स्त्री : एक भारतीय गीत
बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ियां, मांग, लौंग, काजल ग़ायब।*
जब जी चाहे, प्यास बुझा दे, वह मटका, छागल ग़ायब।
चौखट से लगकर पथ तकतीं, आंखें और कहीं हैं व्यस्त।
घर में घर की ख़ुशबू जैसी, सांसें और कहीं हैं व्यस्त।
उपवन, पनघट, आंगन, चौका, राजा-रानी के क़िस्से,
गरदन, हाथ, कमर में रहतीं, बांहें और कहीं हैं व्यस्त।
अब भविष्य, अस्तित्व, स्व-गौरव,
बंधनमुक्त आत्मसम्मान,
उसके साथ दिखा करते हैं, थी पगली पायल, ग़ायब।
बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ियां, मांग, लौंग, काजल ग़ायब।*
अपने, अपनापन, सहजीवी, अपने स्वप्न : स्वजन-परिवार।
सहनशीलता, त्याग, समर्पण, सिद्ध हुए हैं अत्याचार।
दिल्ली सहित शेष भारत ने, समझाया क्या है औरत,
कहां कहां औरत औरत है, दुनिया भर का एक विचार।
वह आकाश व पृथ्वी है वह,
वही अग्नि, परमाणु वह,
अंतरिक्ष वह, उसके सर से, संकट के बादल ग़ायब।
बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ियां, मांग, लौंग, काजल ग़ायब।*
अब वह मुक्त बयार है उसको, मुट्ठी में करना मुश्किल।
खुला हुआ विस्फोटक है वह, यहां-वहां धरना मुश्किल।
सोना सोना का क्या रोना, लेती खुले ठहाके हैं,
चयन-त्याग अब उसके अनुचर, वर होकर वरना मुश्किल।
वैज्ञानिक वह, संयंत्रों से -
षड्यंत्रों तक उसकी धाक,
गर्व-भरे इस्पाती तन से, छुई-मुई आँचल ग़ायब।
बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ियां, मांग, लौंग, काजल ग़ायब।*
@कुमार,
०२.०१.२०२१,
शनिवार.
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क़ैफियत :
*ग़ायब/अदृश्य/जयहिंद/निपटे/टपके /नहीं रहे।
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