लीक छोड़ तीनों चलें
इस लोकप्रिय दोहे की आज आवश्यकता हुई तो खोज शुरू किया। दरअसल पहली पंक्ति अंदर थी बाहर नहीं आ पा रही थी। रेडीरेकनर कि तरह गूगल की मदद ली तो इतने विकल्प मिले। आप भी देखिये और सोचिए कि क्या पुस्तकों का सामूहिक संहार ठीक था?सामूहिक संहार दो कारणों से हुआ एक तो प्रकाशकों के प्रलोभन और बाज़ारवाद और दूसरा प्रकाशकों पर लेखकों के संगठनों का 'बाज़ारवादी तथाकथित विचारधारात्मक दवाब' के कारण।
ख़ैर पुस्तकों की मृत्यु के बाद उनकी अनाथ संतानों की मौसी मां/सौतेली मां या विमाता 'सोशल मीडिया' के धूल होते भंगार से... उक्त दोहे की दुर्दशा पेश है...
लीक लीक गाड़ी चले लीकहिं चले सपूत।
लीक छोड़ तीन ही चलें सागर, सिंघ, कपूत।।
2.
लीक-लीक गाड़ी चलै, लीकहि चले कपूत।
यह तीनों उल्टे चलै, शायर, सिंह, सपूत।।
3.
लीक लीक तीनो चलें कायर कूत कपूत।
बिना लीक तीनो चलें शायर सिंह सपूत।।
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'लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत।
लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत'।।
5.
लीक लीक कायर चलें, लीकहिं चले कपूत।
लीक छाङि तीनों चलें शायर सिंह सपूत।।
6.
'लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत।
लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत।।
-कबीर साहब
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लीक-लीक चींटी चलें, लीकहिं चले कपूत।
लीक छोड़ तीनों चलें - शायर सिंह सपूत।।
8.
लीक लीक तीनों चलें, " कायर, कूत, कपूत", बिना लीक तीनों चलें, " शायर, सिंह, सपूत"
9.
लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहि चले कपूत।
लीक छाड़ि तीनों चलें शायर सिंह सपूत।
@भारतेंदु हरिशचंद्र
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लीक लीक गाड़ी चले लीकहिं चले सपूत,
लीक छोड़ तीन ही चलें सागर, सिंघ, कपूत
रेख़्ता के अनुसार : गाड़ी लीक पर चलती है और बेवक़ूफ लड़का (सपूत) पुराने रस्म-ओ-रिवाज पर चलता है, शायर, शेर और नालायक़ बेटा (कपूत) पुराने रास्ते पर नहीं चलते, बल्कि नया रास्ता निकालते हैं।
2.
यह तीनों उल्टे चलै, शायर, सिंह, सपूत।
इसकी व्याख्या दिवराम (प्रस्तुतकर्ता) ने यूँ की : समाज द्वारा बनाए गए कायदे-कानूनों के व्यवहार को श्रेष्ठ सामाजिक होने का आदर्श माना जाता है, किंतु जिस तरह समाज चलता आया है यदि वैसा ही सबकुछ होता रहे तो फिर समाज में और भेड़ों के झुंड में कोई अंतर नहीं रहेगा। भेड़ों की एक प्रवृत्ति होती है कि जिधर से आगे की भेङ निकल गई बस बाकी भेड़े सब उसी रास्ते से जाएगी और आगे वाली भेड़ भी पहले से बने रास्ते का ही अनुगमन करेगी। किंतु समाज में जो उत्कृष्ट प्रतिभाएं होती है, वह अनिवार्यत:पहले से ही चली आ रही लीक को तोड़ती है और अपनी नई लीक बनाती है। कोई भी शायर, कभी अपने पहले से लिखी गई कविता का अनुकरण नहीं करना चाहता, वह हमेशा 'अंदाजे बयां और' की तलाश में रहता है। क्या जंगल में शेर किसी रास्ते का अनुमान करता है, वह जिधर से गुजरता है वही उसका रास्ता होता है। इसी तरह को पुत्र अपने पिता पुरखों की संपत्ति, काम करने के तरीकों आदि को अंधा होकर भोगता है, पालन करता है किंतु एक होनहार पुत्र अपने पुरखों के मार्ग को प्रशस्त करता है, उनमें सुधार करता है, उन को आगे बढ़ाता है।
3.
लीक लीक तीनो चलें कायर कूत कपूत।
बिना लीक तीनो चलें शायर सिंह सपूत।।
इस दोहे को प्रस्तुत करते हुये 'हिंदी लेखन' में व्याख्या की गई...
"लीक शब्द दरअसल लकीर से आता है, कहीं यह मार्ग, पंथ या पगडण्डी है तो कहीं यह परिपाटी, रीति या परम्परा तो कहीं सिर्फ रेखा, प्रणाली।
इसका दोहे का शाब्दिक अर्थ है
कायर , कुटिल व्यक्ति और कुपुत्र हमेशा बँधी बँधाई परिपाटी पर चलते है.. ( या चलने की बात भर करते है, आम तौर पर स्वयं को बचाने के लिए) जबकि एक शायर शेर और सुपुत्र सीमाओं से बाहर जा कर कर्तव्य पालन करते है।"
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लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत'।।
इसे प्रस्तुत करते हुये 'जनता से रिश्ता' में कहा गया : "इस कहावत को सुन कर ही शायद सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने कविता कही होगी, 'लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं'। बाईबिल की तर्ज़ पर कहा जाए तो 'धन्य हैं वे जो अंग्रेज़ी के लीक का सहारा लेकर हिंदी की लीक पर न चलने में अखंड विश्वास रखते हैं, ऐसे लोगों को ही सरकारी स्वर्ग में सोने का सिंहासन मिलता है।' फिर सोना चौबीस कैरेट वाला है या नींद वाला, यह पुनः आपके अंग्रेज़ी और हिंदी वाले लीक-लीक पर चलने पर निर्भर करता है।
5.
लीक लीक कायर चलें, लीकहिं चले कपूत।
लीक छाङि तीनों चलें शायर सिंह सपूत।।
ट्विटर में यह दोहा ट्वीट करते हुए अरुण बोथरा ने गीले कांक्रीट के रास्ते पर चलते एक अंग्रेज बच्चे की तस्वीर डाली जिसके पांव पिंडली तक सीमेंट में धंसे हुए हैं और टी शर्ट तथा शार्ट पहनकर उसकी मां एक आंख पर हथेली रखकर उसे देख रही है। उसका एक उघरा पैर चमक रहा है। अर्थ पाठकों को निकालना है।
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लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत।।
-कबीर साहब
सद्गुरु साहब नामक फेसबुक में कबीर साहब की फ़ोटो पर यह दोहा है, फिर लम्बी उपदेशात्मक व्याख्या है।
7.
लीक छोड़ तीनों चलें - शायर सिंह सपूत।।
8.
लीक लीक तीनों चलें, " कायर, कूत, कपूत", बिना लीक तीनों चलें, " शायर, सिंह, सपूत"
9.
लीक छाड़ि तीनों चलें शायर सिंह सपूत।
@भारतेंदु हरिशचंद्र
एक बड़ा अख़बार है- उसकी प्रस्तुति देखी ...
www.bhaskar.com
'हम काव्य पाठ करेंगे किले की प्राचीर से, भोर के भुनसारे में शब्दों की शमशीर से'
भारतेंदु हरिशचंद्र की ये पंक्तियां-'लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहि चले कपूत। लीक छाड़ि तीनों चलें शायर सिंह सपूत।?
☺️😢😊😢
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