गीतल (५ द्विपद) मानसिक संकल्प उत्साहों में ढलना चाहिये। तब कहीं लक्ष्यित दिशा की ओर चलना चाहिये। शौर्य का अनुबंध है मालिन्य गलना चाहिये। स्वप्न को पुरुषार्थ के पलने में पलना चाहिये। तारकों को चाहिए गणना करें हर यत्न की, दीपकों को मील के पत्थर पे जलना चाहिये। प्राण की चिंता उसे जाने न जो जीवन कला, द्वंद्व में प्रतिद्वंद्वियों को हाथ मलना चाहिये। रक्त में हो ऊर्जा के ताप का ज्वालामुखी, हीनता के हिम-प्रखंडों को पिघलना चाहिए। @डॉ. रा. रामकुमार, २४.०२.२४ शब्दार्थ : हिम-प्रखंड = आइस बर्ग, ठंडे समुद्र में बर्फ़ के शिलाखंड। विधान : आधार छंद - गीतिका गीतिकाश्री गीतिकाश्री गीतिकाश्री गीतिका मापनी - गालगागा गालगागा गालगागा गालगा, गण पद्धति- राजभा गा राजभा गा राजभा गा राजभा मापांक -2122 2122 2122 212 अथवा मापनी - गालगा गागाल गागागा लगागा गालगा गण पद्धति - राजभा ताराज मातारा यमाता राजभा मापांक - 212 221 222 122 212 समान्त(काफ़िया) - अलना, पदान्त(रदीफ़) - चाहिए ० 👍