पांच आकस्मिक दोहे जंतर मंतर पर खुली, रक्षालय की पोल। राजतंत्र ओढ़े मिला, लोकतंत्र का खोल। 1 दिल्ली ने ज्यों ही किया, राजदंड-पाखंड। महाकाल के लोक में, आंधी चली प्रचंड। 2 गुरु-पत्नी का फिर किया, शशि ने यौनाखेट। सप्त ऋषी गिरकर हुए, धरती पर लमलेट। 3 अहंकार की आख़िरी, इच्छा होगी पूर्ण। स्थापित सब मूर्तियां, ढहकर होंगी चूर्ण। 4 ठठरी बांधे था कभी, शव-दाहक इक डोम। राम कथा कर बांटता, गरल, बोलकर'ओम'। 5 @कुमार, 30.05.23, सोमवार।