रामचरित मानस में एक काण्ड है सुंदरकांड। अरण्य कांड में सीताहरण के बाद किष्किन्ध्याकाण्ड में सुग्रीव की सहायता मिल गयी है। पता चल गया है कि सीता लंका में लंकापति के पास है। वहीं सीता की लोकेशन (स्थिति) की पक्की पड़ताल के लिए हनुमान समुद्रपार जा रहे है।
जामवंत से प्रोत्साहन पाकर उत्साह से भरे किष्किन्धा नरेश सुग्रीव के प्रमुख सेनानायक हनुमान, सीता की खोज का संकल्प लेकर और शपथ उठाकर समुद्र लांघने चले। अनेक समुद्री विपत्तियों का सामना करते हुए वे उस पार पहुंचे और एक पर्वत (गिरि) पर चढ़कर उन्होंने लंका के वैभव, समृद्धि और राज्य-प्रबंध की झलक देखी। लंका के चारों ओर ऊंची-ऊंची लहरों से भरा हुआ समुद्र है। लंका की जगमगाती हुई ऊंची-ऊंची स्वर्ण अट्टालिकाओं का प्रकाश अत्यंत भव्यता के साथ फैला हुआ है।अ
नगर की शोभा तो अत्यंत ही चित्ताकर्षक है। विचित्र मणियों से सज्जित सोने की अट्टालिकाएं सघन रूप से बसी हुई हैं। चौराहों चौराहों पर बाजार हैं, उन तक जानेवाले अत्यंत व्यवस्थित पहुंच-मार्ग हैं, वीथिकाएं हैं। ऐसी बहुत सारी सुविधाओं से युक्त नगर अत्यंत सुन्दर लग रहा है। नगर के मार्गों पर हाथी, घोड़े, खच्चर आदि के समूह आ-जा रहे हैं। पैदल और रथ पर चलनेवाले समूहों की गिनती ही नहीं है। विभिन्न वेशों में पोशाक धारण किये हुए निशिचरों के समूहों और बलशाली सैन्यदलों का वर्णन किया ही नहीं जा सकता।1
नगर के चारों ओर सघन वन हैं। बाग, उपवन और वाटिकाएं है। तालाब हैं, कुएं है और बाउलियां हैं। नर, नाग, सुर, गंदर्भ आदि विभिन्न जातियों की ऐसी रूपवती कन्याएं हैं जो त्यागी, संन्यासी और योगी मुनियों के मन को मोहित करती हैं। (यह विचार बालब्रह्मचारी हनुमान करते हैं।) कहीं पर्वताकार विशाल देह और अत्यंत बलशाली मल्ल गरजन कर रहे हैं। इन सब के अलग-अलग अखाड़े हैं, जहां वे एक दूसरे का चुनौतियां देते हुए आपस में ही जूझकर अभ्यास कर रहे हैं।2
विकट-तन-धारी (कमांडो, बाउन्सर, पहलवान) करोड़ो सैनिक नगर को चारों ओर से घेरकर रक्षा कर रहे हैं। अलग अलग स्थानों पर उनके भोजन की व्यवस्था है। अलावों और भट्टों के ऊपर कहीं भैंस (बीफ़) पकायी जा रही हैं, कहीं मनुष्यों को ही मारकर पकाया जा हैं, कहीं गाय, गदहे, बकरे, आदि पका कर खाए जा रहे हैं। इन सब की कथा बताने के पीछे तुलसीदास अपना प्रयोजन यह बताते हैं कि एक दिन यह सभी रघुनाथ के तीरों से मरकर शरीर त्यागेंगे और फिर अच्छी गति को पायेंगे।(ऐसा शरीर धारण करेंगे जिसमें शाकाहार करेंगे।)3
दोहा: बहुत से रक्षकों को देखकर हनुमान ने मन में विचार किया कि रात की प्रतीक्षा की जाये और अति-सूक्ष्म रूप धरकर (अनुकूल वेष बनाकर, छद्म वेष में) नगर में प्रवेष किया जाये। ऐसा वह हनुमान सोच रहे हैं जो दुर्गम समुद्र लांघकर आये हैं, जो सुरसा जैसी विशाल मछली को चकमा देकर आए हैं, जिन्होंने उस मायावी मछली को मारा है जो नभ पर उड़ते जीवों को अपने जादुई प्रभाव से खींचकर खा लेती थी। वे लंका के बलशाली व्यवस्था को देखकर सुरक्षित घुसपैठ का विचार कर रहे है। ऐसी सुरक्षा होनी चाहिए किसी देश की या नगर की सीमा की।
‘बन बाग, उपवन, वाटिका, सर, कूप, वापी’ मुझे हमेशा रोमांचित करते रहें है। पुलगामा, उरी की घटनाओं के समय भी मुझे ये पंक्तियां बहुत याद आयीं। अयोध्या में यद्यपि राम के भव्य राममंदिर का उद्घाटन हो रहा है किन्तु जिस स्तर की वहां सुरक्षा व्यवस्था बनाई गई है, मुझे यही पंक्तियां याद हो आईं। इसमें नगर की रक्षा से संबंधित जो जागरुकता और सावधानी दिखाई गई है, वह आशांवित करती है।
