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Showing posts from March, 2017

फिर गर्माए दिन

* घूम रहे हैं लिए सुपारी, गर्मी खाकर दिन!                 - फिर गरमाए दिन! * खुली खिड़कियां बंद हो रहीं कैद हुईं बतकहियां! सूखी आँगन की फुलवारी मंद हुयीं चहचहियां! आस पड़ोस विदेश लग रहे अलसाये पलछिन!                 - फिर गरमाए दिन! * अलगावों के, भेदभाव के, खुलकर खुले अखाड़े! सब दबंग परकोटों में हैं सब दब्बू पिछवाड़े! हवा हुई अपहृत या खा गई उसे धूप बाघिन!                 - फिर गरमाए दिन! * लपट झपटकर सिंहासन पर, लू लपटें आ बैठीं! कुचल कुचलकर हंसी खुशी को, फिरतीं ऐंठी ऐंठी! जैसे सुख खा बैठे उनके परदादा का रिन!                 - फिर गरमाए दिन! * आतंकी से लगते हैं सब छुरी कटारीवाले! सुबह शाम रात दिन भी हैं पहुने भारीवाले! जैसे तैसे काट रहे हैं युग साँसों के बिन!                 - फिर गरमाए दिन! * आओ सब खटास घोलें अब, पना बने खटमिट्ठा! रस के धारावाहिक खोलें, सुखद समय का चिट्ठा! राग-रंग में क्यों घोले विष, कलुष बुद्धि नागिन!                 - ठंडक पाएं दिन! @ कुमार, 27.3.17,11.43 am सोमवार, .......

शक्ति का सशक्तिकरण

शक्ति का सशक्तिकरण ‘बिहारी सप्त-शती’ (सतसई,सतसैया) के ‘कवि’ ने ‘मंगलाचरण’ में ही अपना ‘श्लिष्ट’ दोहा प्रस्तुत  करते हुए कहा है- मेरी भव बाधा हरो, राधा-नागरि सोय! जा तन की झाईं परै, श्याम ‘हरित-द्युति’ होय!! - राधा नागरिका से भव-बाधा से मुक्ति की कामना करनेवाला कवि उन्हें जीवन की समस्त ‘हरितिमा’ के, जीवन के समस्त हरे-भरेपन के, सारी खुशहाल हरियाली के प्रतीक के रूप में स्वीकार करता प्रतीत होता है। इसी प्रकार दुर्गा सप्तशती का कवि तो सृष्टि का आरंभ ही ‘आदि-शक्ति’ से मानता है। आदि शक्ति से ही सर्वप्रथम महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी आविर्भूत होती है। दुर्गासप्तशती सभी दृष्टि से शक्ति के समस्त विकल्पों का आराधन है। कवि ने एक एक कर मातृ रूपेण, लक्ष्मी रूपेण, विद्या रूपेण, क्षांति रूपेण आदि ‘शक्ति’ रूपेण महाशक्तियों की स्तुतियों में एक अध्याय ही समर्पित कर दिया है। इसी परम्परा के अनुपालन में संस्कृत में एक श्लोक उपलब्ध है- यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवताः, यत्रै तास्तु न पूज्यंते तत्रे सर्वाफलाः क्रियाः!! महाराज मनु ने स्पष्ट आदेश किया है कि जहां नारियों को पूज्