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Showing posts from January, 2024

लंका का सुशासनऔर सुरक्षा व्यवस्था

लंका का सुशासनऔर सुरक्षा व्यवस्था : हनुमान की दृष्टि से            रामचरित मानस में एक काण्ड है सुंदरकांड। अरण्य कांड में सीताहरण के बाद किष्किन्ध्याकाण्ड में सुग्रीव की सहायता मिल गयी है। पता चल गया है कि सीता लंका में लंकापति के पास है। वहीं सीता की लोकेशन (स्थिति) की पक्की पड़ताल के लिए हनुमान समुद्रपार जा रहे है।             जामवंत से प्रोत्साहन पाकर उत्साह से भरे किष्किन्धा नरेश सुग्रीव के प्रमुख सेनानायक हनुमान, सीता की खोज का संकल्प लेकर और शपथ उठाकर समुद्र लांघने चले। अनेक समुद्री विपत्तियों का सामना करते हुए वे उस पार पहुंचे और एक पर्वत (गिरि) पर चढ़कर उन्होंने लंका के वैभव, समृद्धि और राज्य-प्रबंध की झलक देखी। लंका के चारों ओर ऊंची-ऊंची लहरों से भरा हुआ समुद्र है। लंका की जगमगाती हुई ऊंची-ऊंची स्वर्ण अट्टालिकाओं का प्रकाश अत्यंत भव्यता के साथ फैला हुआ है।अ          नगर की शोभा तो अत्यंत ही चित्ताकर्षक है। विचित्र मणियों से सज्जित सोने की अट्टालिकाएं सघन रूप से बसी हुई हैं। चौराहों चौराहों पर बाजार हैं, उन तक जानेवाले अत्यंत व्यवस्थित पहुंच-मार्ग हैं, वीथिकाएं हैं। ऐसी बहुत सारी

नारी अस्मिता गान

नारी अस्मिता गान न्याय चाहता हर वंचित, शोषित कुचला इन्सान रे! निकल पड़ा है आज सड़क पर, पूरा हिन्दुस्तान रे! ० यह कैसा उत्थान जहां, सर्वोच्च सदा गिर जाते हैं।  निर्लज अहंकार के मद में, कुत्सा से घिर जाते हैं। दुराचार में दुर्योधन दुश्शासन से आगे जाते। सेना सत्ता के बल पर जो, वनचर कुत्ते बन जाते। फिर भी खुद को शेर समझकर, करते हैं अभिमान रे! ० हिन्दू मुस्लिम हरिजन गिरिजन नहीं अहिल्या सीता है। नारी धर्म-क्षेत्र पर न्यायिक-युद्ध सिखाती गीता है।। बेटी, बहू, भार्या, मां है, वह कामुक उपभोग नहीं। संजीविनी सुधा है नारी, घृणित मानसिक रोग नहीं। मृत्यु-लोक पर केवल नारी जीवन का वरदान रे!  ० 'स्मृति' बोले आज, 'उमा' का गौरव गान नहीं टूटे।  मौन 'राजमाता' का, माताओं का मान नहीं लूटे। 'लक्ष्मी' 'दुर्गा' 'द्रोपदियों' को 'रण-चंडी' बन जाने दो। मत रोको पथ 'शिव'! 'कंकाली' आती है तो आने दो।  'सदा-निर्मला वसुंधरा' का, शुरू 'क्रांति-अभियान' रे! ० 'सम-रसता' के 'कनक-घटों' में 'कुटिल गरल' है भरा हुआ। अकस्मा

