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Showing posts from January, 2021

कोविड 19 : अभिशाप या वरदान

  कोविड 19 : अभिशाप या वरदान यह शीर्षक हमारा जाना पहचाना है। कोविड19 को भी पिछले 10 महीनों में जान पहचान लिया। वैक्सीन विहीन से को-वैक्सीन के वितरण और विश्व निर्यात किये जाने तक उसकी भयावहता और नियंत्रण तक के चक्र को हमने देखा। हमको जब गर्भ-ग्रहों में रहते या हमारे बजट को चरमरा कर, मास्क और सैनीटाईजर खरीदती  ज़िन्दगी, इन हालातों की आदत हो गयी थी, तब इस ' को-वैक्सीन ' के जन्म की विशेष या बिल्कुल भी खुशी नहीं हुई। हम परम्परावादी  भारतियों के घर जैसे बेटी जन्मी हो। भले हम बेटी बचाओ फैशन के चलते ऊपर से ख़ुशी ज़ाहिर करते फिरें, अंदर से हम मध्यमवर्गी मानसिकता के शिकार अब भी हैं। इसका कारण हमारा दिन ब दिन बेक़ाबू होता अर्थतंत्र है।   बहरहाल, इस कोविड-19 के चलते लॉक डाउन की सार्वजनिक स्वीकृति के साथ हमने अपने ही घरेलू ज्ञात अज्ञातवास में, कोपभवन में या गर्भ-गृह में कैसे बिताया, यह बहुत मायने रखता है। लॉक डाउन बहुतों के लिए बहुत पीड़ा दायक रहा। नुकसानदेह रहा। बहुतों की नौकरी चली गयी। लेकिन ज़्यादातर के लिये लाभदायी  भी रहा। मैं सेवा निवृत्त था। मुझे क्या रोज़गार और क्या बेरोज़गारी । किन्तु 

१२ जनवरी २१ : विवेकानंद जयंती*

१२ जनवरी २१ : विवेकानंद जयंती* *(१२.१.२१, उत्तर से पढ़ो या दक्षिण से, एक ही है। यह तिथि 12 बजे रात तक मान्य है। फिर अगले 100 साल प्रतीक्षा करना।😊👍) * विवेकानन्द आज राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के शलाका पुरुष विवेकानंद का जन्म दिन है। यह दिन युवा दिवस और योग दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। विगत तीन दशकों से यह एक वृहद शासकीय आयोजन के रूप में प्रत्येक शासकीय शिक्षण संस्थानों और कार्यालयों में सरकार की प्रतिष्ठा बढ़ाने का अनिवार्य उपक्रम बन गया है। राष्ट्रीय सेवा योजना विवेकानंद को समर्पित है। विवेकानंद के वैज्ञानिक और कर्मकांड के विरोध में प्रकट विचारों ने विज्ञानवादी प्रगतिशील जनमानस पर भी गहरी छाप छोड़ी। संन्यासी और वेदांती होने के बावजूद वे सामाजिक क्रांति के युवकों के प्रणेता बने रहे। 'गर्व से कहो हम हिन्दू हैं' का नारा उनके साथ जुड़ा और हिंदुत्व के वे प्रतीक बन गए। भले ही हिंदुत्व की स्थापना में अपने अक्षुण्य योगदान के कारण वे एक सीमित सत्तावर्णी उच्च वर्ग के पूर्वज हो गए हों किन्तु उनके कुछ विचार हर ऊर्जावान क्रांतिकारी को प्रेरणा तो देता ही है। भारत के किसान आज भारत क

आंखों का मामला

  आंखों का मामला :  ******* धराये गए आज 'दो चोर' मन के, 'अदालत में आहों की' लाये गए हैं। खचाखच भरी है जो बेचैनियों से, वहां उनके मुद्दे उठाए गए हैं। ये *पहली-नज़र* हैं जो पहले लुटी थीं, ये वो 'बेरुखी' हैं जो बचती फिरीं थीं। ज़रा देखिये 'नीची नज़रों' की हालत, रहीं सर झुकाए कभी जब घिरीं थीं। क़दम वो जो घबरा के थम से गए थे, क़दम ये उन्हीं के उठाये गए हैं। धराये गए आज 'दो चोर' मन के, अदालत में आहों की लाये गए हैं। कनखियां अभी भी हैं कतरा रही सी, इधर तिरछी नज़रें भी ख़ामोश अब भी। उधर नीमबाज़ आंख हैं सकपकाई, लगी हो नज़र ऐसी मदहोश अब भी। जहां चोर नज़रों के कुनबे हैं बैठे, वहां तक ठगौरी के साये गए हैं। धराये गए आज 'दो चोर' मन के, अदालत में आहों की लाये गए हैं। चढ़े आंख में, आंख से गिर गए कुछ, बसे रह गए आंख में भाग्यशाली। हुये आंख की किरकिरी कुछ अभागे, कहीं नैन तारों ने, आंखें चुरा ली। जो काजल चुराते हैं आंखों के वो सब, निगाहों में दुनिया की लाये गए हैं। धराये गए आज &

