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Showing posts from April, 2010

भैंस के आगे बीन

दूधवाला उस दिन भी उसी तरह दूध लेकर आया ,जिस तरह हमेशा लाता है। संक्षिप्त में कहें तो रोज की ही तरह नियमितरूप से दूध लेकर आया। उल्लेखनीय है कि यहां कवि दूध की विशेषता नहीं बता रहा है ,दूधवाले के आने की विशेषता बता रहा है। दूध की विशेषता तो आगे है, जहां कवि कहता है कि दूधवाला उसी तरह का दूध लेकर आया जिस तरह का दूध ,आज के यानी समकालीन दूधवाले लेकर आते हैं , जो उन दूधवालों की साख है ,उनकी पहचान है ,उनका समकालीन सौन्दर्य-बोध है। कह सकते हैं कि बिल्कुल प्रामाणिक, शुद्ध-स्वदेशी दूध.....सौ टके ,चौबीस कैरेटवाला दूध। जिसे देखकर ही दूध का दूध और पानी का पानी मुहावरा फलित हो जाता है। चूंकि वस्तुविज्ञान के अनुसार यह प्रकरण साहित्य का कम और चूल्हे का ज्यादा था , इसलिए पत्नी ने इसे अपने हाथों में ( दूध को भी और प्रकरण को भी ) लेते हुए दूधवाले को टोका:‘‘ क्यों प्यारे भैया ! जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है , दूध पतला होता जा रहा है।’’ दूधवाले ने अत्यंत अविकारी और अव्ययी भाव से कहा: ‘‘ क्या करें बहिनजी ! हम लोग भी परेशान हैं। भैंस को चरने भेजते हैं तो वो जाकर दिन भर तालाब में घुसी बैठती है। कुछ खाए तो दूध ग