सफ़र मांग लिया
एक तन्हा था तो बस एक सिफ़र मांग लियाकौन सा मैने किसी शख़्स का सर मांग लिया
बस इनायत भरी नज़रों में बसाहट मांगी
कोई बतलाए किसी का कहां घर मांग लिया
बोल दो मीठे मुहब्बत के ही मांगे मैंने
शोर ऐसा है कि जैसे बड़ा ज़र* मांग लिया
लोग पत्थर लिए निकले कि मिटा दें मुझको
मैंने क्या उनके इलाक़े में असर मांग लिया
सिर्फ़ आकाश से एक टूटा सितारा मांगा
ख़ल्क़* नाराज़ कि ज्यों शम्सोक़मर* मांग लिया
सैकड़ों बार जिन्हें कुतरा जहां वालों ने
मांगना तो नहीं था मैंने तो पर* मांग लिया
ख़ार पत्थर से भरा खाइयों ख़तरों से भरा
है गला काट सफ़र फिर भी सफ़र मांग लिया
०
@ डॉ. रा.रामकुमार, २४.१२.२३, २०.१५, रविवार।
बस इनायत भरी नज़रों में बसाहट मांगी
कोई बतलाए किसी का कहां घर मांग लिया
बोल दो मीठे मुहब्बत के ही मांगे मैंने
शोर ऐसा है कि जैसे बड़ा ज़र* मांग लिया
लोग पत्थर लिए निकले कि मिटा दें मुझको
मैंने क्या उनके इलाक़े में असर मांग लिया
सिर्फ़ आकाश से एक टूटा सितारा मांगा
ख़ल्क़* नाराज़ कि ज्यों शम्सोक़मर* मांग लिया
सैकड़ों बार जिन्हें कुतरा जहां वालों ने
मांगना तो नहीं था मैंने तो पर* मांग लिया
ख़ार पत्थर से भरा खाइयों ख़तरों से भरा
है गला काट सफ़र फिर भी सफ़र मांग लिया
०
@ डॉ. रा.रामकुमार, २४.१२.२३, २०.१५, रविवार।
शब्दार्थ : (* अंकित)
सिफ़र : शून्य।
ज़र : धन, ख़ज़ाना।
ख़ल्क़ : जनता, अवाम, दुनिया के लोग।
शम्सो क़मर : सूर्य और चंद्र।
ज़र : धन, ख़ज़ाना।
ख़ल्क़ : जनता, अवाम, दुनिया के लोग।
शम्सो क़मर : सूर्य और चंद्र।
पर : पंख।
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