राष्ट्रीय वन्य-प्राणी दिवस।
बाघनगर बालाघाट, 4 सितंबर 2024आज 'राष्ट्रीय वन्य-प्राणी दिवस' है - 'National wildlife day'.
प्रतिवर्ष 22 फरवरी और 4 सितंबर को राष्ट्रीय वन्य प्राणी दिवस मनाया जाता है। यह दिन जंगल और उनके मुहाने और पहाड़ों की तराइयों में बसे गांव की यात्राओं, वहां के जन जीवन को समझने, उनके साहस और उनकी जीवटता को समझने, उसकी 'अनुभूति' करने के लिए निर्धारित किये गए हैं। वन्यजीवों के प्रति करुणा और सहानुभूति विकसित करने के लिए प्रतिवर्ष, अक्टूबर के बाद से 'वन विभाग' 'अनुभूति' कार्यक्रम संचालित करता है। 'अनुभूति' कार्यक्रमों में विद्यालयों के छात्र छत्राओं के शिविर जंगलों में लगाए जाते हैं। वन अधिकारियों और प्रशिक्षित वन-मित्रों के माध्यम से जंगल के अंदर शिविर लगाकर वन्यप्राणियों के प्रति जानकारी भी दी जाती है और उनके स्वभाव की विस्तृत पड़ताल कराई जाती है। सुरेंद्र बडीचार्य प्रशिक्षित वन-मित्र के रूप में बालाघाट के जंगलों में इन शिविरों का संचालन करते हैं और नुक्कड़ नाटकों तथा गीतों के माध्यम से बच्चों को वन-प्राणियों के प्रति सहानुभूति का भाव जगाने का काम करते हैं।
'राष्ट्रीय वन्यप्राणी दिवस' का उद्देश्य भी यही है कि सप्ताहांत में ख़ाली में आप अपना समय जंगल में बिताएं, वन्यप्राणियों को देखें और अपना आर्थिक सहयोग, वन-पर्यटन विभाग के माध्यम से करें जिससे वन्य प्राणियों के संरक्षण में सहायता मिले। अभयारण्यों और वन्य-प्राणी सरंक्षण परियोजनाओं का लक्ष्य जनता को जंगल से जोड़ना है।
बालाघाट 'कान्हा बाघ अभ्यारण्य' और 'पेंच बाघ अभ्यारण्य' के बीच स्थित है। पेंच अभ्यारण्य सिवनी और छिन्दवाड़ा का साझा हिस्सा है। खवासा गेट से ही अंदर जाएं तो नीलगायों के झुंड सांभरों के साथ या अलग भी मिल सकते हैं।
गोंदिया के समतली स्थलों को छोड़ दिया जाए तो बाघनगर बालाघाट तीन तरफ़ घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ों से घिरा हुआ है। मुक्की कान्हा अभ्यारण्य और खवासा अभ्यारण्य के अलावे दक्षिण में भंडारा के चोर-खमारा स्थित नयागांव-नगझिरा अभ्यारण्य वन्य प्राणियों की बहुलता के केंद्र हैं। वन-भैंसे (गौर) तो आपको वन-नाकों पर चरते हुए मिल जाएंगे। जंगली सुअरों के अर्धशतक झुंड आपका रास्ता काटेंगे और उनका पीछा करती शर्मीली जंगली बिल्ली यानी तेंदुए की आहट आप बंदरों और कोटरी के मुंह से सुन सकते हैं। चोर खमारा मार्ग में तो दुर्लभ भालू लगभग एक किलोमीटर हमारे बगल ही चला और फिर सड़क पार करके जंगल में अदृश्य हो गया।