परिशिष्ट:
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी।
अति उतंग जलनिधि चहुँ पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा।।अ
छंद:
कनक कोट बिचित्र मनि-कृत सुन्दरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना।
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै।। 1
जामवंत से प्रोत्साहन पाकर उत्साह से भरे किष्किन्धा नरेश सुग्रीव के प्रमुख सेनानायक हनुमान, सीता की खोज का संकल्प लेकर और शपथ उठाकर समुद्र लांघने चले। अनेक समुद्री विपत्तियों का सामना करते हुए वे उस पार पहुंचे और एक पर्वत (गिरि) पर चढ़कर उन्होंने लंका के वैभव, समृद्धि और राज्य-प्रबंध की झलक देखी। लंका के चारों ओर ऊंची-ऊंची लहरों से भरा हुआ समुद्र है। लंका की जगमगाती हुई ऊंची-ऊंची स्वर्ण अट्टालिकाओं का प्रकाश अत्यंत भव्यता के साथ फैला हुआ है।अ
नगर की शोभा तो अत्यंत ही चित्ताकर्षक है। विचित्र मणियों से सज्जित सोने की अट्टालिकाएं सघन रूप से बसी हुई हैं। चौराहों चौराहों पर बाजार हैं, उन तक जानेवाले अत्यंत व्यवस्थित पहुंच-मार्ग हैं, वीथिकाएं हैं। ऐसी बहुत सारी सुविधाओं से युक्त नगर अत्यंत सुन्दर लग रहा है। नगर के मार्गों पर हाथी, घोड़े, खच्चर आदि के समूह आ-जा रहे हैं। पैदल और रथ पर चलनेवाले समूहों की गिनती ही नहीं है। विभिन्न वेशों में पोशाक धारण किये हुए निशिचरों के समूहों और बलशाली सैन्यदलों का वर्णन किया ही नहीं जा सकता।1
नगर के चारों ओर सघन वन हैं। बाग, उपवन और वाटिकाएं है। तालाब हैं, कुएं है और बाउलियां हैं। नर, नाग, सुर, गंदर्भ आदि विभिन्न जातियों की ऐसी रूपवती कन्याएं हैं जो त्यागी, संन्यासी और योगी मुनियों के मन को मोहित करती हैं। (यह विचार बालब्रह्मचारी हनुमान करते हैं।) कहीं पर्वताकार विशाल देह और अत्यंत बलशाली मल्ल गरजन कर रहे हैं। इन सब के अलग-अलग अखाड़े हैं, जहां वे एक दूसरे का चुनौतियां देते हुए आपस में ही जूझकर अभ्यास कर रहे हैं।2
विकट-तन-धारी (कमांडो, बाउन्सर, पहलवान) करोड़ो सैनिक नगर को चारों ओर से घेरकर रक्षा कर रहे हैं। अलग अलग स्थानों पर उनके भोजन की व्यवस्था है। अलावों और भट्टों के ऊपर कहीं भैंस (बीफ़) पकायी जा रही हैं, कहीं मनुष्यों को ही मारकर पकाया जा हैं, कहीं गाय, गदहे, बकरे, आदि पका कर खाए जा रहे हैं। इन सब की कथा बताने के पीछे तुलसीदास अपना प्रयोजन यह बताते हैं कि एक दिन यह सभी रघुनाथ के तीरों से मरकर शरीर त्यागेंगे और फिर अच्छी गति को पायेंगे।(ऐसा शरीर धारण करेंगे जिसमें शाकाहार करेंगे।)3
दोहा: बहुत से रक्षकों को देखकर हनुमान ने मन में विचार किया कि रात की प्रतीक्षा की जाये और अति-सूक्ष्म रूप धरकर (अनुकूल वेष बनाकर, छद्म वेष में) नगर में प्रवेष किया जाये। ऐसा वह हनुमान सोच रहे हैं जो दुर्गम समुद्र लांघकर आये हैं, जो सुरसा जैसी विशाल मछली को चकमा देकर आए हैं, जिन्होंने उस मायावी मछली को मारा है जो नभ पर उड़ते जीवों को अपने जादुई प्रभाव से खींचकर खा लेती थी। वे लंका के बलशाली व्यवस्था को देखकर सुरक्षित घुसपैठ का विचार कर रहे है। ऐसी सुरक्षा होनी चाहिए किसी देश की या नगर की सीमा की।
