गीतल (५ द्विपद) मानसिक संकल्प उत्साहों में ढलना चाहिये। तब कहीं लक्ष्यित दिशा की ओर चलना चाहिये। शौर्य का अनुबंध है मालिन्य गलना चाहिये। स्वप्न को पुरुषार्थ के पलने में पलना चाहिये। तारकों को चाहिए गणना करें हर यत्न की, दीपकों को मील के पत्थर पे जलना चाहिये। प्राण की चिंता उसे जाने न जो जीवन कला, द्वंद्व में प्रतिद्वंद्वियों को हाथ मलना चाहिये। रक्त में हो ऊर्जा के ताप का ज्वालामुखी, हीनता के हिम-प्रखंडों को पिघलना चाहिए। @डॉ. रा. रामकुमार, २४.०२.२४ शब्दार्थ : हिम-प्रखंड = आइस बर्ग, ठंडे समुद्र में बर्फ़ के शिलाखंड। विधान : आधार छंद - गीतिका गीतिकाश्री गीतिकाश्री गीतिकाश्री गीतिका मापनी - गालगागा गालगागा गालगागा गालगा, मापांक -2122 2122 2122 212 समान्त(काफ़िया) - अलना, पदान्त(रदीफ़) - चाहिए
राम का बाज़ारवाद और प्रेषण-प्रेक्षण का अंकेक्षण कुमार विश्वास का कवि उनके प्रखर वक्ता के व्यक्तित्व के नीचे दब गया है। अपनी धाराप्रवाह वक्तृत्व शैली, अपने लोकरंजक मुहावरों, अपनी विलोम और वाम टिप्पणियों के कारण उनका बाज़ार-मूल्य सब परफॉर्मर प्रोफेसनल्स से उच्चतम है। कविमंच पर संचालन की क़ीमत को अब तक की सबसे ऊंची गद्दी पर ले जाने का श्रेय कुमार विश्वास को है। यह कविता के बल पर नहीं हुआ है, इसे गाहे ब गाहे सभी स्वीकार करते हैं। बाज़ार के मूड को समझना और अपनी कुशल विपणन-शैली के माध्यम से, बाज़ार में नयी वस्तु को उतारकर ऊंचे दामों में बेचना ही इस युग की उपलब्धि और सफलता है। डॉ. विश्वास शर्मा ने अपनी क्षमता को पहचाना और बाज़ार में बढ़ती मांग के अनुकूल वे वक्ता के रूप में 'राम-कथा' लेकर उतर गए। अपने अज़ीब 'पुराधुनातन' परिधान में वे राम कथा का नया संस्करण प्रस्तुत करने लगे। राम का चरित्र ही ऐसा है कि प्रेम का कवि रामकथा का प्रवचन-कर्ता बन गया। राम-कथा में संस्करणों की असंख्य सम्भावना भरी पड़ी है। जिस प्रकार 'रामचरित-मानस' की चौपाइया