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घूम रहे हैं लिए सुपारी,
गर्मी खाकर दिन!
- फिर गरमाए दिन!
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खुली खिड़कियां बंद हो रहीं
कैद हुईं बतकहियां!
सूखी आँगन की फुलवारी
मंद हुयीं चहचहियां!
आस पड़ोस विदेश लग रहे
अलसाये पलछिन!
- फिर गरमाए दिन!
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अलगावों के, भेदभाव के,
खुलकर खुले अखाड़े!
सब दबंग परकोटों में हैं
सब दब्बू पिछवाड़े!
हवा हुई अपहृत या खा गई
उसे धूप बाघिन!
- फिर गरमाए दिन!
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लपट झपटकर सिंहासन पर,
लू लपटें आ बैठीं!
कुचल कुचलकर हंसी खुशी को,
फिरतीं ऐंठी ऐंठी!
जैसे सुख खा बैठे उनके
परदादा का रिन!
- फिर गरमाए दिन!
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आतंकी से लगते हैं सब
छुरी कटारीवाले!
सुबह शाम रात दिन भी हैं
पहुने भारीवाले!
जैसे तैसे काट रहे हैं
युग साँसों के बिन!
- फिर गरमाए दिन!
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आओ सब खटास घोलें अब,
पना बने खटमिट्ठा!
रस के धारावाहिक खोलें,
सुखद समय का चिट्ठा!
राग-रंग में क्यों घोले विष,
कलुष बुद्धि नागिन!
- ठंडक पाएं दिन!
@ कुमार,
27.3.17,11.43 am
सोमवार,
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और आखिर अपनी आदत के मुताबिक मेरे पड़ौसी का तोता उड़ गया। उसके उड़ जाने की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। वह दिन भर खुले हुए दरवाजों के भीतर एक चाौखट पर बैठा रहता था। दोनों तरफ खुले हुए दरवाजे के बाहर जाने की उसने कभी कोशिश नहीं की। एक बार हाथों से जरूर उड़ा था। पड़ौसी की लड़की के हाथों में उसके नाखून गड़ गए थे। वह घबराई तो घबराहट में तोते ने उड़ान भर ली। वह उड़ान अनभ्यस्त थी। थोडी दूर पर ही खत्म हो गई। तोता स्वेच्छा से पकड़ में आ गया। तोते या पक्षी की उड़ान या तो घबराने पर होती है या बहुत खुश होने पर। जानवरों के पास दौड़ पड़ने का हुनर होता है , पक्षियों के पास उड़ने का। पशुओं के पिल्ले या शावक खुशियों में कुलांचे भरते हैं। आनंद में जोर से चीखते हैं और भारी दुख पड़ने पर भी चीखते हैं। पक्षी भी कूकते हैं या उड़ते हैं। इस बार भी तोता किसी बात से घबराया होगा। पड़ौसी की पत्नी शासकीय प्रवास पर है। एक कारण यह भी हो सकता है। हो सकता है घर में सबसे ज्यादा वह उन्हें ही चाहता रहा हो। जैसा कि प्रायः होता है कि स्त्री ही घरेलू मामलों में चाहत और लगाव का प्रतीक होती है। दूसरा बड़ा जगजाहिर कारण यह है कि लाख पिजरों के सुख के ब
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