कर हर मैदान फतह
मेहबूब की *मदर इंडिया* में नरगिस नायिका की प्रमुख भूमिका में थीं और उनके बिगड़ैल बेटे बिरजू की भूमिका निभाई थी सुनील दत्त ने। फ़िल्म के दौरान ही कुछ ऐसा घटा कि नरगिस और सुनील (बलराज दत्त) दाम्पत्य में बंध गए। उन दोनों के भ्रांत-पुत्र 'खलनायक के नायक' संजय दत्त की पारिवारिक कथा किसी 'महाकाव्य' से कम नहीं है। घटना चक्र, मोह व्यामोह, संघर्ष, दिग्भ्रांति, सज्जनता, प्रेम, समर्पण, धोखा, गंभीर बीमारियों, मुसलसल मृत्यु, आसन्न राजनीति, अय्यासी, षड्यंत्र, आरोप, अपराध, कानूनी सज़ाओं, उच्चतम राजनीतिक पहुंच और केंद्रीय राजनीतिक व्यक्तित्वों का एक विराट वास्तविक कथा-चित्र है।
नरगिस के पुत्र और फ़िल्म उद्योग के "भव्य स्वर्णिम सपनों के व्यापारी" कपूर परिवार के सफल प्रपौत्र अर्थात चौथी पीढ़ी के सर्वाधिक साक्षर सुपुत्र के बीच बने तानेेबानेे का अद्भुत चित्रण है "संजू"। इस महाकाव्यात्मक फ़िल्म के केंद्रीय चरित्र संजय दत्त का अंधेरे में जाने, डूबने और निकलकर बाहर आने का समकालीन फिल्मी कला तत्वों के आधार पर बेहतर चित्रण है।
फिल्मी पटकथा में गीतों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इस फ़िल्म में भी है।
फ़िल्म में अवसाद, किंकर्तव्य विमूढ़ता के घटाटोप में डूबे संजू के उभरने के सकारात्मक कैनवास में आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति और अन्तःप्रेरणा के चित्रण का बहुत खूबसूरत प्रयोग हुआ है। संजू बाबा अपनी मां को बेहद प्यार करते थे और प्राकृतिक तथा मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पिता से उतनी ही दूरी बनाकर चलते थे, जितनी अक्सर हर पीढ़ी में होती है। यहां दूरी की बात है, प्रेम न होने की बात नहीं है। दूरी में भी रेतीली नदी के अंतस्थल में बहनेवाले पानी की तरह प्रेम भी सतत प्रवाहित रहता ही है। इसलिए पुत्रों को मांं की आंख का तारा ही नहीं कहते, लख्ते जिगर (ममाज बॉय) भी कहते हैं। लेकिन वह पिता से दूर भी नहीं। मजबूती में वह पर्दे के सामने और पीछे पिता के डंबल उठाकर अपनी मसल मजबूत करता है। करे भी क्यों नहीं। अगर वह मां का दिल है तो पिता का कंधा भी तो है। बेटा साधिकार पिता के दम पर ही कॉलर उठाकर और बाहें चढ़ाकर घूम सकता है तो बेेेटे के दम पर पिता छाती ठोंककर कह सकता है-"अभी तो मैं जवान हूं।"
संजू भी ऐसा ही बेटा है। यह मेरी दृष्टि में वह पहली फ़िल्म है जिसमें समर्थ अभिनेता के जीवित रहते, किसी अन्य समर्थ अभिनेता ने उसकी बायोपिक की है। जीवित अपराधियों और खिलाड़ियों की बायोपिक में समर्थ अभिनेताओं द्वारा अभिनय करना एक अलग बात है, अभिनय की मांग है।
ज़रा इस प्रसंग में अन्तःप्रेरणा से एक संघर्षशील का अपनी इच्छाशक्ति से रूपांतरित होने का कथाचित्र देखें। फ़िल्म संजू के इस गीत केे फ़िल्मांकन में संजू की प्रेरणा के रूप में चित्रित किया गया है, इस गीत को लिखा है 'शेखर अस्तित्व' ने। 'अस्तित्व की लड़ाई' के गीत को लिखने के लिए गीतकार अस्तित्व को चुना जाना संयोग ही है। इस गीत को आस्कर विजेता ए आर रहमान ने संगीत दिया है, स्वर दिया है 'मिलेनियम गायक' सुखविंदर और श्रेया घोषाल ने। पर्दे में नरगिस के रूप में है मनीषा कोइराला और संजू के रूप में रणबीर कपूर....
