किचन में पर्ववत् सन्नाटा है।
मैं चाहता हूं नए वर्ष की सरगर्मी और उत्साह मेरे किचन में भी दिखाई दे।
मैं बार बार किचन में जाता हूं और मिट्टी तेल के पीपे को उलटता पलटता हूं और निराश हो जाता हूं।
मैं जादूगर आनंद या पी सी सरकार होता तो ऐसी निराशा मुझे नहीं होती। मैं एक बार मिट्टी तेल के खाली पीपे को हिलाता और उसे किचन में रखकर बेडरूम में चला जाता। बिस्तर पर पालथी मारकर बीड़ी के चार पांच कश लेता और बुझाकर उसे मिट्टी के एक कुल्हड़ में डाल देता । फिर बड़े इत्मीनान से किचन में घुसता । संजीवकुमार की तरह बांह हिलाकर कमीज की आस्तीनें बिना हाथ लगाए ऊपर सरकाता और झुककर पीपा उठाता । अब पीपा मिट्टी तेल से भरा होता। तालियों की गड़गड़ाहट से किचन भर जाता । ज्यादातर ये तालियां किचन में उपस्थित खाली डिब्बे और पतीलियां , अपने जलने का इंतजार करता स्टोव और केवल बीड़ी पीने के लिए इस्तेमाल की जा रही माचिस की डिबिया ही बजा रही होतीं। किचन में जो मुट्ठी भर भरी भरी सी चीजें होतीं वे अपने आभिजात्य के गर्व में केवल मुंह बनाती या दिखावे के लिए मुस्कुराती। मगर यह तो एक संभावित असंभव कल्पना है। वास्तविकता यह है कि किचन में पूर्ववत् सन्नाटा है।
मैंने फिर सिलिण्डर के नाब को घुमाया और चूल्हे के बर्नर को आन कर लाइटर किटकिटाया। बर्नर ने बिजली विभाग या राजस्व विभाग या किसी भी विभाग के क्लर्क की तरह कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। मैंने फिर सिलिण्डर को हिलाया । फिर वही क्रियाएं दोहराई। इस बार भी कोई जादू नहीं हुआ। किचन तालियों की गड़गड़ाहट से नहीं भरा। मैं आदतन निराश होकर अपने बेडरूम कम स्टडी कम मीटिंग एंड ईटिंग रूम में लौट आया ।
डिप्रेशन और इन्फीरियटी में इस बार मैंने किसी दोस्त की छूटी हुई सिगरेट की डिबिया उठाई और उसमंे संयोग से उपलब्ध सिगरेट निकाली और गरीबों की प्रतिनिधि माचिस से ही जला ली। दो तीन कश लेने के बाद भी मुझे किचन मायूस और असहाय दिखाई दिया।
मैंने ध्यान बंटाने के लिए फिर टेबिल की मदद ली । टेबिल पर नए वर्ष की ग्रीटिंग तह की हुई रखीं हैं। बस पूरे कमरे में केवल ग्रीटिंग हैं जो करीने से रखीे हैं। बाकी सारी चीजें आम भारतीय नागरिकों की तरह बदहवास मायूस और उखड़ी हुई और अपने खास तेवर के साथ बिखरी हुई बेपरवाह सी पड़ी हुई हैं। मैं उन सब को देखकर आदतन शर्मिंदा हो जाता हूं।
नया वर्ष मेरे कमरे में नहीं आया है। किचन ,कमरे और मुझ कमबख्त में वही पुराने वर्ष की उदासी , खामोशी और बासीपन है।
दर असल सब यथावत है ,सनातन धर्म की तरह। वही रोज़मर्रा की तरह कभी यह नहीं , कभी वह नहीं का सिलसिला। उम्मीदों में जीता हुआ किचन। बदले जाने की कल्पना से अछूता दरवाजे पर लटका हुआ शर्मिंदा पर्दा और तिथियों से बेपरवाह मैं। कैलेण्डर मैंने कभी नहीं खरीदा और मेरी रिस्टवाच में डेट नहीं है। समय मैं दूसरों से पूछता हूं क्योंकि घड़ी के बिगड़ने के बाद मैंने उसे डिस्टर्ब नहीं किया। जैसे बिगड़ने के बाद हम अपने अधिकारी को डिस्टर्ब नहीं करते।
