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Showing posts from June, 2016

इस कारवाने जीस्त में...

बढ़ते रहो, रुकना नहीं, कैसी भी हो मुश्किल बड़ी! हर हाल में चलते रहो, हर हार से मंजिल बड़ी! ताकत बड़ी, हिम्मत बड़ी, हर हौसला, चाहत बड़ी, इस कारवाने जीस्त में, हर राह है संगदिल बड़ी डाॅ. रामकुमार रामरिया, नये राम मंदिर के पीछे, गुलमोहर गली, 35, स्नेह नगर-27, बालाघाट शुक्रवार,1 जुलाई 2016, प्रातः 7.19 शब्दावली : कारवाने जीस्त: जिन्दगी का अभियान, जीवन की यात्रा, संगदिल: पत्थरदिल, कठोर, निर्मम,

मोको कहां ढूंढे रे बंदे

कबीर जयंती पर विशेष .. कहानी -   मोको कहां ढूंढे रे बंदे निस्तारखाने में बाल्टी रखकर अमर इसके पहले कि मां को इस घटना का हाल सुनाता, उसने देखा कि रमजू, अलतू और शफ़्फू उसे घेरकर खड़े हो गए। ‘‘तुम कोई तीसमारखां हो?’’ रमजू ने अपनी कमर में हाथ रखकर सवाल किया ‘‘रात में भी तुम गेट से अंदर घुसे...और एकदम सामने बैठे...और अब पानी के नल पर हुश्नपरियां तुमसे गुफ़्तगू करने लगी हैं।’’ ‘‘तो मैं क्या करूं?’’ अमर ने कहा। ‘‘हां, अब ये क्या करे?’’शफ़्फ़ू ने कहा। अल्तू ने हां में हां मिलाई। रमजू सिर खुजाने लगा। अमर उससे एक क़दम निकल गया था। रमजू का चेहरा खिंच गया। अमर उत्साह में था। वह सब कुछ बताना चाहता था। रमजू को फुसलाते हुए बोला: ‘‘रमजू! क्या बात है उस्ताद?’’ ‘ ‘उस्ताद मत कहो, अम्मू उस्ताद! तुम तो हमारे भी उस्ताद निकले।’’ रमजू ने हथियार डाल दिए। उसके चेहरे पर मुस्कान फिर खिल उठी थी। पंचायत बैठी। वास्तव में उसे चौपाल कहना ठीक है। पांच नहीं, चार थे वे लोग। अमर, रमजान, अलताफ़ और शफ़ीक़। चारों की चौपाल में हुश्नपरियों की चर्चा चली।  वे जहां ठहरी हैं सराय में उस मेहमानख़ाने का नक़्शा खींचा गया