१.
लफ़्ज़ जब खौफ़ से गानों से निकल जाते हैं
तब तसव्वुर भी तरानों से निकल जाते हैं
रूह बेचैन सी रहती है जिस्म के भीतर
लुत्फ़ उठ उठ के बहानों से निकल जाते हैं
कौन मरता है किसे मारना कब सोचते हैं
तीर खिंचकर जो कमानों से निकल जाते हैं
लोग ख़ुशियों में गले मिलके बलाएं लेते
हो मुसीबत तो वो दानों से निकल जाते हैं
लाख जज़्बात दबाओ जो ज़मीने दिल में
हीरे बन बन के वो खानों से निकल जाते हैं
अर्थ : १. दानों से : ज्ञानियों की तरह,
२. खानों से : खदानों से,
२.
लटके झटकों से भला ख़ुद को बचाएं कैसे
कट गई नाक तो फिर सब से छुपाएं कैसे
छह हटा तीन सौ सत्तर भी हटाये हमने
अपने लोगों को खुले आम बसाएं कैसे
सेब के बाग़ तो कुदरत ने बनाये लेकिन
इनको अहबाब का बाज़ार बनाएं कैसे
छांटकर बुत कई इतिहास से करते हैं खड़े
आज से आंख ये बेशर्म मिलाएं कैसे
हाथ में ले लिया सब क़ानूनो इंसाफ़ो अमल
हाथ तुग़लक़ से न अब जाके मिलाएं कैसे
या तो नाबीना है दुनिया कि है शातिर शैतां
चश्मदीदों की गवाही भी दिलाएं कैसे
बेच ईमान व अज़मत व ज़मीरो ख़ुदबीं
दोगले होके पुरस्कार कमाएं कैसे
अर्थ :
१. बुत : मूर्ति, जैसे पटेल, प्रताप आदि
२. अमल : सत्ता, सरकार,
३. अज़मत : गौरव,
४. ख़ुदबीं : स्वाभिमान,
@कुमार, २२.०५.२३
Comments