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नारी अस्मिता गान

नारी अस्मिता गान

न्याय चाहता हर वंचित, शोषित कुचला इन्सान रे!
निकल पड़ा है आज सड़क पर, पूरा हिन्दुस्तान रे!

यह कैसा उत्थान जहां, सर्वोच्च सदा गिर जाते हैं। 
निर्लज अहंकार के मद में, कुत्सा से घिर जाते हैं।
दुराचार में दुर्योधन दुश्शासन से आगे जाते।
सेना सत्ता के बल पर जो, वनचर कुत्ते बन जाते।
फिर भी खुद को शेर समझकर, करते हैं अभिमान रे!

हिन्दू मुस्लिम हरिजन गिरिजन नहीं अहिल्या सीता है।
नारी धर्म-क्षेत्र पर न्यायिक-युद्ध सिखाती गीता है।।
बेटी, बहू, भार्या, मां है, वह कामुक उपभोग नहीं।
संजीविनी सुधा है नारी, घृणित मानसिक रोग नहीं।
मृत्यु-लोक पर केवल नारी जीवन का वरदान रे! 

'स्मृति' बोले आज, 'उमा' का गौरव गान नहीं टूटे। 
मौन 'राजमाता' का, माताओं का मान नहीं लूटे।
'लक्ष्मी' 'दुर्गा' 'द्रोपदियों' को 'रण-चंडी' बन जाने दो।
मत रोको पथ 'शिव'! 'कंकाली' आती है तो आने दो। 
'सदा-निर्मला वसुंधरा' का, शुरू 'क्रांति-अभियान' रे!
'सम-रसता' के 'कनक-घटों' में 'कुटिल गरल' है भरा हुआ।

अकस्मात दंशित हो मन का, सूखा व्रण फिर हरा हुआ।

मीठी परतों में कडुवापन होता है सब जान रहे।

लेकिन भोले जन भलमानसता में पड़ अनजान रहे।

ठोकर खाकर ही पाया है चलने का हर ज्ञान रे!


@कुमार, ०९.०१.२४, मङ्गलवार, प्रातः ७ बजे

शब्दार्थ :
स्मृति : परम्परा, स्मृति कथाएं,
उमा : शिव की प्रश्नाकुल शिवानी,
राजमाता : सत्ताओं की मातृ-शक्ति, शासक या उत्तराधिकारी की मां,
लक्ष्मी : मणिकर्णिका,
दुर्गा : दुर्गावति,
द्रोपदी : अस्मिता की हुंकार, प्रतिकार संकल्प,
रण चंडी : अन्याय के विरुद्ध प्रलयंकर हुई कालदेवी(कालिका),
शिव : संहार के देव, महादेव, पर्वतपुत्र,
कंकाली : कालिका, आदि-देवी, आदि-रुद्रा,
सदा निर्मला : सदैव निर्मल रहनेवाली, दोष हरनेवाली,
वसुंधरा : धात्री, धरती,
क्रांति अभियान : परिवर्तनकारी कार्ययोजना,
सम-रसता : जाति भेद ऊंच नीच बना रहे किंतु उनमें परस्पर एकरसता रहे, (समानता नहीं, क्योंकि वह अस्वीकार है,)
कनक-घट : सोने का घड़ा, घड़ा जो सोने का बना है, बाह्य आवरण, छद्म,
व्रण : घाव, जख़्म,
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