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पांच दोहे : 3/1/24

 पांच दोहे : 3.1.24















1.

प्रगति-प्रमादों का मिला, काल-चक्र को दंड।

चक्र-वात बनकर उठा, गति का रोष प्रचंड।।                  

 शब्दार्थ :

प्रगति-प्रमाद = आगे निकलने की अहंकारयुक्त होड़,

काल-चक्र = समय के पहिये,

चक्र-वात = वायु का चक्करदार ज्वार, जल-अंधड़,

गति का रोष = क्रियाशीलता का क्रोध, प्रतिरोध,

प्रचंड = विकराल, भयंकर,

2.

कुल्हाड़ी ने मान ली, आख़िर अपनी हार।

जीवन पहियों पर कभी, नहीं करेगी वार।।

3.

गलती मद की,भांग की,सज़ा भोगते लोग। 

यदि विषाक्त वातावरण, राज करेगा रोग।।

4.

जन-जीवन ठहरा मिला, धूप पीलियाग्रस्त।

स्याह क़ानुनों से हुई, भोली जनता त्रस्त।।

5.

संख्या-बल से दब गई, गुणवत्ता उत्कृष्ट।

राजमार्ग पर दौड़ते, सरपट सब पथभ्रष्ट।।

@कुमार,३.१.२४, . बुध,नवेगांवबालाघाट,प्रातः९बजे।

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