बंजारे दिन....
बंजारे दिन घूम घूम औज़ार बनाते हैं।
गांवों के फुटपाथों पर भट्टी दहकाते हैं।
बचपन को इस्पाती घोड़े, लकड़फोड़ कुल्हाड़ी।
चिमटा, कलछी, चाकू, हंसिया, मांगे आंगन-बाड़ी।
तवा बनाते हैं, कैंची में धार लगाते हैं ।
बंजारे दिन....
शाम नशीली, सुबह सुहानी, उनके डेरे आती ।
छौंकी हुई रात गुदड़ी भर सपने घेरे लाती।
भोर-पंखेरू उन्हें राग-मल्हार सुनाते हैं ।
बंजारे दिन....
सड़कें, रौनक, महल, मंडियां, साख तुम्हारी हैं।
वे चल दिए बुझाकर चूल्हे, राख तुम्हारी है।
वे कब किसकी धरती पर अधिकार जताते हैं?
बंजारे दिन....
@ कुमार, 260502009.
Comments
hardik badhaiyan
आप जिस आतमीयता और निरंतरता के साथ मुझे पढ़ रहे हैं और अपने कमेंट्स दे रहे है वह रोमांचक है और प्रेरणास्प्रद भी । विधताआंे के साथ असपकी अपनी समर्थ अभिव्यक्तियां विविध माध्यमों से मनोरंजन और विचार संप्रेषित कर रही हैं । आपके हास्य व्यंग्य की सहज शैलियां न केवल गुदगुदाती है वरन प्रतिक्रिया के लिए मीठी चिकौटियां भी काटती हैं।
बहुत बार आपके साइट पर जाकर बाक्स में संदेश भेजना चाहा पर सफल नहीं हुआ तो अपने ही साइट से संदेश दे रहा हूं ।
आपका बहुत आभार कि आपने मुझे पढ़ा और सराहा।
आपका
डाॅ. रा. रामकुमार ,
क्बीर वीथिका ,सिवनी रोड ,नैनपुर
http://dr.ramkumarramarya.blogspot/
यह गीत...कैसे बताऊं इसने बहुत दिनों बाद जैसे आत्मा को झकझोर दिया है...
हाथ पोस्टर बनाने को मचल रहे है..ऐसा लगता है कि क्या करूं और यह गीत श्रम के हरावल दस्तों तक तुरंत पहुंच जाए...
पहली बार बधाई बगैरा कहने की जरूरत महसूस ही नहीं हो रही...अभिभूत हूं.
aaur apse chata bhi kya tha.....dil tak hi to ana chata tha....
ab main bechain hoo ki kab apka poster dekhoon ..
idhar net kharab hi rahta hai..poori district
pareshan hai...isliye e mail par khabar kar den.
ab aapka bhi kya kahoon ...
atmeeyta ke sath
Dr. R. Ramarya.