गीत:-
(इच्छाशक्ति : संजू रणबीर कपूर)
:-
पिघला दे सब जंजीरे,
बना उनकी शमशीरें,
कर हर मैदान फतह।
घायल परिंदा है तू
दिखला दे ज़िंदा है तू
बाकी है तुझमें हौसला।
तेरे जुनूं के आगे
अम्बर पनाहें मांगे
कर डाले तू जो फैसला।
रूठी तकदीरें तो क्या
टूटी शमशीरें तो क्या
टूटी शमशीरों से ही
कर हर मैदान फतह।
(अन्तःप्रेरणा : मां नरगिस)
:-
इन गर्दिशों के बादलों पै चढ़ के
वक़्त का गिरेबां पकड़ के
पूछना है जीत का पता।
इन मुट्ठियों में चांद तारे भरके
आसमां की हर हद से गुज़र के
हो जा तू भीड़ से जुदा।
कहने को ज़र्रा है तू
लोहे का छर्रा है तू
टूटी शमशीरों से ही
कर हर मैदान फतह ....
बिम्ब और प्रतीकों की उपस्थिति से यह गीत विशिष्ट हो गया है और गीतों के अस्तित्व के प्रति आशावाद की स्थापना करता हैं।
शेखर अस्तित्व का कुछ व्यक्तिगत :
ऐसी सूचना है कि फ़िल्म संजू से चर्चित गीतकार शेखर अस्तित्व फिल्मों और सीरियलों में गीत लिख चुके हैं। अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में भी अपना मुकाम हासिल किया है, 29 मेगा सीरियल्स में गीत लिखने का अनुभव प्राप्त शेखर अस्तित्व स्वस्थ भारत अभियान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य हैं
शिक्षक वामनराव गजभिए एवं इंदुमती गजभिए के पुत्र शेखर अस्तित्व ने अपनी पढ़ाई प्राथमिक शाला सरेखा एवं गवर्नमेंट स्कूल बालाघाट से की है। स्कूल जीवन से ही कविता लेखन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वाले शेखर ने स्कूल, जिला, सम्भाग और प्रदेश स्तर पर गव्हर्नमेंट स्कूल का प्रतिनिधित्व किया। विद्यार्थी जीवन से ही विभिन्न स्थानीय और राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई तो लेखन में और मन रम गया। धीरे धीरे अखिल भारतीय मंचो से कविता पाठ करने लगे। स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य शेखर अस्तित्व विगत 15 वर्षों से मायानगरी मुम्बई में निरन्तर लेखन में सक्रिय शेखर अस्तित्व रामायण, जय श्रीकृष्णा, मीरा, महावीर हनुमान, शनिदेव, बजरंगबली, साईबाबा, महादेव, पोरस, नव्या आदि 27 से ज्यादा मेगा सीरियल्स में गीत लिख चुके हैं। अभी तक 3000 से ज्यादा गीत लिख चुके गीतकार शेखर अस्तित्व ने फिल्म रॉकी हैण्डसम, इश्क क्लिक, माय फ्रेण्ड्स दुल्हनिया सहित अनेक फिल्मों एवं एलबम्स में भी गीत लिखे हैं। संजू के गीत ने उन्हें एक नई बुलंदी प्रदान की है।
उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ।
@ डॉ. रा..रामकुमार/डॉ. कुमार ज़ाहिद,
202, द्वितीय तल्ला, किंग्स कैसल रेजीडेंसी, ऑरम सिटी, नवेगांव- बालाघाट. 481001
१४.०५.२०१९.
