह चौंकाते रहे हैं। मानसून की प्रारम्भिक आहटों के बीच जब 'बिपरजोय' (विपर्यय) नामक चक्रवात का हंगामा बरपा था, तब डॉ. परिमल ने फोन किया कि पत्रकारिता विभाग की उनकी एक छात्रा के हाथों उन्होंने मुझे सद्य प्रकाशित दो पुस्तकें भिजवाईं हैं, जो आज मुझे मिल गईं। प्रथम दृष्टया दोनों पुस्तकें अपने विषय के हिसाब से बिल्कुल नए धरातल पर पाठकों को ले जाती हैं। एक पुस्तक 'तेरी मेरी उसकी लोरी' लोरी के विविध प्रकारों पर शोधात्मक दृष्टि डालती है, वहीं दू

कुण्डलिया छंद

 कुण्डलिया छंद :  मोटे तौर पर एक दोहा छंद और दो सोरठा छंद मिलाकर एक कुण्डलिया तैयार होती है। इसे कुण्डलिया छंद कहने के पीछे इसकी कुंडलित आवृत्तियाँ हैं। इसे ठीक से समझने के लिए प्रसिद्ध कुण्डलिया-कवि गिरधर की कुंडलिया देख लेना ठीक रहेगा।  गिरधर कवि की नियमव्रता कुण्डलिया :- लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग। जंगल,नद,नाला जहाँ, तहाँ बचावै अंग ।। तहाँ बचावै अंग , लपक कुत्ता कौ मारे। दुश्मन दावागीर, झपटि तिनहूँ को झारे।। कह गिरिधर कविराय , सुनो हे दूर के बाठी। सब हथियारन छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी । इसी के साथ-साथ दूसरे प्रसिद्ध हास्य कुण्डलियाकार काका हाथरसी की कुण्डलिया भी देखें।  भारतीय इतिहास का, कीजे अनुसन्धान। देव,दनुज,किन्नर सभी, करें सोमरस पान।। करें सोमरस पान, सभी कवि, लेखक, शायर। जो इससे घबराय, उसे कहते हैं 'कायर'।। कह 'काका', कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला। दो घंटे में लिख डाली, पूरी 'मधुशाला'।। तीसरे समकालीन प्राध्यापक हैं रामकुमार, आवश्यकतानुसार छंदों के उदाहरण के लिए ख्यात हैं, एक उदाहरण दृष्टव्य - हँस हँस जीना चाहिये, क्यों रहना गंभीर।  ज़ि

अठारह देशी दोहे

अठारह देशी दोहे***** 1. जंगल को पढ़ते हुये : तेरह दोहे देशकाल चढ़ने लगा, केशकाल के घाट। नमक-मिर्च बस्तर हुआ, हुई सियासत चाट।।०१ मुग़ल गए,  इंग्लिश गए, गए सांप औ नाग। जंगल से लेकर गए, अपना अपना भाग।।०२ एस.पि.ओ. सलवा-जुडुम, सेना, पुलिस, निजाम। जंगल-हत्या में हुआ, शामिल मुल्क तमाम।।०३ जंगल से छीनो नहीं, महुआ, सल्फी, चार। क़ुदरत ने जीवन दिया, तुम करते व्यापार।।०४ सत्ताएं पोषक बनें, रक्षक, पिता, मितान। जंगल की भी बच सके, प्राकृतिक पहचान।।०५ संविधान अनुकूल ही, करना शिक्षित ठीक। बस्तर के बदलें नहीं, भाषा, बिम्ब, प्रतीक।।०६ आदिम, मूल, सनातनी, सबकी अपनी शान। सबकी मौलिकता रहे, पहन निजी परिधान।।०७ मान पराया व्यर्थ है, स्वाभिमान अनमोल। परम्परा, निज मान्यता, बोली रखो अडोल।।०८ दूर दूर से देखकर, क्या समझोगे पीर। भीतर बसकर बांचिये, जंगल की तहरीर।।०९ नंगे बस्तर की ढंके, शोषित वंचित देह। बिना शर्त के बांटिए, इनमें अपना स्नेह।।१० चारित्रिक हत्या प्रमुख, मुद्दे हुए नगण्य। वनवासी हैं नागरिक, देश दण्डकारण्य।।११ जंगल को पढ़ते हुए, निकले महज़ उसांस। महुए की पीड़ा नहीं, जान सकेगा कांस।। १२

पांच प्राकृतिक मुकरियां

 पांच प्राकृतिक मुकरियां

पांच मुकरियां

  पांच मुकरियां                  1 उसके बिना न वह रह पाए। जब देखो तब अधर चढ़ाए।              वह माधव की बनी माधुरी।              ए सखि सौतन? नहीं बांसुरी।। 2 हाथ रहे पर रहे तना वह। सर का मेरे छत्र बना वह।        गीला करे न मुझे तपाता।       ए सखि साजन? ना सखि छाता। 3 घुटन हटेगी, ताप मिटेगा। दल-बल संग जब आन मिलेगा।               कब आएगा वह मन-भावन।                ए सखि साजन, ना सखि सावन।। 4. खोल रही ऋतु घर का ताला। वह शायद है आने वाला।                सखि मन जिसकी चाह में पागल।               ए सखि साजन, धत् सखि बादल।।          5. बदली चंचल, बिजली चमकुल। मौसम भी नीयत का ढुलमुल।            करे न कोई अब मनमानी।             ए सखि साजन, हट सखि पानी।                                        @ कुमार, विश्व मनोग्रंथि दिवस और महासागर दिवस, 8.6.23