मैं इतवार को भी आफिस जाता हूं और चैकीदार के साथ बीड़ी और चाय पीकर लौट आता हूं। खाना मैं क्यों ,कैसे ,कब ,कहां ,क्या और किसलिए खाता हूं ,मुझे कुछ पता नहीं। तनख्वाह कभी एक तारीख को नहीं मिली। डीडीओ अक्सर एक तारीख को हेडक्वार्टर चला जाता है या बीमार पड़ जाता है। पैसा उसकी जेब से नहीं जाता मगर दस्तखत करने के एकमात्र सुख को वह लम्बा खींचकर नीरस ज़िदगी में रस का संचार करता है।उसके हाथ में हस्ताक्षर एक हेंडग्रेनेड की तरह है जिसे वह अक्सर चमकाता रहता है -‘‘खबरदार सालों ! मुझसे डरो । मेरे हाथ में तुम्हें मजा चखाने के लिए हस्ताक्षर है।’’
हम कुछ नहीं कहते। वह उसका मनोरंजन है। वह प्रशासन का आदमी है। उसके खिलाफ शिकायत करनेपर कोई सुनवाई नहीं होती। इसलिए हम भागयवादी हो गए हैं। चमत्कार का इंतजार करनेवाले नामुराद लोग।
मैंने फिर ग्रीटिंग उठा ली। बहुतों की जिन्दगी ऐसे ही कट रही है। खाली बैठे हैं और एक ही चीज को उठा रहे हैं और रख रहे है।
मैंने ग्रीटिंग उठाई तो मुझे उसमें धड़कन सुनाई दी। ग्रीटिंग को देखता हूं तो लगता है बाकी दुनिया में अभी सांस बाकी है। देखो कितनी बढ़िया ग्रीटिंग इन्होंने भेजी है। कैसे बढ़िया बढिया फूल , कैसे बढ़िया चेहरे , हंसमुंख और खाते पीते से। सोचता हूं ..इनके किचन में मिट्टी तेल तो जरूर होगा । शक्कर और बाकी चीजें भी करीने से रखीं होंगी। इस समय वे चाय पी रहे होंगे।
मैं ग्रीटिंग को देखता हूं और चोर निगाहों से अपने किचन को । मैं धीरे से हाथ बढ़ाकर ग्रीटिंग को छूता हूं और बड़ी उम्मीद के साथ टेबिल की दूसरी तरफ़ पड़े राशन कार्ड को उठाता हूं। मगर उस कमबख्त में नए वर्ष की ग्रीटिंग की तरह हसीन धड़कनें नहीं मिलती। हमेशा बंद रहनेवाली राशन-दूकान की तरह उसके अस्तित्व पर खालीपन पसरा हुआ है।
मैं घबराकर राशन कार्ड को रखकर फिर ग्रीटिंग-कार्ड उठा लेता हूं।
देखता हूं ,किसी को मेरे कुवांरेपन को छूने में मजा आ रहा है। उसने श्रीदेवी की तस्वीर भेजी है। मैं श्रीदेवी की बड़ी बड़ी आंखों में जाने क्या देखता हूं कि अचानक किचन की तरफ देखने लगता हूं। शायद मुझे उम्मीद थी कि तस्वीर से निकलकर श्रीदेवी किचन संभाल रही है और मेरे लिए सबसे पहले एक कप चाय तैयार कर रही है।
मगर अफसोस वैसा नहीं होता । किचन में पूर्ववत् सन्नाटा है।
// अमृतसंदेश ,रायपुर में धारावाहिक प्रकाशित अपने व्यंग्य स्तंभ 'नीरक्षीर' 12 जनवरी 1989 . से .साभार //
मैं चाहता हूं नए वर्ष की सरगर्मी और उत्साह मेरे किचन में भी दिखाई दे।
मैं बार बार किचन में जाता हूं और मिट्टी तेल के पीपे को उलटता पलटता हूं और निराश हो जाता हूं।
मैं जादूगर आनंद या पी सी सरकार होता तो ऐसी निराशा मुझे नहीं होती। मैं एक बार मिट्टी तेल के खाली पीपे को हिलाता और उसे किचन में रखकर बेडरूम में चला जाता। बिस्तर पर पालथी मारकर बीड़ी के चार पांच कश लेता और बुझाकर उसे मिट्टी के एक कुल्हड़ में डाल देता । फिर बड़े इत्मीनान से किचन में घुसता । संजीवकुमार की तरह बांह हिलाकर कमीज की आस्तीनें बिना हाथ लगाए ऊपर सरकाता और झुककर पीपा उठाता । अब पीपा मिट्टी तेल से भरा होता। तालियों की गड़गड़ाहट से किचन भर जाता । ज्यादातर ये तालियां किचन में उपस्थित खाली डिब्बे और पतीलियां , अपने जलने का इंतजार करता स्टोव और केवल बीड़ी पीने के लिए इस्तेमाल की जा रही माचिस की डिबिया ही बजा रही होतीं। किचन में जो मुट्ठी भर भरी भरी सी चीजें होतीं वे अपने आभिजात्य के गर्व में केवल मुंह बनाती या दिखावे के लिए मुस्कुराती। मगर यह तो एक संभावित असंभव कल्पना है। वास्तविकता यह है कि किचन में पूर्ववत् सन्नाटा है।