लालबर्रा नयागांव और टेकाड़ी 'बाघ परिवार का साम्राज्य' है। बहादुर और निर्भीक पिता बब्बा, निडर निर्भया, उनके पुत्र दबंग बजरंगी, उसकी बहनें बिंदास 'मंदाकिनी और मोहिनी' ,---और अब उनकी सन्तति से सोनवानी के दुर्गम पर्वत की तराई में सर्राटी जलाशय का इलाक़ा आबाद किए हुए हैं। डोंगापानी का पालना-घर* पार करने के बाद जब आप सर्राटी नदी के बहाव के बीचोंबीच समतल रेत पर दूर तक फैले गेंहुए ऊंचे ऊंचे पेड़ों का समूह आपका मन बांध लेते हैं। एक बार में क्रिया है कि सारे नियम तोड़कर उन पेड़ों के आसपास अपनों के साथ खो-खो खेल लें। नहीं उतर सकते न, जंगल का नियम है। (*निर्भया ने अपने तीनों बच्चे यहीं पाले और फिर मंदाकिनी ने भी इसे अपने बच्चों के लिए 'पालना घर' बनाया।)
ख़ैर ज़रा सा आगे बढ़कर जब आपकी सफारी सोनेवानी पहाड़ की तराई में उजाड़ और अनाथ पड़े गांव 'चिखला-बोड़ी' जानेवाली सड़क पर आएं तो सावधान, क्या पता कब 'एक्कड़ गौर' आपका रास्ता रोककर खड़ा हो जाये, कह नहीं सकते। ऐसे में शर्मीली कोटरी और चौकडी भरते चीतलों से प्यार न हो जाये तो बाघनगर का सौंदर्य ही क्या।
रमरमा जलाशय चढ़ने के पहले से सिल्ले के पहाड़ पर चढ़कर भी वन्यप्राणियों से मिला जा सकता है। नवेगांव से सोनवानी का दुर्गम पहाड़ चढ़कर सिलेझरी तक पहुंचने पर पांच बाघों की पंचायत और गौरों (bison) तथा चीतलों-सांभरों के समूह आपका स्वागत कर सकते हैं।
इधर सिवनी जाते समय बंजारी घाटी से भी सोनवानी पहाड़ पर चढ़ना ही पड़ता है। लामता होते हुए परसवाड़ा और बैहर जाएं तो दुर्गम पहाड़ आपकी परीक्षा लेते दिखाई देंगे। चिंता न करें, सैलानी राजमार्ग आपके साथ चलेगा। इसी तरह गांगुलपारा के 52 मोड़ोंवाला राजमार्ग आपको बैहर और मुक्की और मलाजखंड की ताम्र-खानों तक पहुंचाएगा।
अगर आपका मन करे और तन्नोर पार करते हुए बंजर-तट के मुक्की-गेट के अंदर घुस जाएं, (अभी नहीं, अक्टूबर आने दीजिये) तो आप बारह-सिंघों के एकमात्र अभ्यारण्य में आने का सुनहरा अवसर पाएंगे। बारहसिंघे (दलदलजीवी) सांभरों और चीतलों के झुंड में आपके न चाहने पर भी दिख जाएंगे। बाघ तो राजा है, मिला तो मिला, नहीं तो नहीं मिला। नीलिमा की बेटी नीलम अपने बच्चों के साथ अपने निर्धारित जलाशय के पास प्रायः दिख जाती है।
आपको वन्यप्राणी दिवस की बधाई!
@डॉ.रा.रामकुमार,
'राष्ट्रीय वन्यप्राणी दिवस' का उद्देश्य भी यही है कि सप्ताहांत में ख़ाली में आप अपना समय जंगल में बिताएं, वन्यप्राणियों को देखें और अपना आर्थिक सहयोग, वन-पर्यटन विभाग के माध्यम से करें जिससे वन्य प्राणियों के संरक्षण में सहायता मिले। अभयारण्यों और वन्य-प्राणी सरंक्षण परियोजनाओं का लक्ष्य जनता को जंगल से जोड़ना है।
बालाघाट 'कान्हा बाघ अभ्यारण्य' और 'पेंच बाघ अभ्यारण्य' के बीच स्थित है। पेंच अभ्यारण्य सिवनी और छिन्दवाड़ा का साझा हिस्सा है। खवासा गेट से ही अंदर जाएं तो नीलगायों के झुंड सांभरों के साथ या अलग भी मिल सकते हैं।