‘बन बाग, उपवन, वाटिका, सर, कूप, वापी’ मुझे हमेशा रोमांचित करते रहें है। पुलगामा, उरी की घटनाओं के समय भी मुझे ये पंक्तियां बहुत याद आयीं। अयोध्या में यद्यपि राम के भव्य राममंदिर का उद्घाटन हो रहा है किन्तु जिस स्तर की वहां सुरक्षा व्यवस्था बनाई गई है, मुझे यही पंक्तियां याद हो आईं। इसमें नगर की रक्षा से संबंधित जो जागरुकता और सावधानी दिखाई गई है, वह आशांवित करती है।
परिशिष्ट:
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी।
अति उतंग जलनिधि चहुँ पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा।।अ
छंद:
कनक कोट बिचित्र मनि-कृत सुन्दरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना।
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै।। 1
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि-मन मोहहीं
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं।। 2
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि-मन मोहहीं
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं।। 2
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट-तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं।
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही।। 3
दोहा-
पुर रखवारे देखि बहु, कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि, नगर करौं पइसार।।दो. 3।।
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2. राम आ रहे हैं तदनुसार सैन्य व्यवस्था
बहुत शोरगुल है कि राम आ रहे हैं ....मगर कौन से वाले?
एक राम जिसे ओंकार और निराकार कहकर नानक और कबीर ने लोकमानस में बैठाया और संस्कृत कालीन वाल्मीकीय दशरथ पुत्र राम भिन्न हैं और घट घट में व्यापी राम भिन्न हैं। नानक और कबीर घट घट व्यापी राम की अलख जगाते रहे। उनके बाद तुलसी आये जिन्होंने दशरथ पुत्र राम को जन जन के मन में स्थापित करने के लिये रामचरित मानस और रामलीला के माध्यम से, मुगल-सम्राट अकबर के समय से ही एड़ी चोटी एक कर दी थी। तब से अब तक उस राम को कोई विस्थापित नहीं कर पाया।
सैकड़ों वर्षों से नानक और कबीर के सर्वत्र व्यापी राम जन-जन के मन में बैठे हैं। उसे देखा नहीं जा सकता केवल अनुुुभव किया जा सकता है। दूसरी ओर हिंदुस्तान के करोड़ों मंदिरों में विराजमान दशरथनंदन हैं जिसको हम बचपन से देखते आ रहे हैं। जहां-जहां गए, वहां-वहां भव्य राम मंदिर देखे। हमारे वर्तमान शहर में दो-दो भव्य राम मंदिर हैं। पुराना राम मंदिर और नया राममंदिर। अनेक एकमुखी हनुमान मंदिरों और पंचमुखी हनुमान मंदिरों के बीच दो बड़े और प्रसिद्ध हनुमान मंदिर हैं। एक तो रेलवे स्टेशन से उतरकर नगर जाने के प्रवेशद्वार में, पँचराहे पर है। इस पँचराहे को हनुमान चौक के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई है। एक शहर के बीचोबीच बड़ा हनुमान मंदिर है। वह सिद्ध हनुमान मंदिर है। वहां किस प्रकार की सिद्धि मिलती है, यह मुझे पता नहीं है; नहीं तो बता देता।
हमारे शहर में तो पर्याप्त, यथेष्ठ, संतोषजनक संख्या में राम हैं। कम से कम पिछले 70 साल से हैं। (जिन्होंने अब तक इतने साल भारत को देखा है, उस हिसाब से।)
ऐसी स्थिति में अज्ञानी भारत की कोटि कोटि जनता सोचती है : "यह कौनसे तीसरे राम की स्थापना, और प्रतिष्ठा का हो-हल्ला हो रहा है!"
