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Showing posts from November, 2012

विवेकानंद के जीवन दर्शन का साहित्य पर प्रभाव

  विवेकानंद के जीवन दर्शन का साहित्य पर प्रभाव विवेकानंद भारतीय राष्ट्रीय संदर्भों में युवकों के प्रेरणा-स्रोत के रूप में प्रासंगिक रहे हैं। विवेकानंद का नाम भारत के गौरवपूर्ण धार्मिक-अध्यात्म को विश्वस्तर पर प्रशस्त करने के अर्थ में स्थापित हो चुका है। हालांकि इस तथ्य की चर्चा बहुत कम हुई है कि यह नामकरण ‘विवेकानंद’ उनके 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद में भाग लेने के लिए ही किया गया। विद्वान भोैतिकवादी पिता और अत्यंत धर्म-परायण मां की संतान वीरेश्वर या नरेद्र दत्त ने भारत को नये वैज्ञानिक अर्थ और ऊंचाइयां दी। वे वेदांत के पुरोधा के रूप में वैदिक संस्कृति के नये और प्रगतिशील मानदंडों के उद्गाता बने। इसीलिए अमेरिका की भूमि में बिल्कुल नवीन और ऊर्जवसित कण्ठ से उन्होंने विश्वबंधुत्व का नारा दिया, तथापि हिन्दुत्व की भावभूमि पर बने रहकर। उन्होंने अपने प्रथम परिचयात्मक उद्बोधन में कहा-‘‘मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास