Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2023

एक स्नानागारी गीत

  एक स्नानागारी गीत 0 सब स्नानागार में गाये गए वो गीत हैं, साबुनों में जो घुले, पानी में धुलकर बह गए। जिन कमीज़ों ने कभी सिलवट नहीं स्वीकार की, वो सफ़ेदी की लड़ाई में हैं कालिख फेंकती। वे, जिन्हें रफ़्तार पे, अपनी बड़ा ही गर्व था, रश्मियां, ध्वनियों के पीछे आ रही हैं रेंगती। चांद सूरज की मिसालों पर थे ख़ुद जो दांव पर, बाज़ियां ऐसी पड़ी उल्टी कि हतप्रभ रह गए। वे, जो अमृत, काल का पीकर हुए चिरकाल के, चलो पूछें अमर होकर लग रहा कैसा उन्हें? वो समय, गुण-धर्म जिसका, नित्य परिवर्तन रहा, अमरता की शर्त पर, स्वीकार कर लेगा उन्हें? थे अनूठे तात्कालिक सामयिक प्रासाद, गढ़- समय ने अपनी कसौटी पर कसा तो, ढह गए। कुछ ज़मीं पर जम गए, कुछ आसमां पर उड़ रहे, हम अलग हैं, ले रहे आबोहवा का जाइज़ा। सारे साधन अब समर्थों की धरोहर बन गए, समंदर, आकाश, धरती, उनकी मर्ज़ी की फ़िज़ा। हवा, पानी, धूप पर क़ब्ज़े पे मुन्सिफ़ मौन है, 'पुरुष-सिंह' इतिहास के,  यह ज़ुल्म कैसे सह गए! 0 @ रा. रामकुमार, 22-23.02.23, (१०.३०, १४.००, १४.३०, १७.५५,- ११०५)

दो भाइयों की रोमांचक कथाएँ : दो दूनी चार

 दो दूनी चार ०  दो भाइयों की रोमांचक कथाएँ :   (रामचरितमानस से साभार) ०         रामायण और रामचरितमानस की मुख्य कथाएं लगभग एक सी हैं। संस्कृत ग्रंथ रामायण का लोकभाषा अवधी में रामचरित मानस के रूप में भावानुवाद और छायानुवाद हुआ तो भारतीय धर्म और आस्था के साथ जुड़े लोग इस ग्रंथ को कथा मानने की बजाए चमत्कार की तरह मानने लगे।          कतिपय आस्थावान व्यक्ति यह भी मानते हैं कि ये सब प्रतीक की भाषा और संकेत देने वाले महाग्रंथ हैं। इनके पात्र भी संकेतों के रहस्य लपेटे हुये हैं।         यह विशेष संयोग है कि इन दोनों ग्रंथों में दो भाइयों का जोड़ा स्थान स्थान में मिलता है। रामचरित मानस अकेला भी कहा जा सकता है किंतु इन दिनों रामचरित मानस और उसके रचयिता तुलसीदास जी संवेदनशीलता के दायरे में हैं  इसलिये बाल्मीकि जी को लेकर उस संवेदन शीलता से ध्यान बांटने का प्रयास किया गया है। कुलमिलाकर रामकथाओं में दो भाइयों के जोड़े मिलते हैं, जैसे राम और लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न, रावण और कुंभकर्ण,  जिन्होंने एक दूसरे का साथ मरते दम तक  दिया। एक सबसे छोटे तीसरे भाई विभीषण भी थे।  ये साधु स्वभाव के थे, इसलिए लंका से नि

वैलेंटाइन डे और गन्ना के पारिवारिक लोग

वैलेंटाइन डे और गन्ना के पारिवारिक लोग बायकॉट, ईडी, आईटी, जेल, बैन, प्रतिरोध, दंगा, दबंगई, हुड़दंग, आदि के आतंकी तरीक़ों के बावजूद जनता जो चाहती है उसे कौन रोक सकता है। हमें क्या हक़ है कि हम न कहें Happy valentine day. 👍💐 'गन्ना' व 'बराही' दोनों  लोग व लुगाई हुए,    'ईख, 'ऊख, 'सांठे' को ये  बात नहीं भाई है। सभा शीघ्र 'शालि,'इक्षु,  'गेंड़े','सोंटे' की बुलाई,   कैसे काटा जाए गन्ना,  जुगत भिड़ाई है। हँसिया 'रसिक' को,  'रसाली' को दराती थमा,    कहा :-"काटो 'सरकंडे,  करना सफ़ाई है।" आग फूंकने का काम,   भट्टा खोद, ख़ुद लिया,    पेरने की जिम्मेदारी,  'पौढ़े' को थमाई है। @ रा. रामकुमार , 14.02.23 , मंगल, वैलेंटाइन डे, 0 गन्ना के पारिवारिक-कुटुम्बी (पर्यायवाची) शब्द : ईख, ऊख, शालि, इक्षु, रसाली, पौंढ़ा, रसिक, सांठा, गेंड़ा, सरकंडा, सोंटा, बराही, (जो इस घनाक्षरी में लिए गए। )

फूलों पर बने छंद : अरविंद, मालती और सायली

फूलों पर बने छंद :  अरविंद, मालती और सायली 0         फूलों के नाम पर भी छंद होते हैं। जैसे हिंदी में मालती और मराठी में सायली।        फूलों के नामों पर कविताएं भी मिलती हैं। 'जूही की कली' निराला की लोकप्रिय रचना है। 'चम्पा' नागार्जुन की कविता 'चम्पा काले अक्षर नहीं चीन्हती' की नायिका है।  मालती नाम प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदान' में मिलता है।  इन सभी फूलों के नाम जनमानस में प्यार से बसे हुए हैं। ऐसी स्थिति में, काव्य में जन जन की कोमल भावनाओं को उभारने के लिए, ये नाम न आएं, यह कैसे हो सकता है।         इसलिए सुकुमार कवियों ने फूलों के नाम पर भी छंद बनाये। यहां फूलों के नाम से प्रतिष्ठित छंदों का सोदाहरण जिक्र करेंगे।         सबसे पहले हम अरविंद और मालती छंद की चर्चा करें। ये दोनों सवैया छंद हैं। ये दोनों दो भिन्न वर्ग के फूल हैं। अरविंद कमल वर्ग का पुष्प है जो लाल, गुलाबी, सफेद, पीले, नीले आदि रंग के होते हैं। इंदीवर (नीलकमल) भी कमल या अरविंद का एक प्रकार है।         मालती चमेली वर्ग का फूल है। इन दोनों के नाम पर ही सवैया छंद बने  मालती या मत्तगयंद सव