*मित्रों! जो अमूमन सबसे होती है,वही गलती मुझसे भी हुई। 'मदर इंडिया'में बिरजू को बिगड़ैल कह दिया।
दरअसल वह उग्र था, आक्रोशित था, आत्म स्वाभिमानी था और अन्याय के विरुद्ध था। भोला था। बिरजू को बिगड़ैल कहकर इन गुणों का अपमान करना है।
खेद व्यक्त करता हूं। मेरा आशय यह नहीं था।
यह मैं अंदर की ध्वनि सुनकर कह/लिख रहा हूं। किसी के विरोध या समझाइस पर नहीं कर रहा हूं।
मेहबूब की *मदर इंडिया* में नरगिस नायिका की प्रमुख भूमिका में थीं और उनके बिगड़ैल बेटे बिरजू की भूमिका निभाई थी सुनील दत्त ने। फ़िल्म के दौरान ही कुछ ऐसा घटा कि नरगिस और सुनील (बलराज दत्त) दाम्पत्य में बंध गए। उन दोनों के भ्रांत-पुत्र 'खलनायक के नायक' संजय दत्त की पारिवारिक कथा किसी 'महाकाव्य' से कम नहीं है। घटना चक्र, मोह व्यामोह, संघर्ष, दिग्भ्रांति, सज्जनता, प्रेम, समर्पण, धोखा, गंभीर बीमारियों, मुसलसल मृत्यु, आसन्न राजनीति, अय्यासी, षड्यंत्र, आरोप, अपराध, कानूनी सज़ाओं, उच्चतम राजनीतिक पहुंच और केंद्रीय राजनीतिक व्यक्तित्वों का एक विराट वास्तविक कथा-चित्र है।
नरगिस के पुत्र और फ़िल्म उद्योग के "भव्य स्वर्णिम सपनों के व्यापारी" कपूर परिवार के सफल प्रपौत्र अर्थात चौथी पीढ़ी के सर्वाधिक साक्षर सुपुत्र के बीच बने तानेेबानेे का अद्भुत चित्रण है "संजू"। इस महाकाव्यात्मक फ़िल्म के केंद्रीय चरित्र संजय दत्त का अंधेरे में जाने, डूबने और निकलकर बाहर आने का समकालीन फिल्मी कला तत्वों के आधार पर बेहतर चित्रण है।
फिल्मी पटकथा में गीतों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इस फ़िल्म में भी है।
फ़िल्म में अवसाद, किंकर्तव्य विमूढ़ता के घटाटोप में डूबे संजू के उभरने के सकारात्मक कैनवास में आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति और अन्तःप्रेरणा के चित्रण का बहुत खूबसूरत प्रयोग हुआ है। संजू बाबा अपनी मां को बेहद प्यार करते थे और प्राकृतिक तथा मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पिता से उतनी ही दूरी बनाकर चलते थे, जितनी अक्सर हर पीढ़ी में होती है। यहां दूरी की बात है, प्रेम न होने की बात नहीं है। दूरी में भी रेतीली नदी के अंतस्थल में बहनेवाले पानी की तरह प्रेम भी सतत प्रवाहित रहता ही है। इसलिए पुत्रों को मांं की आंख का तारा ही नहीं कहते, लख्ते जिगर (ममाज बॉय) भी कहते हैं। लेकिन वह पिता से दूर भी नहीं। मजबूती में वह पर्दे के सामने और पीछे पिता के डंबल उठाकर अपनी मसल मजबूत करता है। करे भी क्यों नहीं। अगर वह मां का दिल है तो पिता का कंधा भी तो है। बेटा साधिकार पिता के दम पर ही कॉलर उठाकर और बाहें चढ़ाकर घूम सकता है तो बेेेटे के दम पर पिता छाती ठोंककर कह सकता है-"अभी तो मैं जवान हूं।"
संजू भी ऐसा ही बेटा है। यह मेरी दृष्टि में वह पहली फ़िल्म है जिसमें समर्थ अभिनेता के जीवित रहते, किसी अन्य समर्थ अभिनेता ने उसकी बायोपिक की है। जीवित अपराधियों और खिलाड़ियों की बायोपिक में समर्थ अभिनेताओं द्वारा अभिनय करना एक अलग बात है, अभिनय की मांग है।
ज़रा इस प्रसंग में अन्तःप्रेरणा से एक संघर्षशील का अपनी इच्छाशक्ति से रूपांतरित होने का कथाचित्र देखें। फ़िल्म संजू के इस गीत केे फ़िल्मांकन में संजू की प्रेरणा के रूप में चित्रित किया गया है, इस गीत को लिखा है 'शेखर अस्तित्व' ने। 'अस्तित्व की लड़ाई' के गीत को लिखने के लिए गीतकार अस्तित्व को चुना जाना संयोग ही है। इस गीत को आस्कर विजेता ए आर रहमान ने संगीत दिया है, स्वर दिया है 'मिलेनियम गायक' सुखविंदर और श्रेया घोषाल ने। पर्दे में नरगिस के रूप में है मनीषा कोइराला और संजू के रूप में रणबीर कपूर....
