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Showing posts from November, 2020

शानदार अदाकारा शौक़त क़ैफ़ी आज़मी

*पुण्यतिथि (२२ नवंबर) पर विशेष :  @ ज़ाहिद ख़ान कैफी आजमी ने जब ‘उमराव जान’ फिल्म देखी, तो उन्होंने कॉस्ट्यूम डिजाइनर सुभाषिणी अली को अपना रद्दे अमल देते हुए कहा,‘‘शौकत ने खानम के रोल में जिस तरह हकीकत का रंग भरा है,अगर शादी से पहले मैंने इनकी अदाकारी का यह अंदाज देखा होता,तो इनका शजरा(वंशावली) मंगवाकर देखता कि आखिर सिलसिला क्या है !’’डायरेक्टर मुजफ्फर अली की फिल्म ‘उमराव जान’ में शौकत कैफी ने ‘खानम’ के किरदार में वाकई कमाल कर दिखाया था। * फिल्म में दीगर अदाकारों के साथ-साथ उनकी अदाकारी भी लाजवाब है। निर्देशक मीरा नार की ‘सलाम बाम्बे’ एक और ऐसी फिल्म है, जिसमें शौकत कैफी की अदाकारी के दुनिया भर में चर्चे हुए। ‘घर वाली’ के रोल की तैयारी के लिए वे बकायदा तवायफों के बदनाम इलाके कमाटीपुरा गईं। जहां उन्होंने वेश्याओं की जिंदगी का करीब से अध्ययन किया। जब वे शूटिंग के लिए गईं, तो उनकी अदाकारी को देखकर निर्देशक के साथ साथी कलाकार भी चौंक गए। फिल्म व्यावसायिक तौर पर काफी कामयाब हुई और अमेरिका के न्यूयार्क जैसे शहर में इसने सिल्वर जुबली मनाई।  ** ‘हकीकत’, ‘हीर रॉंझा’, ‘लोफर’ आदि फिल्मों में शौकत क

मुक्तिबोध और भूलन-बाग़

मुक्तिबोध और भूलन-बाग़ : अर्थात् किंवदंती, रहस्य, तथ्य और राजनांदगांव           मुक्तिबोध की लंबी और प्रसिद्ध कविता है 'अंधेरे में'। यह कविता 8 अनुच्छेदों या भागों में है। मुक्तिबोध ने जिस घर में यह कविता लिखी वह आज वह सज संवरकर त्रिवेणी धरोहर के रूप में दमक रहा है। किंतु वह मुक्तिबोध को कितना उद्वेलित करता था, इस 'अंधेरे में' कविता के प्रथम भाग के इस अंश में बोल रहा है.. ० ज़िन्दगी के... कमरों में अँधेरा लगाता है चक्कर कोई एक लगातार; आवाज़ पैरों की देती है सुनाई बार-बार....बार-बार, वह नहीं दीखता... नहीं ही दीखता, किन्तु वह रहा घूम तिलस्मी खोह में ग़िरफ्तार कोई एक, भीत-पार आती हुई पास से, गहन रहस्यमय अन्धकार ध्वनि-सा अस्तित्व जनाता अनिवार कोई एक, और मेरे हृदय की धक्-धक् पूछती है--वह कौन? ०        उसी महल का दूसरा हिस्सा है 'भूलनबाग़'. यानी भूलन बूटी का उद्यान। अब आप पूछेंगे- 'भूलन-बूटी' क्या?         'संजीविनी-बूटी' तो सुनी होगी? जिसको सुंघाकर सुषेण ने मूर्छित लक्ष्मण को संजीवित किया था। पुराणकाल में जो युद्ध हुए उसमें घायल योद्ध