इसीलिए अकेला रह गया मैं
0वह व्यक्ति मिलना चाहता है मुझसे
देख रहा है मेरी तरफ
किसी जिज्ञासा या
कौतूहल से
पहचानने की छटपटाहट में
मुस्कुरा भी नहीं पा रहा
कोई अभिलाषा
उसके होंठ चबा रही है
कोई बस इतना
बस इतना सा
मेरी उंगली और अंगूठे को देखो
कितनी ज़रा सी जगह छोड़ी है
अगूंठे ने उंगली पर
बस इत्ता सा
सोच भी ले कोई
कि मिलना है मुझसे
उसके मनस तंत्र के रसायन शास्त्र को
उसकी आँखों में पढ़कर
मैं भौतिकशास्त्र के चुम्बकत्व में बंधा
बढ़कर मिल ही लेता हूँ
मिलने में
क्या जाता है
बल्कि कुछ मिल ही जाता है
जैसे न्यूटन को बल का सिद्धांत
जैसे आर्कमिडीज को आपेक्षिक घनत्व
मिलने में होता ही क्या है
कुछ मिलता नहीं तो कुछ खोता भी नहीं
सिर्फ थोड़ी सी अपेक्षा दरकती है
कभी कभी
एक बात मानकर चलो
मन के सिक्के के दो पहलू हैं
अपेक्षा और उपेक्षा
मिलोगे किसी से तो सिक्का उछलेगा
और गिरेगा तुम्हारी ही हथेली पर
कोई एक ही पहलू आएगा एक बार
और तुम को करना होगा स्वीकार
आत्मसंघर्ष का यही निचोड़ लेकर
चल पड़ता हूं मैं हर बार
दुनिया बहुत बड़ी है
क्योंकि तुम सब से मिल नहीं सकते
सब से मिल लोगे तो
बहुत छोटी लगेगी दुनिया
बस इतनी सी..
देखो इधर, ...इत्ती सी
मैं बहुत घूमा हूं
सड़सठ साल कम नहीं होते
हजारों लोगों से मिला
दूर से भी, पास से भी
स्थिर आंखों के अबोलों से
और हंसते होठों की बोलियों से
गले मिलकर दिल में उतरने की कोशिश के साथ
हाथ मिलाकर
अपनी गठानों से उनकी गठानें मिलाते
मिट्टी कितनी भी उपजाऊ हो
सभी बीज अंकुरित नहीं हो जाते
ऐसा ही संबंधों के साथ है
संघर्ष और श्रम करनेवालों को
सम्मान नहीं मिलता
उपलब्धियां तो दूर
और अगर दोनों मिल गए किसी तरह
तो अपनों से दूर
अहंकार के लोहे का किरीट पहने
दाँतेदार चालाकी ओढ़े हुए
तीन सम्मानित संघर्षशील उपलब्धियों से
मिला हूं मैं...
आमंत्रण के उसी रसायन और भौतिक आकर्षण में बंधा
उनके हाथों की गठानों से
अपने हाथों की गठानें मिलाता
मैंगनीज़ खदान का वह ठेकेदार
ईनाम बांटता था प्रतिभाओं को
राजनीति करता था
सफेद वस्त्रों में लिपटी भलमनसाहत की।
वह जातियों को करना चाहता था नेस्तनाबूद
वे भेद करती हैं सम्मान और उपलब्धियों में
वह सम्मान करता था उपलब्धियों का
किन्तु एक दिन
एक साहब और श्रीमान
संघर्ष और श्रम की जाति का निकल गया
ठेकेदार का जाति-विरोधी अपेक्षित व्यवहार
जातीय उपेक्षा में बदल गया।
यही हुआ एक अखिल भारतीय
वकील का हश्र
जो करता था जातीय अनाचारों का विरोध
और समता का भरता था दम
अपने एक आदरणीय के प्रति हो गया भ्रमित
श्रम और संघर्ष से उपार्जित शिक्षा की उपलब्धियों से
पूरे क्षेत्र में सम्मानित उस श्रीमान के प्रति
उसका अपेक्षाओं से भरा हुआ सम्मान
होने लगा उपेक्षित।
एक तीसरा भी है कवि-कुल-मणि
संघर्ष और श्रम की दरातियों से
काटते रहा कुंठाओं के कटीले बबूल
पाता रहा प्रमाणपत्र
सम्मान के द्वारा अधोहस्ताक्षरित
वह भी एक और संख्या बढ़ाने
बढ़ा एक और सम्मानित की तरफ
और चुम्बक की तरह छिटक गया
समान ध्रुव के प्रतिकर्षण से
श्रम और संघर्ष से निकलों से
कैसा सम्मान संबंध?
मेरी नज़र से गिर जाता है दोगलापन
और मैं अकेला रह जाता हूं
मेरे हाथों की गठानें
किसी के हाथों की गठानों से
आज तक नहीं मिली
इसीलिए अकेला रह गया मैं।
*
डॉ. रामकुमार रामरिया,
११.०८.२०२०
202, किंग्स कैसल रेजीडेंसी,
ऑरम सिटी, बालाघाट.
Comments