गीत:-
(इच्छाशक्ति : संजू रणबीर कपूर)
:-
पिघला दे सब जंजीरे,
बना उनकी शमशीरें,
कर हर मैदान फतह।
घायल परिंदा है तू
दिखला दे ज़िंदा है तू
बाकी है तुझमें हौसला।
तेरे जुनूं के आगे
अम्बर पनाहें मांगे
कर डाले तू जो फैसला।
रूठी तकदीरें तो क्या
टूटी शमशीरें तो क्या
टूटी शमशीरों से ही
कर हर मैदान फतह।
(अन्तःप्रेरणा : मां नरगिस)
:-
इन गर्दिशों के बादलों पै चढ़ के
वक़्त का गिरेबां पकड़ के
पूछना है जीत का पता।
इन मुट्ठियों में चांद तारे भरके
आसमां की हर हद से गुज़र के
हो जा तू भीड़ से जुदा।
कहने को ज़र्रा है तू
लोहे का छर्रा है तू
टूटी शमशीरों से ही
कर हर मैदान फतह ....
बिम्ब और प्रतीकों की उपस्थिति से यह गीत विशिष्ट हो गया है और गीतों के अस्तित्व के प्रति आशावाद की स्थापना करता हैं।
शेखर अस्तित्व का कुछ व्यक्तिगत :
ऐसी सूचना है कि फ़िल्म संजू से चर्चित गीतकार शेखर अस्तित्व फिल्मों और सीरियलों में गीत लिख चुके हैं। अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में भी अपना मुकाम हासिल किया है, 29 मेगा सीरियल्स में गीत लिखने का अनुभव प्राप्त शेखर अस्तित्व स्वस्थ भारत अभियान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य हैं
शिक्षक वामनराव गजभिए एवं इंदुमती गजभिए के पुत्र शेखर अस्तित्व ने अपनी पढ़ाई प्राथमिक शाला सरेखा एवं गवर्नमेंट स्कूल बालाघाट से की है। स्कूल जीवन से ही कविता लेखन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वाले शेखर ने स्कूल, जिला, सम्भाग और प्रदेश स्तर पर गव्हर्नमेंट स्कूल का प्रतिनिधित्व किया। विद्यार्थी जीवन से ही विभिन्न स्थानीय और राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई तो लेखन में और मन रम गया। धीरे धीरे अखिल भारतीय मंचो से कविता पाठ करने लगे। स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य शेखर अस्तित्व विगत 15 वर्षों से मायानगरी मुम्बई में निरन्तर लेखन में सक्रिय शेखर अस्तित्व रामायण, जय श्रीकृष्णा, मीरा, महावीर हनुमान, शनिदेव, बजरंगबली, साईबाबा, महादेव, पोरस, नव्या आदि 27 से ज्यादा मेगा सीरियल्स में गीत लिख चुके हैं। अभी तक 3000 से ज्यादा गीत लिख चुके गीतकार शेखर अस्तित्व ने फिल्म रॉकी हैण्डसम, इश्क क्लिक, माय फ्रेण्ड्स दुल्हनिया सहित अनेक फिल्मों एवं एलबम्स में भी गीत लिखे हैं। संजू के गीत ने उन्हें एक नई बुलंदी प्रदान की है।
उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ।
@ डॉ. रा..रामकुमार/डॉ. कुमार ज़ाहिद,
202, द्वितीय तल्ला, किंग्स कैसल रेजीडेंसी, ऑरम सिटी, नवेगांव- बालाघाट. 481001
१४.०५.२०१९.
*मित्रों! जो अमूमन सबसे होती है,वही गलती मुझसे भी हुई। 'मदर इंडिया'में बिरजू को बिगड़ैल कह दिया।
दरअसल वह उग्र था, आक्रोशित था, आत्म स्वाभिमानी था और अन्याय के विरुद्ध था। भोला था। बिरजू को बिगड़ैल कहकर इन गुणों का अपमान करना है।
खेद व्यक्त करता हूं। मेरा आशय यह नहीं था।
यह मैं अंदर की ध्वनि सुनकर कह/लिख रहा हूं। किसी के विरोध या समझाइस पर नहीं कर रहा हूं।
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दरअसल वह उग्र था, आक्रोशित था, आत्म स्वाभिमानी था और अन्याय के विरुद्ध था। बिरजू को बिगड़ैल कहकर इन गुणों का अपमान करना है।
खेद व्यक्त करता हूं। मेरा आशय यह नहीं था।
यह मैं अंदर की ध्वनि सुनकर कर रहा हूं। किसी के विरोध या समझाइस पर नहीं कर रहा हूं।