पांच मुकरियां
1
उसके बिना न वह रह पाए।
जब देखो तब अधर चढ़ाए।
वह माधव की बनी माधुरी।
ए सखि सौतन? नहीं बांसुरी।।
2
हाथ रहे पर रहे तना वह।
सर का मेरे छत्र बना वह।
गीला करे न मुझे तपाता।
ए सखि साजन? ना सखि छाता।
3
घुटन हटेगी, ताप मिटेगा।
दल-बल संग जब आन मिलेगा।
कब आएगा वह मन-भावन।
ए सखि साजन, ना सखि सावन।।
4.
खोल रही ऋतु घर का ताला।
वह शायद है आने वाला।
सखि मन जिसकी चाह में पागल।
ए सखि साजन, धत् सखि बादल।।
5.
बदली चंचल, बिजली चमकुल।
मौसम भी नीयत का ढुलमुल।
करे न कोई अब मनमानी।
ए सखि साजन, हट सखि पानी।
@ कुमार,
विश्व मनोग्रंथि दिवस और महासागर दिवस, 8.6.23
Comments