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Showing posts from December, 2009

नव वर्ष: किचन के संदर्भ में

किचन में पर्ववत् सन्नाटा है। मैं चाहता हूं नए वर्ष की सरगर्मी और उत्साह मेरे किचन में भी दिखाई दे। मैं बार बार किचन में जाता हूं और मिट्टी तेल के पीपे को उलटता पलटता हूं और निराश हो जाता हूं। मैं जादूगर आनंद या पी सी सरकार होता तो ऐसी निराशा मुझे नहीं होती। मैं एक बार मिट्टी तेल के खाली पीपे को हिलाता और उसे किचन में रखकर बेडरूम में चला जाता। बिस्तर पर पालथी मारकर बीड़ी के चार पांच कश लेता और बुझाकर उसे मिट्टी के एक कुल्हड़ में डाल देता । फिर बड़े इत्मीनान से किचन में घुसता । संजीवकुमार की तरह बांह हिलाकर कमीज की आस्तीनें बिना हाथ लगाए ऊपर सरकाता और झुककर पीपा उठाता । अब पीपा मिट्टी तेल से भरा होता। तालियों की गड़गड़ाहट से किचन भर जाता । ज्यादातर ये तालियां किचन में उपस्थित खाली डिब्बे और पतीलियां , अपने जलने का इंतजार करता स्टोव और केवल बीड़ी पीने के लिए इस्तेमाल की जा रही माचिस की डिबिया ही बजा रही होतीं। किचन में जो मुट्ठी भर भरी भरी सी चीजें होतीं वे अपने आभिजात्य के गर्व में केवल मुंह बनाती या दिखावे के लिए मुस्कुराती। मगर यह तो एक संभावित असंभव कल्पना है। वास्तविकता यह है कि किच

दो पहियों का फ़र्क़

जीवन में दो का बहुत महत्त्व है। दो आंखें , दो कान , दो हाथ , दो पैर , दो फैफड़े, दो किडनियां आदि और इत्यादि। जिन्हें ज्ञान की कमी नहीं हैं किन्तु समय की कमी है ,जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें जीवन के सूत्र नहीं मालूम, ऐसे लोगों को टीवी देखकर सीखना चाहिए। उसमें सीरियल से विज्ञापन आते हैं जो टीवी को जीवन दान देते हैं। और अधिक गंभीरता से सोचें तो बीवी को भी जीवन प्रदान करते हैं। बहुत ज्यादा गंभीरता से सोचा जा सके तो यहां भी देखिए कि दो का ही महत्त्व है। टीवी और बीवी। गृहस्थी को वास्तविक गृहस्थी का स्वरूप देने में इन दो का ही योगदान है। दोनों के बिना गृहस्थी एकाकी है। एकाकी का अर्थ ही है कि जो दो नहीं हैं। बात को आगे बढ़ाने पर हम देखते हैं कि दो और दो चार होते है। चार का भी बहुत महत्त्व है क्योंकि वह दो का दूना है। किन्तु हे भारतीय दर्शक! आज जो दो है , वह सबसे पहले चार था। मनुष्य जिसका अंश है , वह विष्णु या नारायण चार हाथोंवाला दिखाई देता है। ब्रह्मा के चार मुंह थे। जिसके लिए हम मारामारी करते हैं, वह लक्ष्मी चार हाथोंवाली है। वैज्ञानिक बताते हैं कि आदमी भी पहले चार पैरोंवाला था। पूर्वजों के

शिल्पा की शादी और खिसिआया हुआ मैं

सुबह रोज की तरह से ज्यादा खराब है। शाल लपेटकर मैं कुहरे में छीजती नुक्कडिया छाबड़ी में फुल चाय के लम्बे गहरे घूंट भर रहा हूं ताकि छाती सिंक जाए। समाने एक टेबल पर टीवी रखा है जो ग्राहको को लुभाने का काम कर रहा है। चााय के घूंट भरकर उसे मैं छाती में महसूस करता हूं और दूसरा घूंट भरने के पहले के अंतराल में टीवी देख लेता हूं। टीवी में शिल्पा की शादी का हो हल्ला है।मैं थोड़ी देर बर्दास्त करता हूं लेकिन जल्दी मेरी चाय कड़वी लगने लगती है। छाबड़ी में टूटी हुई बेंच और गंदा टेबल मुझे बेचैन करने लगते हैं। वे शिल्पा की भव्य शादी के साथ मैच नहीं कर रहे। मैं उठकर घर लौट आता हूं। शिल्पा की शादी मेरे जहन में छूटी हुई चाय की तरह चिपकी चली आती है। ं मुझे समझ नहीं आता कि मौसम इस बुरी तरह खराब है और शिल्पा की शादी हो रही है ? शिल्पा की शादी होने से मौसम खराब है या मौसम खराब है इसलिए शिल्पा शादी कर रही है ,इस बात से मै पूरी तरह आश्वस्त नहीं हूं। शिल्पा की शादी से वैसे भी मेरा कोई लेना देना नहीं है। हां मौसम खराब होने से है। मौसम की खराबी ने मेरा बजट बिगाड़ दिया है। ठंड बुरी तरह बढ़ गई है और बर्फीली सर्दी में नहा