गोंदिया के समतली स्थलों को छोड़ दिया जाए तो बाघनगर बालाघाट तीन तरफ़ घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ों से घिरा हुआ है। मुक्की कान्हा अभ्यारण्य और खवासा अभ्यारण्य के अलावे दक्षिण में भंडारा के चोर-खमारा स्थित नयागांव-नगझिरा अभ्यारण्य वन्य प्राणियों की बहुलता के केंद्र हैं। वन-भैंसे (गौर) तो आपको वन-नाकों पर चरते हुए मिल जाएंगे। जंगली सुअरों के अर्धशतक झुंड आपका रास्ता काटेंगे और उनका पीछा करती शर्मीली जंगली बिल्ली यानी तेंदुए की आहट आप बंदरों और कोटरी के मुंह से सुन सकते हैं। चोर खमारा मार्ग में तो दुर्लभ भालू लगभग एक किलोमीटर हमारे बगल ही चला और फिर सड़क पार करके जंगल में अदृश्य हो गया।
लालबर्रा नयागांव और टेकाड़ी 'बाघ परिवार का साम्राज्य' है। बहादुर और निर्भीक पिता बब्बा, निडर निर्भया, उनके पुत्र दबंग बजरंगी, उसकी बहनें बिंदास 'मंदाकिनी और मोहिनी' ,---और अब उनकी सन्तति से सोनवानी के दुर्गम पर्वत की तराई में सर्राटी जलाशय का इलाक़ा आबाद किए हुए हैं। डोंगापानी का पालना-घर* पार करने के बाद जब आप सर्राटी नदी के बहाव के बीचोंबीच समतल रेत पर दूर तक फैले गेंहुए ऊंचे ऊंचे पेड़ों का समूह आपका मन बांध लेते हैं। एक बार में क्रिया है कि सारे नियम तोड़कर उन पेड़ों के आसपास अपनों के साथ खो-खो खेल लें। नहीं उतर सकते न, जंगल का नियम है। (*निर्भया ने अपने तीनों बच्चे यहीं पाले और फिर मंदाकिनी ने भी इसे अपने बच्चों के लिए 'पालना घर' बनाया।)
ख़ैर ज़रा सा आगे बढ़कर जब आपकी सफारी सोनेवानी पहाड़ की तराई में उजाड़ और अनाथ पड़े गांव 'चिखला-बोड़ी' जानेवाली सड़क पर आएं तो सावधान, क्या पता कब 'एक्कड़ गौर' आपका रास्ता रोककर खड़ा हो जाये, कह नहीं सकते। ऐसे में शर्मीली कोटरी और चौकडी भरते चीतलों से प्यार न हो जाये तो बाघनगर का सौंदर्य ही क्या।
रमरमा जलाशय चढ़ने के पहले से सिल्ले के पहाड़ पर चढ़कर भी वन्यप्राणियों से मिला जा सकता है। नवेगांव से सोनवानी का दुर्गम पहाड़ चढ़कर सिलेझरी तक पहुंचने पर पांच बाघों की पंचायत और गौरों (bison) तथा चीतलों-सांभरों के समूह आपका स्वागत कर सकते हैं।
इधर सिवनी जाते समय बंजारी घाटी से भी सोनवानी पहाड़ पर चढ़ना ही पड़ता है। लामता होते हुए परसवाड़ा और बैहर जाएं तो दुर्गम पहाड़ आपकी परीक्षा लेते दिखाई देंगे। चिंता न करें, सैलानी राजमार्ग आपके साथ चलेगा। इसी तरह गांगुलपारा के 52 मोड़ोंवाला राजमार्ग आपको बैहर और मुक्की और मलाजखंड की ताम्र-खानों तक पहुंचाएगा।
अगर आपका मन करे और तन्नोर पार करते हुए बंजर-तट के मुक्की-गेट के अंदर घुस जाएं, (अभी नहीं, अक्टूबर आने दीजिये) तो आप बारह-सिंघों के एकमात्र अभ्यारण्य में आने का सुनहरा अवसर पाएंगे। बारहसिंघे (दलदलजीवी) सांभरों और चीतलों के झुंड में आपके न चाहने पर भी दिख जाएंगे। बाघ तो राजा है, मिला तो मिला, नहीं तो नहीं मिला। नीलिमा की बेटी नीलम अपने बच्चों के साथ अपने निर्धारित जलाशय के पास प्रायः दिख जाती है।
आपको वन्यप्राणी दिवस की बधाई!
@डॉ.रा.रामकुमार,
Comments