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‘सुनो! सुनो! कुत्ते भौंक रहे हैं’ - 1

 ‘सुनो! सुनो! कुत्ते भौंक रहे हैं’

सुनो सुनो कुत्ते भौंक रहे हैं,
आ रहे हैं बस्ती में भिखमंगे।
कुछ चिन्दी पहने हैं, कुछ ने पहने हैं थिगड़े ,
 और कुछ ने पहन रखी हैं रेशमी पोशाकें।
      यह राइम जो ग्यारहवीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी तक पढ़ी सुनी गई इक्कीसवीं शताब्दी के, तीसरे दशक में फिर गूंज उठी है ..
               इस राइम से पहला परिचय मेरा तब हुआ, जब मैं मिशन हायर सेकेण्डरी स्कूल सिवनी में नवमी कक्षा में पढ़ रहा था। हमारे अंग्रेजी शिक्षक थे कैप्टेन एम. क.े सिंह। कैप्टेन एम. क.े सिंह उर्फ़ कैप्टन महेंद्रकुमार सिंह के बारे में कहा जाता था कि उन्होंने सेना में रहते किसी को गोली मार दी थी और बाद में इस स्कूल में उन्होंने पढ़ाना शुरू कर दिया था, जिसमें मैं पढ़ रहा था। कैप्टेन एम के सिंह ईसाई थे और मिशन स्कूल स्कॉटलैंड द्वारा स्थापित और संचालित था। इसी स्कूल में कैप्टेन सिंह के बड़े भाई रेवरेंड जे. के. सिंह प्राचार्य थे और हमेशा सूट और टाई में, एकदम अंग्रेज अफसर की तरह रहते थे। मिशन स्कूल एक भव्य अंग्रेजी शैली के तीन मंजिला विशाल भवन में लगता था। ऐसी ही अंग्रेजी शैली का दूसरा भवन भैरोंगंज में है, जिसमें पहले शिक्षकों का प्रशिक्षण होता था और  नार्मल स्कूल के नाम से प्रसिद्ध था।
         मिशन स्कूल कंपनी गार्डन के सामने लगता था और दोनों के बीच एक तिराहा था जिसमें एक राह सीधी जबलपुर से आकर  दलसागर होती हुई बसस्टैंड को छूकर नागपुर निकल जाती थी। कंपनी गार्डन और मिशन स्कूल के सामने जो दोराहा कटता या जुड़ता था, उस डेल्टा में गांधी भवन था। कंपनी गार्डन से लगा एक भव्य चर्च इसका गवाह है, जिसमें सुबह शाम प्रार्थना का घंटा बजता था। ऐसा ही पीतल का एक बड़ा घण्टा मेरे स्कूल भवन के गुम्बद में भी था। यह घण्टा जब-जब बजता था, हमारे कालखंड (पीरियड) बदलते थे।  
एक दिन जब यह पीतल का घण्टा गूंजा तो हमारा अंग्रेजी का कालखण्ड शुरू हुआ। सिंह सर ने उस दिन एक पोएम पढ़ाई ‘हार्क हार्क, द डॉग्स डू बार्क.’ यह कविता अठारहवीं शताब्दी की है-  जो इस प्रकार है...

1.
हार्क हार्क,
द डॉग्स डू बार्क।
बेगर्स आर कमिंग टू टाउन,
सम आर इन रेग्स,
सम आर इन टेग्स,
एण्ड सम आर इन वेलवेट गाउन।

  इस पोयम या राइम का हिंदी अनुवाद ऊपर दिया जा चुका है। यह पोएम मुझे याद रह गयी। इसमें बना हुआ चित्र या रूपक या बिम्ब मेरे आसपास का था। सिवनी गरीबों का शहर था, भिखमंगे और गधे और सुअर हर तरफ दिखायी देते थे। गली, चैराहे, बाजार, मंदिर, मस्जिद, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, सब जगह। कुछ अमीर भी थे जो सोने चांदी के चमकीले व्यापारी थे, वे रेशम के कपड़े पहनते थे।
मेरा घर रेलवे स्टेशन के पास था और बसस्टैंड के सामने से मिशन स्कूल तक का दो किलोमीटर का रास्ता, अनेक हिन्दू मंदिरों और जैन दिगम्बर मंदिर को लांघकर बस स्टैंड के पास मोमिनपुरा की मस्जिद को बगल में छोड़कर मिशन स्कूल जाता था। बीच में बुधवारी बाजार था, जिसमें कॉपी, किताबें, पेन- पेंसिल लेने जाना ही पड़ता था। अनाज, मिठाई, सोना, चांदी, सब्जी और किराने के व्यापारियों से जगमगाती दुकानों से यह इलाका भरा हुआ था।     
(क्रमशः)
https://drramkumarramarya.blogspot.com/2023/05/2.html?m=1

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