स्त्री : एक भारतीय गीत

स्त्री : एक भारतीय गीत बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ियां, मांग, लौंग, काजल ग़ायब।* जब जी चाहे, प्यास बुझा दे, वह मटका, छागल ग़ायब। चौखट से लगकर पथ तकतीं, आंखें और कहीं हैं व्यस्त। घर में घर की ख़ुशबू जैसी, सांसें और कहीं हैं व्यस्त। उपवन, पनघट, आंगन, चौका, राजा-रानी के क़िस्से, गरदन, हाथ, कमर में रहतीं, बांहें और कहीं हैं व्यस्त। अब भविष्य, अस्तित्व, स्व-गौरव, बंधनमुक्त आत्मसम्मान, उसके साथ दिखा करते हैं, थी पगली पायल, ग़ायब। बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ियां, मांग, लौंग, काजल ग़ायब।* अपने, अपनापन, सहजीवी, अपने स्वप्न : स्वजन-परिवार। सहनशीलता, त्याग, समर्पण, सिद्ध हुए हैं अत्याचार। दिल्ली सहित शेष भारत ने, समझाया क्या है औरत, कहां कहां औरत औरत है, दुनिया भर का एक विचार। वह आकाश व पृथ्वी है वह, वही अग्नि, परमाणु वह, अंतरिक्ष वह, उसके सर से, संकट के बादल ग़ायब। बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ियां, मांग, लौंग, काजल ग़ायब।* अब वह मुक्त बयार है उसको, मुट्ठी में करना मुश्किल। खुला हुआ विस्फोटक है वह, यहां-वहां धरना मुश्किल। सोना सोना का क्या रोना, लेती खुले ठहाके हैं, चयन-त्याग अब उसके अनुचर,

नया_कोविड_वर्ष : स्वागतं_2021

 #नया_कोविड_वर्ष : #स्वागतं_2021 (दोस्तों! ख़बर है कि पुराने कोविड-19 के विरुद्ध #कोविड_19_भारत_छोड़ो की तर्ज़ पर #आपरेशन_वैक्सीन के दिसम्बर 2020 में लगभग लागू होते ही ब्रिटेन से 13 देशों का #संयुक्त_मोर्चे के रूप में #नया_वायरस  31 दिसम्बर को महाराष्ट्र की उप-राजधानी नागपुर पहुंच चुका है। नए सम्राट का जॉर्ज पंचम की तरह भारत पहुंचने पर #स्वागत_गीत के रूप में प्रस्तुत है यह नवगीत। आइए समवेत स्वर में गायें:-) ***** अच्छा,  अब तुम्हें प्रभार मिला, आगे सरकार तुम्हीं होगे।  पिछलों ने की मिट्टी पलीद, तुम आगे के अवनीश हुए। इस तरफ जहां चिर रातें हैं, तुम उनके ही रजनीश हुए।  भीरू भोरों की किस्मों के अब एक प्रकार तुम्हीं होगे। लाठी बंदूक डकैती के मनमाने दावेदार हुए।  जो तानाशाही ने देखे वे सपने सब साकार हुए।  जो अर्थव्यवस्था निगल सके मुंह दैत्याकार तुम्हीं होगे। आगे सरकार तुम्हीं होगे।  दक्षिण-पश्चिम के वंशवृक्ष उत्तर पूरब पर छा जाएं।  अलगाव, घृणा की प्रथा जने नर-भक्षी सुत जग पर छाएं।  करने विनाश का राजतिलक  क्या नर-संहार तुम्हीं होगे? ऐसी सरकार तुम्हीं होगे। लो शपथ धर्म की छलनामय  कल्याण सर्वजन मा