कोविड 19 : अभिशाप या वरदान यह शीर्षक हमारा जाना पहचाना है। कोविड19 को भी पिछले 10 महीनों में जान पहचान लिया। वैक्सीन विहीन से को-वैक्सीन के वितरण और विश्व निर्यात किये जाने तक उसकी भयावहता और नियंत्रण तक के चक्र को हमने देखा। हमको जब गर्भ-ग्रहों में रहते या हमारे बजट को चरमराकर मास्क और सैनीटाईर्ज़र खरीदती ज़िन्दगी इन हालातों की आदत हो गयी थी तब इस को-वैक्सीन के जन्म की विशेष या बिल्कुल भी खुशी नहीं हुई। हम परम्परावादी भर्तियों के घर जैसे बेटी जन्मी हो। भले हम बेटी बचाओ के फैशन के चलते ऊपर से ख़ुशी ज़ाहिर करते फिरें, अंदर से हम मध्यमवर्गी मानसिकता के शिकार अब भी हैं। इसका कारण हमारा दिन ब दिन बेक़ाबू होता अर्थतंत्र है। बहरहाल, इस कोविड-19 के अज्ञातवास में, कोपभवन में या गर्भ-गृह में कैसे बिताया, यह बहुत मायने रखता है। लॉक डाउन बहुतों के लिए बहुत पीड़ा दायक रहा। नुकसानदेह रहा। बहुतों की नौकरी चली गयी। मैं सेवा निवृत्त था। बेटे की नौकरी छोड़कर घर बैठने के नुकसान के बावजूद मुझ जैसे शिक्षक के लिए लॉक डाउन अभिशोप नहीं रहा। दीवान के भीतर बहुत सालों से बोरे में क़ैद पुस्तकों को मुक्त करने का अवसर
१२ जनवरी २१ : विवेकानंद जयंती* *(१२.१.२१, उत्तर से पढ़ो या दक्षिण से, एक ही है। यह तिथि 12 बजे रात तक मान्य है। फिर अगले 100 साल प्रतीक्षा करना।😊👍) * विवेकानन्द आज राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के शलाका पुरुष विवेकानंद का जन्म दिन है। यह दिन युवा दिवस और योग दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। विगत तीन दशकों से यह एक वृहद शासकीय आयोजन के रूप में प्रत्येक शासकीय शिक्षण संस्थानों और कार्यालयों में सरकार की प्रतिष्ठा बढ़ाने का अनिवार्य उपक्रम बन गया है। राष्ट्रीय सेवा योजना विवेकानंद को समर्पित है। विवेकानंद के वैज्ञानिक और कर्मकांड के विरोध में प्रकट विचारों ने विज्ञानवादी प्रगतिशील जनमानस पर भी गहरी छाप छोड़ी। संन्यासी और वेदांती होने के बावजूद वे सामाजिक क्रांति के युवकों के प्रणेता बने रहे। 'गर्व से कहो हम हिन्दू हैं' का नारा उनके साथ जुड़ा और हिंदुत्व के वे प्रतीक बन गए। भले ही हिंदुत्व की स्थापना में अपने अक्षुण्य योगदान के कारण वे एक सीमित सत्तावर्णी उच्च वर्ग के पूर्वज हो गए हों किन्तु उनके कुछ विचार हर ऊर्जावान क्रांतिकारी को प्रेरणा तो देता ही है। भारत के किसान आज भारत क