दो पुस्तकें प्राप्त
अपने पत्रकार मित्र डॉ. महेश परिमल की दो पुस्तकें मिलीं। 'सीढ़ियों का समीकरण' और 'तेरी मेरी उसकी लोरी'..
एक ही देश, काल, वातावरण में, एक ही महाविद्यालय और शहर के एकमात्र समाचार पत्र में काम करते हुए भी, चार वर्षों के अंतराल में हम लोग अग्रज और अनुज की श्रेणी में विभाजित हो जाते, अगर महेश परिमल अपनी तरल व्यवहार कुशलता के चलते मित्र न बन गए होते।
अपने जन्म की अद्भुत जीवंत सूचना देते हुए 'तेरी मेरी उसकी लोरी' में उन्होंने 'हर वर्ष का मानसून' (को) अपना जन्म बताया। महेश परिमल हमेशा मुझे इसी तरह चौंकाते रहे हैं। मानसून की प्रारम्भिक आहटों के बीच जब 'बिपरजोय' (विपर्यय) नामक चक्रवात का हंगामा बरपा था, तब डॉ. परिमल ने फोन किया कि पत्रकारिता विभाग की उनकी एक छात्रा के हाथों उन्होंने मुझे सद्य प्रकाशित दो पुस्तकें भिजवाईं हैं, जो आज मुझे मिल गईं।
प्रथम दृष्टया दोनों पुस्तकें अपने विषय के हिसाब से बिल्कुल नए धरातल पर पाठकों को ले जाती हैं। एक पुस्तक 'तेरी मेरी उसकी लोरी' लोरी के विविध प्रकारों पर शोधात्मक दृष्टि डालती है, वहीं दूसरी पुस्तक 'सीढ़ियोंका समीकरण' विविध चिन्तनों का बहुआयामी चित्रण है।
आज बस सूचना। अभी तो किताबें उल्टी पलटी हैं, पढ़कर ही इन पर समीक्षात्मक टिप्पणी हो सकेगी। तब तक प्रतीक्षा के पान का रसास्वादन करें।
किताबें भेजनेवाले सभी मित्रों का धन्यवाद! क्रमशः चर्चा होती रहेगी।
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