लघुकथा :
एक पिता ने अपने गुस्सैल बेटे से तंग आकर उसे कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा ,"तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोंक देना .....
बेटे को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील बाड़े की दीवार पर ठोंक दी। यह प्रक्रिया वह लगातार करता रहा....
धीरे धीरे उसकी समझ में आने लगा कि कील ठोंकने की व्यर्थ मेहनत करने से अच्छा तो अपने क्रोध पर नियंत्रण करना है और क्रमशः कील ठोंकने की उसकी संख्या कम होती गई....
एक दिन ऐसा भी आया कि बेटे ने दिन में एक भी कील नहीं ठोंकी....
उसने खुशी खुशी यह बात अपने पिता को बताई। वे बहुत प्रसन्न हुए और कहा, "जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एक बार भी क्रोधित नहीं हुए, ठोंकी हुई कीलों में से एक कील निकाल लेना....
बेटा ऐसा ही करने लगा...एक दिन ऐसा भी आया कि बाड़े में एक भी कील नहीं बची। उसने खुशी खुशी यह बात अपने पिता को बताई....
पिता उस लड़के को बाड़े में लेकर गए और कीलों के छेद दिखाते हुए पूछा, "क्या तुम ये छेद भर सकते हो....
बेटे ने कहा,"नहीं पिताजी....
पिता ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा,"अब समझे बेटा, क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए कठोर शब्द, दूसरे के दिल में ऐसे छेद कर देते हैं, जिनकी भरपाई भविष्य में तुम कभी नहीं कर सकते....
प्ररेणादायक सन्देश : कभी क्रोध ना करें। दुनिया में जिंदगी केवल प्यार करने के लिए है। परिवार में, दोस्तों से, अपने अपनों से सिर्फ प्यार कीजिए। अगर क्रोध आए भी तो मौन रहे क्योंकि क्रोध से सामनेवाले का कम, अपना नुकसान अधिक होता है।(अज्ञात)
संशोधन :
पिता से एक गलती हो गई।
एक पिता ने अपने गुस्सैल बेटे से तंग आकर उसे कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा ,"तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोंक देना .....
बेटे को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील बाड़े की दीवार पर ठोंक दी। यह प्रक्रिया वह लगातार करता रहा....
धीरे धीरे उसकी समझ में आने लगा कि कील ठोंकने की व्यर्थ मेहनत करने से अच्छा तो अपने क्रोध पर नियंत्रण करना है और क्रमशः कील ठोंकने की उसकी संख्या कम होती गई....
एक दिन ऐसा भी आया कि बेटे ने दिन में एक भी कील नहीं ठोंकी....
उसने खुशी खुशी यह बात अपने पिता को बताई। वे बहुत प्रसन्न हुए और कहा, "जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एक बार भी क्रोधित नहीं हुए, ठोंकी हुई कीलों में से एक कील निकाल लेना....
बेटा ऐसा ही करने लगा...एक दिन ऐसा भी आया कि बाड़े में एक भी कील नहीं बची। उसने खुशी खुशी यह बात अपने पिता को बताई....
पिता उस लड़के को बाड़े में लेकर गए और कीलों के छेद दिखाते हुए पूछा, "क्या तुम ये छेद भर सकते हो....
बेटे ने कहा,"नहीं पिताजी....
पिता ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा,"अब समझे बेटा, क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए कठोर शब्द, दूसरे के दिल में ऐसे छेद कर देते हैं, जिनकी भरपाई भविष्य में तुम कभी नहीं कर सकते....
प्ररेणादायक सन्देश : कभी क्रोध ना करें। दुनिया में जिंदगी केवल प्यार करने के लिए है। परिवार में, दोस्तों से, अपने अपनों से सिर्फ प्यार कीजिए। अगर क्रोध आए भी तो मौन रहे क्योंकि क्रोध से सामनेवाले का कम, अपना नुकसान अधिक होता है।(अज्ञात)
संशोधन :
पिता से एक गलती हो गई।
अब छेद देखकर बेटा परेशान होगा। उसे खेद होगा कि मेरे क्रोध ने कितने छेद किए? पिता एक और task / project (परियोजना, स्वकार्य) दे सकता था कि जब भी मन को लगे कि किसी का दिल दुखाया था, तो चूना या पुट्टी से 'खेद का एक छेद' भर दे। एक दिन सारे छेद (खेद) भर जायेंगे।
फिर दीपावली आएगी। इस खुशी में कि सारे छेद यानी खेद (अफसोस) भर गए, तो खुशी खुशी वह व्हाइटवाश/वार्षिक पुताई करा ले। कुमार राम भी घर लौटेंगे और लक्ष्मी भी। यानी राम और सीता (लक्ष्मी अवतार) दोनों। यह होगा दीपावली ऑफर...एक के साथ दूसरा फ्री।
शिक्षा : हर गलती सुधारने से सुधर जाती है, अफसोस या खेद करने से बनी रहती है।
@कुमार राम
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