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Showing posts from November, 2023

'मेल मुलाक़ात' का गीत ..

  'मेल मुलाक़ात' का गीत .. संदेशों के शब्दों में कब तक मिलोगे, कभी रूबरू भी मुलाक़ात कर लो। न जाने कई दिन का क्या क्या दबा है, चले आओ खुलकर सभी बात कर लो।  न तुम जानते थे, न हम जानते थे, हमें दूरियों की ख़बर ही नहीं थी। ज़रा खिंच के दौड़ी, चली आये वापस, ये दूरी वो  खेंची, रबर ही नहीं थी। अकथनीय बंधन थे, मज़बूरियों के, नहीं छूट थी, कुछ अकस्मात कर लो।  दबाये रखे दुख, बहाने बनाकर, कभी भूलकर, ना बहे भावना में। बचाये रखी साख सम्बन्ध की सब, जिलाये रखा उसको शुभकामना में। मिले पर्व के पल, मिलन के परस्पर, भरो अंजुरी इनको सौग़ात कर लो। सभी स्वप्न स्वर्णिम, सभी सुख सुहाने, सु-स्वर्णाक्षरों में लिखी पुस्तकें हैं। दुखी दुर्दिनों को न कोसा करें हम, ये संभावना से भरी दस्तकें हैं।   समूचा जो साकार है 'आज' प्रस्तुत, वही सच है, स्वीकार, संज्ञात कर लो।  ० @कुमार, सोम,२७.११.२३, ०५.५७,  संज्ञात : पूर्णतः मान्य, आत्मसात,

बारह मुकरियां।(5+5+2=12)

  शीत काल की पांच मुकरियां 1.  माघ-पूस में उसका होना।  उससे ख़ूब लिपटकर सोना।।         मौसम का धन, ऋतु का सम्बल।         ए सखि साजन,         ना सखि कम्बल।।                 2. चुनकर उत्तम  वरा, सँवारा।  कठिन रात का वही गुज़ारा।।                  बस, उससे ही गर्मी पाई।                   ए सखि साजन,                  नहीं रजाई।। 3.  सूखी यादें, ढूंढ समेटे।  सांसों की कुछ आग लपेटे।।               दहकाये फिर तपते भाव।                    ए सखि साजन,                  नहीं अलाव।।    4.  धड़कन जैसी रहे धधकती। छाती से लग, गले लटकती।              चाहे पर ना भरे चौकड़ी।              क्यों सखे सजनी?              नहीं, काँगड़ी। 5. उसकी लौ के सभी चहेते। हाथ बढ़ा उसका सुख लेते।              घिरी रहे वह लाड़ो घर की ।              क्यों, नई दुल्हन?              ना भई, गुरसी।।         @कुमार, २१.११.२३, वृहस्पति.           आयुषी पाम ग्रीन, गंगानगर, जबलपुर.    ०        शब्दार्थ : १. काँगड़ी > कश्मीरी पहाड़ियों में छाती सेंकने के लिए गले से लटकती छोटी से सिगड़ी। २. गुरसी > बुंदेलखंड में गुरसी, छत्तीसगढ़ में गोरसी