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Showing posts from 2016

तुम्हारा पता

बड़ी लम्बी कहानी है... बहुत दिन बाद आया था यहां पर हर कदम पर धूल के रूखे बवंडर थे हवाएं बदहवासी में मुझे कसकर पकड़ती थीं शहर की बेतहासा भागती पागल सी दुनिया थी सभी के पैर की ठोकर से गिर जाता कभी कोई जइफ लम्हा कभी कोई हसीं लम्हा मगर जब शाम को थककर उजाले घर को जा लौटे तुम्हारा फिर पता खोला जरा सा चैन आया अरे, इस शहर में अब भी कहीं पर रातरानी है... बड़ी लम्बी कहानी है... 0 डा. रा. रामकुमार,

भिखारिन: सामाजिक-परंपरा का अर्थशास्त्र और साहित्य का रासायनिक-विश्लेषण

रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुण्य तिथि (7 अगस्त) पर विशेष- गुरुदेव की कहानी ‘भिखारिन’ की वी कहानी के रासायनिक विश्लेषण से विद्वानों ने सात-तत्व निकाले हैं। आश्चर्य है कि ‘समुद्र-मंथन’ नामक धार्मिक पौराणिक कहानी से चौदह-तत्व निकले जिन्हें रत्न कहा गया। स्त्री, विष और अमृत को भी रत्न कहा गया। रासायनिक परिभाषा रत्न को तत्व नहीं मानती। व्यक्ति तो तत्व हो ही नहीं सकता। वह पांच तत्त्वों का यौगिक है..छिति,जल,पावक,गगन,समीरा। पांच तत्त मय रचा सरीरा।तत्व तो वह है जिसके अंदर दूसरी और वस्तुएं न हों। मनुष्य और रत्न में अनेक तत्व होते हैं। विष का रासायनिक विश्लेषण हो चुका है। अमृत का नहीं हुआ है। वह एक काल्पनिक द्रव्य है. रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुण्य तिथि को अमरत्व दिवस भी कहते हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर अपने समय के प्रभावशाली लेखन के कारण अमर हुए। इसीलिए लेखन को अमरत्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयाण भी लोग मानते हैं और इसीलिए लेखन की दुनिया में अमर होने के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहते हैं। वहीं कुछ हैं जो प्रतिद्वंद्वी को मार डालने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। कुछ लोगों की चरित्र-हत्या के म

मंत्र : आदमी और सांप के किरदार

प्रेमचंद जयंती(31 जुलाई) पर विशेष -  मुंशी  प्रेमचंद की कहानी ‘मंत्र’ की आख्या: -डाॅ. रा. रामकुमार, प्रेमचंद की ‘मंत्र’ कहानी दो वर्गों की कहानी है। ये दो वर्ग हैं ऊंच नीच, अमीर गरीब, दीन सबल, सभ्य और असभ्य। ‘मंत्र’ दोनों के चरित्र और चिन्तन, विचार और सुविधा, कठोरता और तरलता के द्वंद्वात्मकता का चरित्र-चित्रण है। मोटे तौर पर देखने पर यह कहानी ‘मनुष्य और सांप’ के दो वर्ग की भी कहानी है। अजीब बात हैं कि मनुष्य अपनों में सांप बहुतायत से देख लेता है किन्तु सांपों को मनुष्य दिखाई नहीं देते। यद्यपि प्रेमचंद अपनी कथाओं में समाज का यथार्थ चित्रण करते थे किन्तु उनका उद्देश्य आदर्शमूलक था। उनकी सभी कहानियां समाज के द्वंद्वात्मक वर्गों का व्यापक चित्र प्रस्तुत करती हैं। अच्छे और बुरे, अमीर और गरीब, ऊंच और नीच, पढे-लिखे और अनपढ़, ग्रामीण और शहरी, उद्योगपति और मजदूर। स्थूल रूप से भारत का समाज ऐसे जितने भी वर्गों में विभाजित है और उसमें जितनी भी विद्रूपताएं हैं, उनका वर्णन संपूर्ण व्याप्ति और पूर्णता के साथ प्रेमचंद की कथाओं में मिलता है। भारत वर्गों का नही जातियों का देश है। यहां वर्ग

इस कारवाने जीस्त में...

बढ़ते रहो, रुकना नहीं, कैसी भी हो मुश्किल बड़ी! हर हाल में चलते रहो, हर हार से मंजिल बड़ी! ताकत बड़ी, हिम्मत बड़ी, हर हौसला, चाहत बड़ी, इस कारवाने जीस्त में, हर राह है संगदिल बड़ी डाॅ. रामकुमार रामरिया, नये राम मंदिर के पीछे, गुलमोहर गली, 35, स्नेह नगर-27, बालाघाट शुक्रवार,1 जुलाई 2016, प्रातः 7.19 शब्दावली : कारवाने जीस्त: जिन्दगी का अभियान, जीवन की यात्रा, संगदिल: पत्थरदिल, कठोर, निर्मम,

मोको कहां ढूंढे रे बंदे

कबीर जयंती पर विशेष .. कहानी -   मोको कहां ढूंढे रे बंदे निस्तारखाने में बाल्टी रखकर अमर इसके पहले कि मां को इस घटना का हाल सुनाता, उसने देखा कि रमजू, अलतू और शफ़्फू उसे घेरकर खड़े हो गए। ‘‘तुम कोई तीसमारखां हो?’’ रमजू ने अपनी कमर में हाथ रखकर सवाल किया ‘‘रात में भी तुम गेट से अंदर घुसे...और एकदम सामने बैठे...और अब पानी के नल पर हुश्नपरियां तुमसे गुफ़्तगू करने लगी हैं।’’ ‘‘तो मैं क्या करूं?’’ अमर ने कहा। ‘‘हां, अब ये क्या करे?’’शफ़्फ़ू ने कहा। अल्तू ने हां में हां मिलाई। रमजू सिर खुजाने लगा। अमर उससे एक क़दम निकल गया था। रमजू का चेहरा खिंच गया। अमर उत्साह में था। वह सब कुछ बताना चाहता था। रमजू को फुसलाते हुए बोला: ‘‘रमजू! क्या बात है उस्ताद?’’ ‘ ‘उस्ताद मत कहो, अम्मू उस्ताद! तुम तो हमारे भी उस्ताद निकले।’’ रमजू ने हथियार डाल दिए। उसके चेहरे पर मुस्कान फिर खिल उठी थी। पंचायत बैठी। वास्तव में उसे चौपाल कहना ठीक है। पांच नहीं, चार थे वे लोग। अमर, रमजान, अलताफ़ और शफ़ीक़। चारों की चौपाल में हुश्नपरियों की चर्चा चली।  वे जहां ठहरी हैं सराय में उस मेहमानख़ाने का नक़्शा खींचा गया