देखियत कालिंदी अतिकारी।
निवेदन :
हमारे एक परिचित सुदामा प्रसाद पांडे ने कहीं से खोजकर यह पद दिया, जिसे वे अष्टछाप के वल्लभ-कवि सूरदास जी का 'मूलपाठ' बताते हैं। शोधार्थी इसे देखकर देख सकते हैं कि सूरदास जी ही खड़ी बोली के आविष्कर्ता थे।
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देखियत कालिंदी अतिकारी।
इंद्रप्रस्थ को खाण्डव-वन फिर करने की तैयारी।
छल-बल, धन-बल, भय-बल से है दलबदलू बल भारी।
पुरुष मात्र बस एक वही है, शेष सभी हैं नारी।
इंद्रप्रस्थ को खाण्डव-वन फिर करने की तैयारी।
छल-बल, धन-बल, भय-बल से है दलबदलू बल भारी।
पुरुष मात्र बस एक वही है, शेष सभी हैं नारी।
अपराधी उसके चरणों में लेट बनें अवतारी।
हों वो हत्यारे, दुष्कर्मी, कोष उड़ावनहारी।
'सूरदास' इस 'दयामूर्ति' को कहता है 'त्रि पुरारी'।
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हों वो हत्यारे, दुष्कर्मी, कोष उड़ावनहारी।
'सूरदास' इस 'दयामूर्ति' को कहता है 'त्रि पुरारी'।
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सावधान : कुछ भाष्यकार त्रि पुरारी का अर्थ 'त्रिपुर नामक असुर का शत्रु' न कहकर 'तीन लोक का विध्वंसक' करते हैं। खेद है।
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