'स्वभाव' पर पांच मुक्तक :
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१. स्वभाव पर मुक्तक-१
.
शिकायत के लिफ़ाफ़े पर
लिखा है नाम ग़ैरों का।
बने तो काम अपना,
हर बिगड़ता काम ग़ैरों का।
कभी तो देखने मिल जाएं
वो मंज़र ज़माने में,
ख़ुशी भी जीतकर कह दे
कि यह ईनाम ग़ैरों का।
०
@कुमार, ७.१२.२३
०
२. स्वभाव पर मुक्तक-२
.
छिड़कना पीठ पर स्याही,
शराफ़त है ज़माने की।
उठाना ग़ैर पर उंगली
रवायत है ज़माने की।
सबल की गालियां होतीं,
शुभाशीषें बुज़ुर्गों की,
कराहें निर्बलों की भी-
अदावत है ज़माने की।
@कुमार, ८.१२.२३
(अदावत : दुश्मनी, विरोध, प्रतिरोध, प्रतिहिंसा)
०
३. स्वभाव पर मुक्तक-३
.
कभी सच बोलने की लोग
हिम्मत कर नहीं सकते।
भले अन्याय होता हो
मज़म्मत कर नहीं सकते।
भरी है गर्दिशो-बदहालियों ने
दिल में बस नफ़रत,
किसी से ख़्वाब में भी अब
मुहब्बत कर नहीं सकते।
@कुमार, ८.१२.२३
(मज़म्मत : निंदा, भर्त्सना, तिरस्कार)
०
४.स्वभाव पर मुक्तक-४ (लोकबोली में)
.
चूस रहा हूँ मैं तल्ख़ी को,
मीठे सांठे जैसा।
खट्टे मन को भांह रहा में,
निसदिन माँठे जैसा।
कद्दूकस कर कड़ू करेले,
मांड़े जी की जौ में,
सेंक रहा है उलट पलटकर,
वक़्त परांठे जैसा।
@कुमार, ८.१२.२३/१०.३०
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१. स्वभाव पर मुक्तक-१
.
शिकायत के लिफ़ाफ़े पर
लिखा है नाम ग़ैरों का।
बने तो काम अपना,
हर बिगड़ता काम ग़ैरों का।
कभी तो देखने मिल जाएं
वो मंज़र ज़माने में,
ख़ुशी भी जीतकर कह दे
कि यह ईनाम ग़ैरों का।
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@कुमार, ७.१२.२३
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२. स्वभाव पर मुक्तक-२
.
छिड़कना पीठ पर स्याही,
शराफ़त है ज़माने की।
उठाना ग़ैर पर उंगली
रवायत है ज़माने की।
सबल की गालियां होतीं,
शुभाशीषें बुज़ुर्गों की,
कराहें निर्बलों की भी-
अदावत है ज़माने की।
@कुमार, ८.१२.२३
(अदावत : दुश्मनी, विरोध, प्रतिरोध, प्रतिहिंसा)
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३. स्वभाव पर मुक्तक-३
.
कभी सच बोलने की लोग
हिम्मत कर नहीं सकते।
भले अन्याय होता हो
मज़म्मत कर नहीं सकते।
भरी है गर्दिशो-बदहालियों ने
दिल में बस नफ़रत,
किसी से ख़्वाब में भी अब
मुहब्बत कर नहीं सकते।
@कुमार, ८.१२.२३
(मज़म्मत : निंदा, भर्त्सना, तिरस्कार)
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४.स्वभाव पर मुक्तक-४ (लोकबोली में)
.
चूस रहा हूँ मैं तल्ख़ी को,
मीठे सांठे जैसा।
खट्टे मन को भांह रहा में,
निसदिन माँठे जैसा।
कद्दूकस कर कड़ू करेले,
मांड़े जी की जौ में,
सेंक रहा है उलट पलटकर,
वक़्त परांठे जैसा।
@कुमार, ८.१२.२३/१०.३०
शब्दार्थ :
सांठे/सांठा: गन्ने/गन्ना,
भांना : मथना; दही को मथकर मक्खन निकालना.
माँठे /मांठा : दही से मक्खन निकलने के बाद बचा खट्टा पानी; मही; अंग्रेजी में बटर मिल्क; छाछ.
कड़ू : कड़वा.
मांड़े : माँड़कर, माँड़ता है, (माँड़ना; आटा गूँथना; आटे में नमक, मिर्च, भाजी आदि गूंथकर परांठा या पूरी बनाना.)
०
५. स्वभाव पर मुक्तक-५
बहुराया है भोला बचपन,
हर्षित वृद्धावस्था।
निश्छल, अविचल, निर्भय होती,
अविकल अपढ़ अवस्था।
तिरस्कार, अपमान, क्रोध से,
पल दो पल मुरझाए,
उसकी दशा-दिशा ना बदले,
कलुषित, कुटिल व्यवस्था।।
@कुमार, ८.१२.२३/१०.३०
५. स्वभाव पर मुक्तक-५
बहुराया है भोला बचपन,
हर्षित वृद्धावस्था।
निश्छल, अविचल, निर्भय होती,
अविकल अपढ़ अवस्था।
तिरस्कार, अपमान, क्रोध से,
पल दो पल मुरझाए,
उसकी दशा-दिशा ना बदले,
कलुषित, कुटिल व्यवस्था।।
@कुमार, ८.१२.२३/१०.३०
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