एक राम जिसे ओंकार और निराकार कहकर नानक और कबीर ने लोकमानस में बैठाया और संस्कृत कालीन वाल्मीकीय दशरथ पुत्र राम भिन्न हैं और घट घट में व्यापी राम भिन्न हैं। नानक और कबीर घट घट व्यापी राम की अलख जगाते रहे। उनके बाद तुलसी आये जिन्होंने दशरथ पुत्र राम को जन जन के मन में स्थापित करने के लिये रामचरित मानस और रामलीला के माध्यम से, मुगल-सम्राट अकबर के समय से ही एड़ी चोटी एक कर दी थी। तब से अब तक उस राम को कोई विस्थापित नहीं कर पाया।
सैकड़ों वर्षों से नानक और कबीर के सर्वत्र व्यापी राम जन-जन के मन में बैठे हैं। उसे देखा नहीं जा सकता केवल अनुुुभव किया जा सकता है। दूसरी ओर हिंदुस्तान के करोड़ों मंदिरों में विराजमान दशरथनंदन हैं जिसको हम बचपन से देखते आ रहे हैं। जहां-जहां गए, वहां-वहां भव्य राम मंदिर देखे। हमारे वर्तमान शहर में दो-दो भव्य राम मंदिर हैं। पुराना राम मंदिर और नया राममंदिर। अनेक एकमुखी हनुमान मंदिरों और पंचमुखी हनुमान मंदिरों के बीच दो बड़े और प्रसिद्ध हनुमान मंदिर हैं। एक तो रेलवे स्टेशन से उतरकर नगर जाने के प्रवेशद्वार में, पँचराहे पर है। इस पँचराहे को हनुमान चौक के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई है। एक शहर के बीचोबीच बड़ा हनुमान मंदिर है। वह सिद्ध हनुमान मंदिर है। वहां किस प्रकार की सिद्धि मिलती है, यह मुझे पता नहीं है; नहीं तो बता देता।
हमारे शहर में तो पर्याप्त, यथेष्ठ, संतोषजनक संख्या में राम हैं। कम से कम पिछले 70 साल से हैं। (जिन्होंने अब तक इतने साल भारत को देखा है, उस हिसाब से।)
ऐसी स्थिति में अज्ञानी भारत की कोटि कोटि जनता सोचती है : "यह कौनसे तीसरे राम की स्थापना, और प्रतिष्ठा का हो-हल्ला हो रहा है!"
कोई कोई तो 'राम-राज्य' होने की बात कह रहा है। कोई कह रहा है विष्णु का त्रेता युगीन अवतार हो रहा है। अद्भुत है। हम बचपन से सुनते आए हैं कि कलयुग की समाप्ति के बाद सतयुग आएगा। यह संभवत: नयी टेक्नॉलॉजी है, जिसमें कलयुग में ही 'सतयुग' को स्किप करके त्रेतायुग आ रहा है।
मध्यमवर्गीय सोच का क्या है, उसे तो सारे युग एक से हैं। उसे रामराज्य वगैरह कल्पना और राजनीति की बात लगती है। एक कलयुग ही उसने देखा है और वही यथार्थ लगता है।
खैर, अगर सचमुच किसी चमत्कार के कारण सतयुग को लांघकर त्रेता आ रहा है तो, इस बात पर जिनका भरोसा है, उनको बधाई! उनकी तथाकथित सकारात्मकता क्यों तोड़ी जाये?
राम आ रहे हैं तो बड़ी चाक चौबस्त व्यवस्था है। विभिन्न प्रकार के सुरक्षा कर्मियों और सैनिकों की व्यवस्था युद्ध-स्तर की है।
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