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भारतेंदु और हिंदी जयंती

आज हिंदी के शिखर पुरुष भारतेंदु जी की 175 वीं जयंती है।

उन्हें नमन!

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी।

उनके प्रसिद्ध दोहे--

'निज-भाषा'*(अवधी)


निज-भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज-भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय के सूल।। 1


अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन,

पै निज-भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।। 2

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार,
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।। 8

भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात,
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।। 9

सब मिल तासों छाँड़ि कै, दूजे और उपाय,
उन्नति 'भाषा' की करहु, अहो भ्रातगन आय।। 10

                                   @हरिश्चन्द्र 'भारतेंदु',

             बीसवीं सदी में आधुनिक हिंदी, खड़ी बोली, भाखा, हिंदवी के जनक पर तेरहवीं-चौदहवी सदी की हिंदवी के जनक अमीर खुसरो का प्रभाव था। इसका प्रमाण भारतेंदु जी की वे मुकरियाँ हैं जो उन्होंने अमीर खुसरो की नकल पर स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में लिखी- 
            वह आवे तब शादी होय। 
            उस बिन दूजा और न कोय॥
            मीठे लागें वाके बोल। 
            ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥ (खुसरो)

           सब गुरुजन को बुरो बतावै।
          अपनी खिचड़ी अलग पकावै॥
          भीतर तत्व न झूठी तेज़ी।
          क्यों सखि सज्जन नहिं अंग्रेज़ी॥ (भारतेंदु)

          भीतर भीतर सब रस चूसै।
          हंसि हंसि कै तन मन धन मूसै॥
          जाहिर बातन में अति तेज।
          क्यों सखि सज्जन नहिं अंगरेज॥(भारतेंदु)

हिंदवी /हिंदुई
           13वीं सदी से हिंदवी दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों के शिक्षित हिंदु-मुसलमान लोगों की बोलचाल और साहित्य की भाषा थी, जिससे हिंदी, हिंदुस्तानी और उर्दू का विकास हुआ।
        हिंदवी की लिपि नस्तलीक़^ और देवनागरी दोनों थी।
     हिंदवी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल अबु सईद ने फारसी इतिहास में 1049 में किया था।
         हिंदवी/हिंदुई शब्द उत्तर भारत की विभिन भाषाओं और बोलियों जैसे ब्रजी, अवधी, बुन्देलखंडी, देहलवी, लाहौरी आदि के लिए अलग-अलग समय में हुआ है। परन्तु देहलवी बोली यानी खड़ी बोली के रूप में ही सबसे अधिक इसे पहचाना गया।
      अमीर खुसरो (1253 -1325 ईसवी) को हिंदवी का पहला कवि माना जाता है।
अमीर खुसरो लिखते हैं-
            तुर्क-ए-हिंदुस्तानीय मन हिंदवी गोयम चु आब
            शक्रे-मिस्ररी ना दारम कज अरब गोयम सुख़न
     अर्थात मेरे पास शक्कर और मिसरी नहीं है और अरबी में कैसे बात करूं? मैं हिंदुस्तानी तुर्क हूँ, इसलिए हिंदवी में जवाब देता हूँ। (खुसरो की मां हिंदवी/हिंदुस्तानी थी।)
         मध्यकाल में हिंदवी दिल्ली और आसपास के क्षेत्र की भाषा थी, जिसमें अरबी-फारसी का प्रभाव था। यह दिल्ली से आगरा तक के इलाके में बॊली जाने वाली खड़ी बोली का साहित्यिक रूप था।
          भोलानाथ तिवारी कहते हैं कि हिंदवी वो भाषा थी जो शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित हुई थी और मध्यदेश की भाषा थी।
          सैयद इंशा अल्लाह खान (1800 ई. में) ने  हिंदवी में लिखी 'रानी केतकी की कहानी’, उसमें वे लिखते हैं…”कहानी ऐसी कहिए कि जिसमें हिंदवी छुट और किसी बोली का पुट न मिले”। अर्थात कहानी में हिंदवी के अलावा किसी और भाषा-रूप के शब्द नहीं होने चाहिए।
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* १. निज-भाषा : अपनी भाषा,  मातृ-भाषा, भारत-भाषा, (पाली, प्राकृत, डोगरी, अवधी, मागधी, ब्रज, बुंदेली, बघेली, निमाड़ी, पंजाबी, राजस्थानी (डिंगल), गुजराती, महाराष्ट्री (मराठी वैदर्भी, नागपुरी खानदेशी, कोंकणी, आदि), द्रविण ( तेलुगु, तमिल, मलयाली, कन्नड़), छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बंगाली, असमी, पहाड़ी एवं अन्यादि। (सुझाव आमंत्रित). 
२. भाषा : कौरवी, खरी बोली, खड़ी बोली, हिंदी, हिंदुस्तानी, खड़ी बोली का विकास शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप और ब्रजभाषा और अवधी जैसी साहित्यिक भाषाओं के साथ-साथ उर्दू और दक्खिनी जैसी अन्य भारतीय भाषाओं से भी जुड़ा है. 

^ नस्तालीक़, इस्लामी कैलिग्राफ़ी की एक प्रमुख पद्धति है। इसका जन्म ईरान में चौदहवीं-पन्द्रहवीं शताब्दी में हुआ। यह इरान, दक्षिणी एशिया एवं तुर्की के क्षेत्रों में बहुतायत में प्रयोग की जाती रही है। कभी कभी इसका प्रयोग अरबी लिखने के लिये भी किया जाता है। उर्दू की लिपि यही है। 
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                                                                      (संकलित)


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