इक्तीस दोहे

प्रकृति और धूप के इकतीस दोहे ० राजनीति उनके लिए, जिनके मन में खोट। घटनाएं मुझको मगर, देतीं सदा कचोट।। 31                     @ कुमार,८.१.२४, सोमवार, ११.०० मुझे देखकर खिल उठी, रुग्ण धूप की देह। शक़्क़ी के मन से मिटे, जैसे सब सन्देह।।१              @कुमार,८.१.२४, सोमवार, ८.३० जैसे फाइल में दबा, पड़ा हुआ था घाम। सोमवार को बन गया, सूरज का यह काम।।२                 @कुमार,८.१.२४, सोमवार, ९.०६ हवा गुप्तचर हो गयी, ठहरी किरणें चोर। अंधकार के दुर्ग में, शक़ में बंदी भोर।।३                      @कुमार, 7.1.24,रविवार ६ बजे शाम, आत्मकथा में झूठ की, बनावटी हर बात। देशप्रेम, निष्ठा, प्रगति, भ्रष्ट-विरोधी घात।।४                @कुमार,.८.१.२४, सोमवार, ९.३०   अंदर जिसके विष भरा, धोखा उससे प्यार। दूध पिलाकर देखिए, विषधर का व्यवहार।।५                      @कुमार, 7.1.24,रविवार ६.१५ बजे,  0 पांच दोहे : सुंदर, आकर्षक, सुरम, प्रकृति बांटे स्नेह। संकट कंटक से ड

नया विहान : पांच दोहे

  नया विहान : पांच दोहे 0 ज्ञान आजकल मौन है, मुखर बहुत अज्ञान। खींचें वाद विवाद ही, सदा परस्पर कान।।१. है तटस्थ जीना कठिन, कठिन सत्य का साथ। संघर्षों की राह में, छुड़ा गए सब हाथ।।२. सत्याग्रह का मार्ग है, कठिन कंटकाकीर्ण। जीवन को सत्यार्थ के, करे असत्य विदीर्ण।।३. गैलीलियो, मसीह हो, या गांधी, सुकरात। सत्य-मार्ग पर जो चले, उस पर प्राणाघात।।४. गया शाम के कान में, यह कहकर दिनमान। 'प्रिये रात के बाद में, होगा नया विहान।।'५.                             @कुमार, 4.1.23, 4.30

विषैले वंश : पांच दोहे

विषैले वंश  ० पड़े पूंछ पर पांव तो, नाग मारते दंश।  इसी उदाहरण पर करें, दम्भ विषैले-वंश।।१ सिर्फ़ कीट मूषक नहीं, निगलें व्याल भुजंग। वह विष ही दंशित करें, घातक उनका संग।।२ बिच्छू, कर्कट, सर्प के, शस्त्र विषैले डंक। जिसमें कटुता ही भरी, मधुरस निरा निरंक।।३ द्वेष, ईर्ष्या, दम्भ ही, जिनका नित-अभियान। उत्तेजित व्याकुल फिरें, उनका नहीं निदान।।४ जनहित जिसका लक्ष्य है, होता हिंस्र न उग्र।  छद्म-सद्गुणी में मिला, मिथ्याचरण समग्र।।५ ० @कुमार, 3.1.24, बुधवार, 5 बजे सायं।

पांच दोहे : 3/1/24

  पांच दोहे : 3.1.24 1. प्रगति-प्रमादों का मिला, काल-चक्र को दंड। चक्र-वात बनकर उठा, गति का रोष प्रचंड।।                     शब्दार्थ : प्रगति-प्रमाद = आगे निकलने की अहंकारयुक्त होड़, काल-चक्र = समय के पहिये, चक्र-वात = वायु का चक्करदार ज्वार, जल-अंधड़, गति का रोष = क्रियाशीलता का क्रोध, प्रतिरोध, प्रचंड = विकराल, भयंकर, ० 2. कुल्हाड़ी ने मान ली, आख़िर अपनी हार। जीवन पहियों पर कभी, नहीं करेगी वार।। ० 3. गलती मद की,भांग की,सज़ा भोगते लोग।  यदि विषाक्त वातावरण, राज करेगा रोग।। ० 4. जन-जीवन ठहरा मिला, धूप पीलियाग्रस्त। स्याह क़ानुनों से हुई, भोली जनता त्रस्त।। ० 5. संख्या-बल से दब गई, गुणवत्ता उत्कृष्ट। राजमार्ग पर दौड़ते, सरपट सब पथभ्रष्ट।। ० @कुमार,३.१.२४, . बुध,नवेगांवबालाघाट,प्रातः९बजे।