मैंने फिर सिलिण्डर के नाब को घुमाया और चूल्हे के बर्नर को आन कर लाइटर किटकिटाया। बर्नर ने बिजली विभाग या राजस्व विभाग या किसी भी विभाग के क्लर्क की तरह कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। मैंने फिर सिलिण्डर को हिलाया । फिर वही क्रियाएं दोहराई। इस बार भी कोई जादू नहीं हुआ। किचन तालियों की गड़गड़ाहट से नहीं भरा। मैं आदतन निराश होकर अपने बेडरूम कम स्टडी कम मीटिंग एंड ईटिंग रूम में लौट आया ।
डिप्रेशन और इन्फीरियटी में इस बार मैंने किसी दोस्त की छूटी हुई सिगरेट की डिबिया उठाई और उसमंे संयोग से उपलब्ध सिगरेट निकाली और गरीबों की प्रतिनिधि माचिस से ही जला ली। दो तीन कश लेने के बाद भी मुझे किचन मायूस और असहाय दिखाई दिया।
मैंने ध्यान बंटाने के लिए फिर टेबिल की मदद ली । टेबिल पर नए वर्ष की ग्रीटिंग तह की हुई रखीं हैं। बस पूरे कमरे में केवल ग्रीटिंग हैं जो करीने से रखीे हैं। बाकी सारी चीजें आम भारतीय नागरिकों की तरह बदहवास मायूस और उखड़ी हुई और अपने खास तेवर के साथ बिखरी हुई बेपरवाह सी पड़ी हुई हैं। मैं उन सब को देखकर आदतन शर्मिंदा हो जाता हूं।
नया वर्ष मेरे कमरे में नहीं आया है। किचन ,कमरे और मुझ कमबख्त में वही पुराने वर्ष की उदासी , खामोशी और बासीपन है।
दर असल सब यथावत है ,सनातन धर्म की तरह। वही रोज़मर्रा की तरह कभी यह नहीं , कभी वह नहीं का सिलसिला। उम्मीदों में जीता हुआ किचन। बदले जाने की कल्पना से अछूता दरवाजे पर लटका हुआ शर्मिंदा पर्दा और तिथियों से बेपरवाह मैं। कैलेण्डर मैंने कभी नहीं खरीदा और मेरी रिस्टवाच में डेट नहीं है। समय मैं दूसरों से पूछता हूं क्योंकि घड़ी के बिगड़ने के बाद मैंने उसे डिस्टर्ब नहीं किया। जैसे बिगड़ने के बाद हम अपने अधिकारी को डिस्टर्ब नहीं करते।
मैं इतवार को भी आफिस जाता हूं और चैकीदार के साथ बीड़ी और चाय पीकर लौट आता हूं। खाना मैं क्यों ,कैसे ,कब ,कहां ,क्या और किसलिए खाता हूं ,मुझे कुछ पता नहीं। तनख्वाह कभी एक तारीख को नहीं मिली। डीडीओ अक्सर एक तारीख को हेडक्वार्टर चला जाता है या बीमार पड़ जाता है। पैसा उसकी जेब से नहीं जाता मगर दस्तखत करने के एकमात्र सुख को वह लम्बा खींचकर नीरस ज़िदगी में रस का संचार करता है।उसके हाथ में हस्ताक्षर एक हेंडग्रेनेड की तरह है जिसे वह अक्सर चमकाता रहता है -‘‘खबरदार सालों ! मुझसे डरो । मेरे हाथ में तुम्हें मजा चखाने के लिए हस्ताक्षर है।’’
हम कुछ नहीं कहते। वह उसका मनोरंजन है। वह प्रशासन का आदमी है। उसके खिलाफ शिकायत करनेपर कोई सुनवाई नहीं होती। इसलिए हम भागयवादी हो गए हैं। चमत्कार का इंतजार करनेवाले नामुराद लोग।
मैंने फिर ग्रीटिंग उठा ली। बहुतों की जिन्दगी ऐसे ही कट रही है। खाली बैठे हैं और एक ही चीज को उठा रहे हैं और रख रहे है।
