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कुत्ते भौंक रहे हैं। -2

कुत्ते भौंक रहे हैं। -2

(पिछले से लगातार)

आप देख सकते हैं कि छः पंक्तियों की पोएम या राइम की अंतिम तीन पंक्तियों में शामिल प्रतीक और बिम्ब मेरे शहर से होते हुए मेरी आंखों और दिमाग में रचे बसे थे। पोएम मेरे लिए पूरी तरह ग्राह्य थी क्योंकि इसमें आदर्श सम्प्रेषणीयता थी। मासूम व्यंग्य और विद्रूपता का पता तो अब लगा, जब दुनिया देख ली, जब चकाचैंध के रहस्य और इंद्रजाल समझ आये। पोएम एकदम चैदह साल के बचपन से उठकर प्रौढ़ हो गयी। लेकिन मजे की बात यह है कि ग्यारहवीं शताब्दी से अठारहवीं शताब्दी के बीच में, जब इसका जन्म इंग्लैंड में कई किश्तों में हुआ, तब यह वहां किंडर-गार्टन (नर्सरी) यानी शिशु-शालाओं के बच्चों की ‘राइम’ थी, शिशु कविता थी।

मुझे इस बात का धक्का लगा था कि इंग्लैंड में जन्मी कविता में भिखारी और थिगड़े-चिंदियां कहां से आ गए? मेरे मन में तो वहां के राजा, रानियां, राजकुमार और राजमहलों की चकाचैंध भरी हुई थी। लेकिन जब मैंने ‘मार्क ट्वेन’ का बाल उपन्यास ‘द प्रिंस एंड पॉपर’ पढ़ा, तब उपन्यास के प्रारम्भ में ही ‘टॉम कॉउंटी’ के नाम से चित्रित गन्दी और गरीब बस्ती देखकर हैरान रह गया।  हठात दिमाग में गूंजा कि ‘अरे,  यह तो भारत का ही एक हिस्सा है।’ (‘मार्क ट्वेन’ के उपन्यास ‘द प्रिंस एंड पॉपर’ पर ‘राजा और रंक’ फिल्म बनी, जिसे इसी कक्षा में रहते ‘क्लास टूर’ में लाल किले और ताजमहल की सैर से लौटकर जबलपुर की संगमरमर की चटटाने और बंदरकूदनी देखने के बाद किसी टाकीज में हम बच्चों ने देखा था।)
किंतु बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। कुत्ते, भिखारी, चिंदी, रेशम सहित इस कविता ने एक लंबी ऐतिहासिक यात्रा की है, जो विद्रूपताओं, विसंगतियों, विडम्बनाओं, व्यंग्य और हास्य की गलियों से होकर गुजरी है।
इस राइम या बाल कविता के पर्दे में छुपी विद्रूपता के कई पाठ बने, पैरोडियां बनीं। कुछ पाठान्तर हैं। अलग अलग समय में इस कविता में अलग अलग बिम्ब और रूपक बनें, प्रतीकों में बदलाव आया। विशेषकर रेग, टेग और जेग में। वेलवेट के स्थान पर सिल्क भी आया। यह तात्कालीन राजाओं की पसन्द और रुचि के कारण हुआ। कहींेे  अगर भिखमेंगे हैं तो किसी पीड़ित ने पत्नी के आने पर कुत्ते का भौंकना बताया है। राजशाही पर असंतोष का चित्र भी हमें देखने को मिलता है, राजा के अहंकार, ग़रीबों के प्रति उसका उपेक्षा भाव, सामंतों और पूंजीपतियों के प्रति लगाव, उसकी हिंसक और क्रूर वृत्ति पर, और कहीं समाजवाद पर भी कटाक्ष इस पोयम या राइम के माघ्यम से किया गया है।  इस कविता या पोयम अथवा राइम के चार संस्करण मिले हैं जिनका हिन्दी अनुवाद नीचे उपलब्ध है- (क्रमशः)
https://drramkumarramarya.blogspot.com/2023/05/3.html?m=1

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