चौंक जाइयेगा जो जानिएगा भारतीय राष्ट्रीय वर्णमाला के दो नंबर पर आनेवाले वर्ण-परिवार के पहले सदस्य च के बारे में। चमत्कृत करनेवाले यह चमत्कारी वर्ण बड़ी चतुराई से लोगों को चुस्त और चालाक बना देता है। वो जिनके बारे में कहा गया है कि वे मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं, दरअसल इसी वर्ण का कमाल है। यही कारण है कि चालाक व्यक्ति अगुआ बनने की बजाय चमचा बनना पसंद करते हैं। सब जानते हैं कि चतुर चमचे की चांदी ही चांदी है। चांदी की चमक के क्या कहने! आंखें चौंधिया जाती हैं। कोई चौतरफा फैली समृद्धि को, चहुंमुखी विकास को सोना ही सोना नहीं कहते, कहते हैं उसकी तो चांदी ही चांदी है।
च के चौपाल में चांदनी चौक से ज्यादा चोर बाजार के चर्चे हैं। किसी को चर्चित करने में इसकी भूमिका है। उदाहरण के लिए एक चतुर्थ श्रेणी का पद है चौकीदार। कुछ वर्षों से यह पद चौकीदार बड़ा ही चर्चित हुआ है। किसी चमत्कार करनेवाले किसी चौपाल के चौधरी ने पहली लगान की वसूली में तो अपने को 'चौधरी की चौपाल का प्रधान सेवक' कहा। फिर दूसरी वसूली में वक़्त की नजाकत देखकर चालाकी से अपने को चौकीदार कह दिया। सेवक और चौकीदार चूंकि चतुर्थ श्रेणी के समकक्ष पद हैं, इसमें चमत्कार कुछ नहीं, चमत्कार ये है कि किसी देश के चुने हुए व्यक्ति ने चुनकर यह शब्द अपने लिए इस्तेमाल किया। लोगों को चौंकना ही था। इसका फायदा चकराए हुए विरोधियों ने बड़ी चतुराई से उठाया। सभी जानते हैं कि चौकीदार का जन्म चोरी से हुआ। सीधे सीधे कहें तो चोरों से ही हुआ। चोर ही न होते तो चौकीदार क्यों होते? चौकीदार कोई क्यों रखता है? चोरों से संपत्ति बचाने के लिए ही न? चौकीदार से हमारी यह अपेक्षा रहती है कि हम चोरों से सुरक्षित रहें और चैन की नींद ले सकें। हमारे चैन के चोरों की चौकसी के लिए जन्मे चौकीदार तथा चुस्ती और चालाकी से चोरी करनेवाले चोरों का सम्बंध बैंक और माल्या जैसा ही है। कुछ अपराध वेत्ता मानते हैं कि चोर और चौकीदार की दोस्ती 'दांत चाबी रोटी' का सा है। कुलमिलाकर चौकीदार का अस्तित्व चोरों के कारण ही है। इसीलिए एक छोटा बच्चा भी आजकल कह देता है कि चौकीदार ही चोर है। गंभीरता से देखा जाए तो चोर का काम भी चौकीदार के काम जैसा है। कैसे? वो ऐसे कि जब तक चोर चौकस होकर यह न जान ले कि कौन सी चीज कहां रखी है तो चुराएगा क्या? चौकीदार को भी पता न हो कि कीमती चीज कहां रखी है तो वह चौकीदारी करेगा किसकी? इसलिए चोर का काम आसान करने में चौकीदार की भूमिका अद्वितीय है। चौकीदार चोरों को चैतन्य और चतुर बनाते हैं तो चोर भी चौकीदार को चुस्त और चौकस बनाते हैं। हर चौकस चौकीदार के पीछे एक चुस्त और चालाक चोर खड़ा है।
हालांकि दोनों में सह-अस्तित्व और कार्य समानता होने पर भी चौकीदार की विवशता है कि वह अपने को चोर नहीं कह सकता किन्तु चोर सीना ठोंककर चौकीदार कह सकता है। चौकीदार ने ईमानदारी से स्वीकार कर लिया कि वह कि वह चोर है तो उसकी नौकरी गयी। लेकिन चमत्कार देखिए कि चोर यदि अपने को चौकीदार बताए तो उसका धंधा आसान हो जाये, उसके धंधे में चार-चांद लग जाएं। चोर चौकीदार कहलाकर ही बड़ी सरलता से आंखों का काजल चुरा लेते हैं। (चतुर चोरों के मामले में चालाकी भी सरलता के नाम से विख्यात हो जाती है। नाम बदलकर अपना काम करना कोई चोरों से सीखे।)
चलिये छोड़िए, हम भी कहां चोर-चौकीदार के लफड़े में पड़ गए। च से और भी बेहतरीन चीजें बिखरी पड़ीं हैं दुनिया में। अब यही देखिए 'चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में!'
चंद्र यानी चांद। चांद है तो चकोर भी है। चांद के चाचा भी हैं। चांद को प्यार से चंदू कहनेवालों ने चोरी चोरी ये भेद पाया है कि "चंदू के चाचा ने चांदनी चौक में चिंटू की चाची चांदी की चम्मच से चटनी चटाई।" ध्यान जरूर दीजिये कि चाचा चंदू का है और चाची चिंटू की। दिल्ली के चांदनी चौक में ऐसा होना आम बात है।
च का महत्व कोई आजकल नहीं बढ़ा है। यह ऐतिहासिक है। इतिहास में एक राजा थे चौहान। उनके दरबारी कवि थे चंदवरदाई। उनको भी च वर्ण प्रिय था। लंबाई ऊंचाई बताने के लिए वे च का पैमाना रखा करते थे। एकबार अंधे हो गए चौहान को उन्होंने इसी गणित से सुल्तान पर निशाना लगवाया था..
चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण!
ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहाण!!
इसमें चक्रव्यूह के च वर्ण से बनने वाले चूके शब्द की प्रमुख भूमिका देखिए। चूकना और चुकने में हार जीत का भारी अंतर है। चुके तो चूके, चूके तो फिर चुक ही गए।
च से और भी कई ऐसी बातें हैं जो चार लोगों में करके आप चाक चौबस्त होकर शान से रह सकते हैं वरना चौपाये की तरह जी कर अंत में सभी को चार कंधों पर जाना ही है।
क्रमश: यानी और मिलेंगे।
Comments