मैंने ग्रीटिंग उठाई तो मुझे उसमें धड़कन सुनाई दी। ग्रीटिंग को देखता हूं तो लगता है बाकी दुनिया में अभी सांस बाकी है। देखो कितनी बढ़िया ग्रीटिंग इन्होंने भेजी है। कैसे बढ़िया बढिया फूल , कैसे बढ़िया चेहरे , हंसमुंख और खाते पीते से। सोचता हूं ..इनके किचन में मिट्टी तेल तो जरूर होगा । शक्कर और बाकी चीजें भी करीने से रखीं होंगी। इस समय वे चाय पी रहे होंगे।
मैं ग्रीटिंग को देखता हूं और चोर निगाहों से अपने किचन को । मैं धीरे से हाथ बढ़ाकर ग्रीटिंग को छूता हूं और बड़ी उम्मीद के साथ टेबिल की दूसरी तरफ़ पड़े राशन कार्ड को उठाता हूं। मगर उस कमबख्त में नए वर्ष की ग्रीटिंग की तरह हसीन धड़कनें नहीं मिलती। हमेशा बंद रहनेवाली राशन-दूकान की तरह उसके अस्तित्व पर खालीपन पसरा हुआ है।
मैं घबराकर राशन कार्ड को रखकर फिर ग्रीटिंग-कार्ड उठा लेता हूं।
देखता हूं ,किसी को मेरे कुवांरेपन को छूने में मजा आ रहा है। उसने श्रीदेवी की तस्वीर भेजी है। मैं श्रीदेवी की बड़ी बड़ी आंखों में जाने क्या देखता हूं कि अचानक किचन की तरफ देखने लगता हूं। शायद मुझे उम्मीद थी कि तस्वीर से निकलकर श्रीदेवी किचन संभाल रही है और मेरे लिए सबसे पहले एक कप चाय तैयार कर रही है।
मगर अफसोस वैसा नहीं होता । किचन में पूर्ववत् सन्नाटा है।
// अमृतसंदेश ,रायपुर में धारावाहिक प्रकाशित अपने व्यंग्य स्तंभ 'नीरक्षीर' 12 जनवरी 1989 . से .साभार //
Comments
नव वर्ष पर आप व् आपके परिवार को हार्दिक बधाई
..पर आप कैसे श्रीदेवी और शिल्पाओं से भयभीत हो गई। ज़रा देखिए दोनो पात्र कुंवारे हैं और एक टीवी से परेशान है जो शिल्पा की भव्यता के पीछे पड़ा है और एक को किसी ने ग्रीटिंग भेज दी है । देखिए कितना आहत है आपका प्रिय पात्र
‘‘देखता हूं ,किसी को मेरे कुवांरेपन को छूने में मजा आ रहा है। उसने श्रीदेवी की तस्वीर भेजी है। मैं श्रीदेवी की बड़ी बड़ी आंखों में जाने क्या देखता हूं कि अचानक किचन की तरफ देखने लगता हूं। शायद मुझे उम्मीद थी कि तस्वीर से निकलकर श्रीदेवी किचन संभाल रही है और मेरे लिए सबसे पहले एक कप चाय तैयार कर रही है। ’’
फिर जो लोग खूबसूरत खूंटों से बंधे होते है वो बहुत निरीह और नशे मे होते हैं उनसे भयभीत होने कही आवश्यकता नहीं है। नज़र ऐसे भी रखी जा सकती है प्यार की नज़र। हेरोइन या अफीम की मात्रा का ख्याल रखते हुए।
वेसे बहुत प्यारी है आपकी टिप्पणी। धन्यवाद!
नववर्ष की असंख्य शुभकामनाएं स्वीकारें।
आने वाले साल में यही सिलसिला बना रहे, इसी कामना के साथ
नये साल की बहुत बहुत मुबारकबाद
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
Aapke protsahan ka dhanyavad.
Kabhi kisi rachna par avasyaktanusar lambi bat ki koshish karen.
vaise hello hey bhi sants\osj\h hi deta hai..
Mitron katipay karno se kuchcha dinon ka net se sambandh khatma ho rahen hain. Yathashakti sampark karne ka prayas zari rakhne ke prayas mein hoon.
Kripya kripa kam y\na karein..
dhanyavad...
मगर अफसोस वैसा नहीं होता । किचन में पूर्ववत् सन्नाटा है।
sunder rachna