गांवों के देश की स्मृतियों का आह्वान!
०
बहुत दूर तक जाना है तो
साथ साथ चल आजा।
बर्फ़ीले हिमगिरि में ठंडे
हाथों को मल आजा।
सांसों से मन की कांगड़िया,
फिर दहकाये आ।
०
ये अलाव के दिन हैं आजा,
बैठक तपे अंगीठी।
बतकहियों का स्वाद बढ़ाये,
कानाफूसी मीठी।
बड़े बड़े मसलों को मसले,
हल बतलाए, आ।
बहुत दूर तक जाना है तो
साथ साथ चल आजा।
बर्फ़ीले हिमगिरि में ठंडे
हाथों को मल आजा।
सांसों से मन की कांगड़िया,
फिर दहकाये आ।
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ये अलाव के दिन हैं आजा,
बैठक तपे अंगीठी।
बतकहियों का स्वाद बढ़ाये,
कानाफूसी मीठी।
बड़े बड़े मसलों को मसले,
हल बतलाए, आ।
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धन्य धान दे, छूछ पुआलों
ने डेरा डाला है।
बिस्तर बना घरों में, पशु को
चारा बन पाला है।
मेरा मन भी ख़ाली होकर,
मन भर पाए, आ।
0
@कुमार, ४.१२.२३, सोमवार
धन्य धान दे, छूछ पुआलों
ने डेरा डाला है।
बिस्तर बना घरों में, पशु को
चारा बन पाला है।
मेरा मन भी ख़ाली होकर,
मन भर पाए, आ।
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@कुमार, ४.१२.२३, सोमवार
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