उड़नपरी : दो छोटी छोटी कविताएं
1.
सारी उड़ानें बंद हैं इन दिनों
रद्द की जा रही हैं
सारी उड़ानें बंद हैं इन दिनों
रद्द की जा रही हैं
संदिग्ध सवारियों की फ़ेहरिस्तें
निष्पक्ष न्यायाधीश निषिद्ध कर दिए गए हैं
अत्यधिक ज्वलनशील की श्रेणी में
डाला जा रहा है उन्हें
ख़त्म कर रहे हैं
धीरे धीरे उन्हें तानाशाह।
निष्पक्ष न्यायाधीश निषिद्ध कर दिए गए हैं
अत्यधिक ज्वलनशील की श्रेणी में
डाला जा रहा है उन्हें
ख़त्म कर रहे हैं
धीरे धीरे उन्हें तानाशाह।
उड़नपरियों!
किसी का इंतज़ार मत करो...
मुर्दे भी कभी उड़ते हैं?
2.
अच्छी लग रही हो
लाल कपड़ों में तुम!
सुर्ख़ है तुम्हारे सुर्ख़ होटों की मुस्कुराहट
मोहब्बत से और उम्मीदों से लबरेज़ तुम्हारा दिल
अब तक तो नीले से लाल हो गया होगा
तुम ख़ुशियों और चाहतों और मुस्तक़बिल के
शादाब लम्हों का अहसास हो क्या?
इधर देश में आग जल रही है
जलाए जा रहे हैं सारे दस्तावेज़
मिटाए जा रहे हैं कालेकारनामों के सबूत
ढहाई जा रही हैं क़ानून की ता'मीरात
दहकाये जा रहे हैं नफ़रतों के शोले
तुम उनके लाल रंग का आभास हो क्या?
देश के कोने कोने से चीख रहे हैं लोग
आ रही हैं इंक़लाब की आवाज़ें
तुम तानाशाही के ख़िलाफ़
रक्तक्रान्ति का उल्लास हो क्या?
रक्तबीजों का रक्त पीकर गूंजता अट्टहास हो क्या?
अच्छी लग रही हो तुम
लाल रंग के कपड़ों में!
तुम्हारी सारी मांगें पूरी हों!
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@डॉ. कुमार, १२.०८.२३
Comments
ऐसे लोग कभी नहीं बदलते।
ऐसे ही एक मित्र की प्रतिक्रिया प्रस्तुत है...[13/08, 9:26 pm] Dr. R. Ramkumar,: विद्रोह, विरोध और विवाद भी सुविधानुसार किये जाते हैं, सामान्यतः।
सिंधिया जैसे लोग एक वर्ग द्वारा बुद्धिमान समझे जाते हैं, और उसी वर्ग द्वारा अपने सम्राट भाई का विरोध करने वाले विभीषण का, घर फोड़ू कहकर तिरस्कार किया जाता।
[13/08, 9:29 pm] Dr. R. Ramkumar,: अपनी अपनी सुविधा और अपनी अपनी बुद्धिमत्ता के 90% लोग शिकार हैं। कुछ लोग मतलब से और कुछ लोग बेमतलब परेशान होते हैं।
[13/08, 9:32 pm] Dr. R. Ramkumar,: कुछ लोग गहरी नींद की प्रार्थना करके इस उद्देश्य से सोते हैं कि दूसरों की नींद उड़ाने के सपने देख सकें। मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना की तरह मनोरोग भी उतने ही हैं।
[13/08, 9:41 pm] Dr. R. Ramkumar,: *बहुत बढ़िया चिंतन*
👍
*सदियों से, सहस्त्र वर्षों से, व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह, कागजों पर काली स्याही से मुखर हैं।*
*बस, क़लम काग़ज़ बदले।*
*हर युग मे सुकरात की मौत के बाद उसकी तारीफ़ में क़सीदे पढ़े और महिमा गायीं गयीं। उसके दर्शन पर घंटों चर्चाएं हुईं, परन्तु सुकरात बनने का नसीब सब का नही होता। वैसा कलेजा सीना सब का नही होता।*
*@ आ. शिरीष*
आप रद्दी भर नहीं बदले भाई! वही शैली, वही अंदाज़, वही दृष्टि!👍👍😊☺️
*बस, क़लम काग़ज़ बदले।*
*हर युग मे सुकरात की मौत के बाद उसकी तारीफ़ में क़सीदे पढ़े और महिमा गायीं गयीं। उसके दर्शन पर घंटों चर्चाएं हुईं, परन्तु सुकरात बनने का नसीब सब का नही होता। वैसा कलेजा सीना सब का नही होता।*
*@ आ. शिरीष*
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एक अंतिम टिप्पणी :-
[14/08, 12:50 am] Shirish Rajimwale: मुझ मूढ़ को आप की बात समझ नही आई।
[14/08, 1:02 am] Shirish Rajimwale: सुकरात जैसा सीना मेरा भी नही है मेरा कलेजा भी सुकरात जैसा नही।
घटना हो जाने के बाद उसकी समीक्षा आलोचना निंदा प्रस्ताव पारित करने जैसा है।
पान ठेले की जुगाली चाय के कप से उठती भाप में क्रांति की कल्पना के शिव हमने किया क्या है।
बाल बच्चे पाले बीबी को खुश किया अपनी कुछ जन्मजात विशेषताओं के लिए तालियां बटोरी अध्याय समाप्त होते ही चले जाएंगे कभी ना वापस आने के लिए।