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Showing posts from December, 2010

मुरली-चोर !

ब्रजकुमारी एकांतवास कर रहीं थीं। रात दिन राधामोहन के ध्यान में डूबे रहकर उपासना और उलाहना इन दो घनिष्ठ सहेलियों के साथ उनके दिन बीत रहे थे। भक्ति और प्रीति चिरयुवतियां निरन्तर उनकी सेवा में लगी रहती थीं। एक दिन उन्हें ज्वर चढ़ा। यद्यपि ज्वर, पीड़ा, संताप, कष्ट, व्यवधान आदि आये दिन उनके अतिथि रहते थे। उनकी आवभगत में भी वे भक्ति और प्रीति के साथ यथोचित भजन और आरती प्रस्तुत करती थीं। आज भी वे नियमानुसार जाप और कीर्तन करने लगीं।          उनकी आरती और आर्तनाद के स्वर द्वारिकाधीश तक पहुंचे। उनके गुप्तचर अंतर्यामी ‘सर्वत्र’ और अनंतकुमार ‘दिव्यदृष्टि’ उन्हें राधारानी के पलपल के समाचार दिया करते थे।        समाचार प्राप्त होते ही तत्काल वे उनके पास पहुंच गए। भक्ति और प्रीति ने दोनों के लिए एकांत की पृष्ठभूमि बना दी और गोपनीय निज सहायिका समाधि को वहां तैनात कर दिया। उपासना और उलाहना मुख्य अतिथि के स्वागत सत्कार में लग गईं।      ‘‘कैसी हो?’’ आनंदकंद ने चिरपरिचित मुस्कान के साथ पूछा।      ‘‘जैसे तुम नहीं जानते?’’ - माधवप्रिया ने सदैव की तरह तुनककर कहा।       ‘‘पता चला है कि तुम्हें ज्वर है।’’ हंसकर