हिंदी ग़ज़ल (गीतल)
बांह चढ़ाए घूम रहे हैं शिकवे और शिकायत।
प्रेमनगर में आने वाली है फिर कोई आफ़त।
दम्भ दमा के सर पर हावी अहंकार का डेंगू,
कैसे इनकी करे चिकित्सा सहमी हुई शराफत।
पूरब पश्चिम के झगड़े अब उत्तर दक्षिण में हैं,
चाकू लिखते हैं पीठों पर नफ़रत भरी इबारत।
कटुता चाहे सब पहनाएं, उसे नेह की माला,
अलगावों की चाह, चाकरी करे, अपाहिज चाहत।
चूल्हों की साजिश है देखें कितना ज़ोर चने में,
डाल भाड़ में एक अकेले की जांचें हैं कुव्वत।
@कुमार, २७.०९.२४, शुक्रवार,
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