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किसलिए किसके लिए (गज़ल)

2122 2122 1212 22

गर्दिशों में भी रखा रोज़ जा रहा बाहर।
किसलिए किसके लिए ये दिया रहा बाहर।

बाढ़, बीमारी, महामारियां घुसीं भीतर,
आदमी जाता कहां खुद खड़ा रहा बाहर।

तेल को मुँह मेँ भरे है, मशाल फूंके है,
आग अन्दर है मगर वो बुझा रहा बाहर।

दिल की दौलत है निगाहों को सजाने आई,
अश्क की शक्ल में नादां बहा रहा बाहर।

सिफ्र से ज्यादा ज़िह्न में नहीं बचा कुछ भी,
सिरफिरा है जो बहुत कुछ बता रहा बाहर।

@कुमार ज़ाहिद, २३,०७,२०२०
बालाघाट,9893993403

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