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Showing posts from January, 2011

तीन मुक्तक

जिन्हें मोती ही भाते हैं , हन्स वोही कहाते हैं। जहां गहरा मिले पानी , वहीं हाथी नहाते हैं। जो उथले कीचड़ों में कूदकर फैलाते हैं दहशत , वो इकदिन अपने ही दलदल में गहरे डूब जाते हैं। 08.44 प्रातः ,13.1.11 कहीं ताना , कहीं निन्दा ,कहीं अलगाव फैलाते। अगर बढ़ता है आगे कोई तो ये बौखला जाते । जो देता साथ कोई सच्चे दिल से ,सच्चे इन्सां का , ये उसको भी बुरा कहते ,स्वयं को ज्ञानी बतलाते । 10.45 प्रातः ,13.1.11 कोई अमरीका जाता है ,किसी को रूस भाता है। किसी को तेल अरबी तो किसी को चीन भाता है। कोई जापान, स्विटजरलैंड,या आशिक है इटली का, किसे है देश प्यारा ? किसको अपना देश भाता है ? 08.47 सायं 13.01.11

नववर्ष की शुभकामनाएं

01. 01. 2011 , शनिवार* एक एक दो भी , ग्यारह भी , यही बताने आया , नये साल संबंधों पर हो , इसी गणित की माया । नयी घटाएं लेकर मौसम दुनिया भर में छाया आज नहीं , अब कल सोचेंगे-क्या खोया क्या पाया ? *2011 का अंतिम दिन 31.12.2011 भी शनिवार है शनीवार आरंभ है , शनीवार ही अंत आते जाते एक हो , वही कहाता संत एक नजर हो, एक हो बोली , भले अलग हो भाषा एक हृदय की नेक भावना , फूले फले अनंत । 0 डॉ. रामार्य