साल के अंतिम दिन (३१.दिसंबर २०२३) की एक ग़ज़ल (हिंदी ग़ज़ल/संपूर्णिका) ० कितने बरस हुए हैं मिले, हम वहीं खड़े। इस राह से गुज़र गए, जो लोग थे बड़े। गर्दिश की उबालों में गले, सीधे सादे लोग, कमबख़्त संग ही न गले, रह गए कड़े। पन्ना उदासियों का, आख़िरी था, पढ़ लिया, दिन उम्र के रहेंगे, इसके बाद चिड़चिड़े। सुनते हैं आनेवाले नए दिन भी हैं नए, उनका भवन नया है, नए रंग हैं पड़े। ये लोग कौन हैं जो नई बात से पहले, गिरकर उखाड़ते हैं क्यों मुर्दे कई गड़े ० @डॉ. रा.रामकुमार, ३०दिसंबर, २०२३, प्रात: ९.३०, शनिवार, ग्रा नवेगांव, पो गोंगलई, ज़ि बालाघाट. (बहर-ए-मुज़ारे'अ मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़, अरकान : मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन वजन: २२१ २१२१ १२२१ २१२)