टेनी : एक हिंदी मुक्तिका
0
गिर पड़े ना? सब बरजते थे कि ऐसा मत करो।
नामुरादों! मत उम्मीदों के पहाड़ों पर चढ़ो।।
नामुरादों! मत उम्मीदों के पहाड़ों पर चढ़ो।।
जब कभी अच्छा करोगे, टांग खींची जाएगी,
क्या ज़रूरत थी जो सन्नाटों से बोले-'कुछ कहो।।'
सब परेशां हैं, कहें क्या, और चुप कैसे रहें,
तुमको ही ज़्यादा पड़ी है, मुंह उठाकर बोल दो।।
यह भी है अपराध, जब हो शांति चारों ओर तब,
ज़ोर से जंभुआई लेकर अंग अपने तोड़ लो।।
सोच में डूबा हो कोई तो चिकोटी काटना-
सांढ़ को देना निमंत्रण- 'आओ मुझसे होड़ लो।।'
मानते हैं सब, शहद अच्छा है सेहत के लिए,
मोल लो, मधु-मक्खियों के छत्ते में मत हाथ दो।।
तुम बड़े अवतार ठहरे लाभ पहुंचाने चले,
होम करते हाथ जलते हैं दुबारा सोच लो।।
०
@कुमार, ०८.१२.२३, रात्रि ०८. बजे, शुक्रवार।
Comments