2122 2122 112/22
रंज़ो' ग़म जुल्मो क़हर भूल गए।
जब से छोड़ा है शहर, भूल गए।
छोड़कर तेरी जो' बस्ती निकले,
जाने' क्यों अपना भी' घर भूल गए।
कैसा' सहरा है ये' ताहद्दे'नज़र,
हम उमीदों का सफ़र भूल गए।
हर जगह आके हमें लगता है,
हम कहीं अपनी डगर भूल गए।
कौन बतलाए कहां जाना है,
लोग जाना है किधर भूल गए।
@कुमार, ०९.०९.२०२०
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