राम का बाज़ारवाद और प्रेषण-प्रेक्षण का अंकेक्षण
कुमार विश्वास का कवि उनके प्रखर वक्ता के व्यक्तित्व के नीचे दब गया है। अपनी धाराप्रवाह वक्तृत्व शैली, अपने लोकरंजक मुहावरों, अपनी विलोम और वाम टिप्पणियों के कारण उनका बाज़ार-मूल्य सब परफॉर्मर प्रोफेसनल्स से उच्चतम है। कविमंच पर संचालन की क़ीमत को अब तक की सबसे ऊंची गद्दी पर ले जाने का श्रेय कुमार विश्वास को है। यह कविता के बल पर नहीं हुआ है, इसे गाहे ब गाहे सभी स्वीकार करते हैं।
बाज़ार के मूड को समझना और अपनी कुशल विपणन-शैली के माध्यम से, बाज़ार में नयी वस्तु को उतारकर ऊंचे दामों में बेचना ही इस युग की उपलब्धि और सफलता है।
डॉ. विश्वास शर्मा ने अपनी क्षमता को पहचाना और बाज़ार में बढ़ती मांग के अनुकूल वे वक्ता के रूप में 'राम-कथा' लेकर उतर गए। अपने अज़ीब 'पुराधुनातन' परिधान में वे राम कथा का नया संस्करण प्रस्तुत करने लगे। राम का चरित्र ही ऐसा है कि प्रेम का कवि रामकथा का प्रवचन-कर्ता बन गया।
समकालीन युग में लेखक श्री रामकुमार भ्रमर ने रामकथा की उपन्यास श्रृंखला प्रस्तुत की। अभिनेता और कवि आशुतोष राणा ने भी रामकथा पर कोई पुस्तक लिखी है, जिसके प्रकाशन की जानकारी मुझे नहीं है।
भोपाल में एक पत्रसमुह द्वारा आयोजित कविसम्मेलन में श्री कुमार विश्वास के संचालन में एक कवि प्रस्तुत हुए श्री शकील आज़म। उन्होंने उर्दू की नज़्म शैली में पात्रों के माध्यम से राम कथा प्रस्तुत की है। शीर्षक जंगल यात्रा या राम-वनवास रखा है। अहल्या और उर्मिला शीर्षक नज़्म सुनाते हुए उन्होंने बताया कि एक महीने के भीतर 'राम वनवास' पुस्तक के प्रथम संस्करण की सभी प्रतियां राम भक्तों ने खरीदकर एक नया कीर्तिमान खड़ा किया है। कृष्णबिहारी नूर की गदगद शैली में आत्मविश्वास से भरे शायर शकील आज़म ने भोपाल की जनता के प्रति भरोसा जताते हुए कहा कि इस महीने के अंत तक भोपाल के घर घर में उनकी पुस्तक की प्रतियां अवश्य होंगी। 'राम भक्त' उनका भरोसा नहीं टूटने देंगे यह मेरा भी भरोसा हो चला है।
राम राज बैठे त्रैलोका।
दो. वरनाश्रम निज निज धरम, निरत वेद-पथ लोक।
चलहिं सदा पावहिं सुखहिं, नहिं भय रोग न सोक॥
तुलसीदासजी भी अद्भुत लिख गए। राम राज पर 'त्रिलोक के स्वामी' के बैठते ही आपस का बैर मिट गया। विषमता कहीं दिखाई नहीं देती। तुलसीदासजी कहते हैं कि वेदपथ पर चलने से और वर्णाश्रम तथा अपने अपने धर्म पर चलने से ही हमेशा सुख मिलेगा। न किसी प्रकार का भय होगा, न रोग होगा, न कोई शोक होगा।
दैहिक दैबिक भौतिक तापा
राम-राज काहुक नहि ब्यापा।।
मुग़ल काल में मुग़लेआज़म अकबर के शासन काल में रची गईं ये पंक्तियां आज कितनी सार्थक हैं, यह सोचकर ही रोमांच होता है। ये पंक्तियां उन तक पहुंचा देनी चाहिए जो बदलती हुई परिस्थिति, रामराज, मनुस्मृति, हिंदुत्व आदि से अपने अस्तित्व के लिए चिंतित और भयभीत थे, डर रहे थे। वर्णाश्रम और धर्म का पालन करो, देखो कैसे सुख पाओगे और भयमुक्त हो जाओगे।
शम्बूक भी वाल्मीकि की भांति कथा गाएंगे और रामराज में निर्भय हो जाएंगे।
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@ हर्षवर्धन क्षणक्षणानंद,
२१.०२.२४
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